भारत की प्रथम महिला जासूस कैप्टन नीरा आर्या
उत्तर प्रदेश के मेरठ में खेकड़ा गांव के एक सम्पन्न जाट परिवार में जन्मी नीरा का सम्पूर्ण जीवन काफी संघर्षमय रहा। बचपन में ही बीमार माता पिता के इलाज में काफी खर्च होने से घर के हालात बिगड़ गए, कोई कमाने वाला नहीं था इस कारण कर्ज बढ़ता गया बाद में माता पिता के गुजर जाने के बाद नीरा और छोटा भाई बसंत कुमार अनाथ हो गए। पिता की हवेली और जमीन साहूकारों ने छीन ली तो दोनों बच्चे दर दर भटकने पर विवश हो गए। इसी बीच कलकत्ता के बहुत बड़े व्यापारी चौधरी सेठ छज्जूराम जी को ये दोनों बच्चे मिले। सेठ छज्जूराम मूल रूप से हरियाणा के जाट समाज से थे और बहुत ही दयालु, दानवीर एवं देशभक्त व्यक्ति थे, बच्चो की हालत पता लगने पर उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। सेठजी ने दोनों बच्चों को लालन पालन व शिक्षा के लिए गोद ले लिया और बच्चों के धर्मपिता बन कर उन्हें कलकत्ता ले गए, वहां दोनों बच्चों की शिक्षा हुई। सेठजी के आर्य समाज से जुड़े होने के कारण दोनों बच्चे आर्य समाज की विचरधारा से आकर्षित हुए।
दानवीर एवं देशभक्त सेठजी के घर पर आये दिन क्रांतिकारियों एवं देशभक्त नेताओं का आना जाना लगा रहता था, जिसका भी प्रभाव नीरा पर पड़ा। एक बार सरदार भगतसिंह और उनकी क्रन्तिकारी साथी सुशीला भाभी अंग्रेज पुलिस से बचने के लिए काफी समय तक सेठजी के पास ही रहे, उस समय नीरा को पढ़ाने का जिम्मा सुशीला भाभी पर ही था। एक बार नीरा अपने साथी बच्चों के साथ समुद्र किनारे पिकनिक पर गई थी। नीरा को तैरना आता था सो समुद्र में तैरने का मन बना लिया किन्तु समुद्र की लहरों का सामना नहीं कर पाई और डूबने लगी। तभी एक नौजवान युवक ने समुद्र में कूदकर नीरा की जान बचाई। नीरा ने जब परिचय जानना चाहा तो मालूम हुआ कि वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस हैं, तब नीरा ने कहा कि आपने मेरी जान बचाई है आपका मुझ पर बड़ा एहसान है। तब नेताजी बोले आज रक्षाबंधन है मुझे राखी बांधकर अपना भाई स्वीकार कर लो। इस तरह से नीरा नेताजी की धर्म बहन बन गई।
सेठजी छज्जूराम ने अपने पिता धर्म का पालन करते हुवे धनवान और शिक्षित श्रीकांत जयरंजन दास के साथ धूमधाम से नीरा का विवाह कर दिया। श्रीकांत जयरंजन दास ब्रिटिश पुलिस के ख़ुफ़िया विभाग में एक अफसर थे, देशभक्त सेठजी को श्रीकांत के ख़ुफ़िया विभाग के बारे में जानकारी विवाह के पहले नहीं थी। उसी प्रकार जब नीरा को मालूम हुआ कि श्रीकांत तो देशद्रोही है तो उसने अपने पति को समझाने का काफी प्रयास किया किन्तु धन के लोभ में श्रीकांत ने नीरा की कोई बात नहीं सुनी। नीरा और नेताजी की घनिष्ठता की जानकारी अंग्रेजो को मिलने पर उन्होंने श्रीकांत को नेताजी की जासूसी में लगा दिया। जब नीरा ने देखा कि श्रीकांत पर उसकी बात का कोई असर नहीं हो रहा तो वह अपने देशद्रोही पति को छोड़कर अपने पिता के घर लौटकर आ गई। इस प्रकार से नीरा का बचपन के साथ वैवाहिक जीवन भी कष्टप्रद ही रहा।
