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Showing posts from August, 2021

रक्षा बंधन

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प्रतिवर्ष पवित्र श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पावन पर्व है रक्षाबंधन, जोकि भाई बहन के असीम प्रेम एवं भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व है। इस दिन बहनें अपने अपने भाइयों की कलाई पर पवित्र रेशमी धागा बांधकर भाइयों  के दीर्घायु जीवन एवं सुरक्षा की कामना करती हैं और बहनों के इस स्नेह बंधन में बंधकर भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए कृत संकल्पित होता है।  रक्षा सूत्र के रूप में बांधा जाने वाला रेशमी लाल पीला धागा या कलावा समय के साथ साथ उत्सवप्रिया माता बहनों द्वारा कब रंग बिरंगी राखी में परिवर्तित हो गया इसका कोई प्रमाण नहीं है।  बहनों द्वारा अपने भाइयों को बंधा गया यह रक्षा सूत्र रक्षा का बंधन नहीं बल्कि रक्षा का कवच है, जिसे बांधकर बहनें अपने भाई की रक्षा की चिंता से मुक्त होकर अपने भाई को विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए अधिक सक्षम बनाती हैं।  रक्षा बंधन के पर्व को मनाने को लेकर कई सारी मान्यताऐं  प्रचलित हैं।  

अमर बलिदानी शहीद हेमू कालानी

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अविभाजित भारत के सिंध जोकि वर्तमान में पाकिस्तान में है, के सक्खर नामक जिले को अमर बलिदानी शहीद हेमू कालानी की जन्म स्थली के रूप में जाना जाता है। पेसूमल कालानी इनके पिता एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे और माता जी जेठीबाई एक धार्मिक गृहस्थ महिला थी। जिस प्रकार शहीद भगत सिंह अपने चाचा अजीत सिंह से प्रभावित थे, उसी प्रकार से हेमू कालानी के चाचाजी मंघाराम कालानी भी कांग्रेस के कार्यकर्त्ता थे और हेमू बचपन से ही उनके कार्यकलापों से काफी प्रभावित रहे और उन्ही के कारण हेमू के मन में देश की स्वतंत्रता की भावना जाग्रत हुई। यह भी एक अजीब सा संयोग था कि जिस दिन भगत सिंह शहीद हुए उस दिन हेमू कालानी का जन्म दिन था और वे आठ वर्ष के थे। हेमू बचपन से ही साहसी रहे होकर अपने विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे। सात वर्ष की आयु से ही वे तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व किया करते थे।  हेमू कालानी एक होनहार बालक के साथ ही तैराक, धावक और तीव्र साईकिल चालक भी थे, तैराकी में उन्हें कई बार पुरुस्कृत भी किया गया था। जब सिंध प्रा...

भारत की प्रथम महिला जासूस कैप्टन नीरा आर्या

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उत्तर प्रदेश के मेरठ में खेकड़ा गांव के एक सम्पन्न जाट परिवार में जन्मी नीरा का सम्पूर्ण जीवन काफी संघर्षमय रहा।  बचपन में ही बीमार माता पिता के इलाज में काफी खर्च होने से घर के हालात बिगड़ गए, कोई कमाने वाला नहीं था इस कारण कर्ज बढ़ता गया बाद में माता पिता के गुजर जाने के बाद नीरा और छोटा भाई बसंत कुमार अनाथ हो गए। पिता की हवेली और जमीन साहूकारों ने छीन ली तो दोनों बच्चे दर दर भटकने पर विवश हो गए। इसी बीच कलकत्ता के बहुत बड़े व्यापारी चौधरी सेठ छज्जूराम जी को ये दोनों बच्चे मिले। सेठ छज्जूराम मूल रूप से हरियाणा के जाट समाज से थे और बहुत ही दयालु, दानवीर एवं देशभक्त व्यक्ति थे, बच्चो की हालत पता लगने पर उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। सेठजी ने दोनों बच्चों को लालन पालन व शिक्षा के लिए गोद ले लिया और बच्चों के धर्मपिता बन कर उन्हें कलकत्ता ले गए, वहां दोनों बच्चों की शिक्षा हुई। सेठजी के आर्य समाज से जुड़े होने के कारण दोनों बच्चे आर्य समाज की विचरधारा से आकर्षित हुए।