उस समय नीरा के बहुत से साथी और रिश्तेदार आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल हो रहे थे। नेताजी ने झाँसी रेजिमेंट भी बनाई थी तब नीरा ने भी नेताजी से मिलकर उनके साथ देश के लिए कुछ करने की इच्छा जताने पर नेताजी ने नीरा को झाँसी रेजिमेंट में शामिल कर लिया और नेताजी ने नीरा को अंग्रजों की जासूसी का कार्य सौंपा। इस तरह से नीरा ने देश की प्रथम महिला जासूस होने का गौरव प्राप्त किया। नीरा और उनकी साथी भेष बदल कर अंग्रेजो की छावनी में जाकर जासूसी करते थे। नेताजी का उन्हें विशेष निर्देश था कि पकड़े जाने पर स्वयं को गोली मार लेना लेकिन अंग्रेजो के हाथ जीवित नहीं लगना। एक बार के घटनाक्रम में अंग्रेजॉ को इनकी जानकारी हो गई और ये लोग जब भागे तो इनकी एक साथी जीवित अंग्रेजो के हाथ लग गई, फिर उसे छुड़ाने के लिए नीरा और उनके साथियों ने अंग्रेज छावनी में घुसपैठ कर हमला किया और अपनी साथी को छुड़ा लिया किन्तु इसमें उनकी एक साथी राजमणि देवी के पैर में गोली लग गई, जिससे वह पैर से अपंग हो गई।
एक दिन नेताजी अपने टेंट में सोये हुवे थे और नीरा अपने साथियों के साथ बंदूक लिए हुऐ रात्रि के पहरे पर थी। तभी नीरा को कुछ आवाज सुनाई दी और एक साया दिखाई दिया गौर से देखा और पूछा तो ज्ञात हुआ कि वह उसका पति श्रीकांत था जोकि दो लाख के इनाम के लालच में नेताजी को मारने आया था। तब नीरा बोली नेताजी मेरे भाई हैं और देश सेवा में लगे हैं और तुम देश के साथ गद्दारी कर रहे हो मै ऐसा नहीं करने दूंगी। भारतीय नारी अपने पति का अहित नहीं कर सकती यह कहकर श्रीकांत जैसे ही नेताजी की ओर बढ़ने लगा वैसे ही नीरा ने अपनी बंदूक की नोंक पर लगी संगीन से उसे घायल कर दिया। घायल श्रीकांत ने गुस्से में नीरा पर गोली चला दी जिसमे एक गोली नीरा के कान के पास से गुजर गई और दूसरी गोली गर्दन को छूते हुए निकल गई, जिससे नीरा घायल होकर बेहोश हो गई। गोली की आवाज सुन उनके अन्य साथी आये जिन्होंने श्रीकांत को ढेर कर दिया। नेताजी बेहोश नीरा को स्वयं लेकर हॉस्पिटल गए और डॉक्टर से बोले ऐसी निडर सिपाही की देश को काफी जरुरत है किसी भी तरह इसे बचाओ। नीरा को ठीक होने के बाद नेताजी ने झाँसी रेजिमेंट में कैप्टन बना दिया।
नीरा ने आजाद हिन्द फ़ौज में अपनी वीरता के कई प्रदर्शन करते हुवे अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी किन्तु बाद में अमेरिका के जापान पर हमला करने और उस हमले के कारण परेशान जापानी सेना के कुछ असहयोग के कारण आजाद हिन्द फ़ौज कमजोर पड़ गई थी और क्रन्तिकारी सिपाहियों को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। बाद में देश भर में विद्रोह के चलते मुकदमे वापस ले लिए गए किन्तु नीरा को नहीं छोड़ा। नीरा को कालेपानी की सजा दे दी गई और कालापानी की सजा के दौरान काफी दर्दनाक यातनाऐं दी गई, काफी दुर्व्यवहार किया गया। यातनाऐं इतनी कष्टप्रद होती थी कि नीरा बेहोश हो जाती थी। अँधेरी कोठरी में बंद कर दिया था, मल मूत्र के लिए भी बाहर जाने नहीं दिया जाता था, पीने का पानी भी बहुत ही कम और दूषित दिया जाता था, शाकाहारी होने के बाद भी जबरदस्ती सड़ा मांस उसे खिलाया जाता था। नीरा को कोड़े मारे जाते थे, पानी में बार बार डुबोया जाता था, हजारो यातनाओं के बाद भी अंग्रेज कोई ख़ुफ़िया जानकारी उगलवा नहीं सके तो उन्होंने नीरा को गोल चक्कर की चरखी पर चढ़ाकर घुमाया गया जिससे नीरा का बदन टूट गया और वह बेहोश हो गई तब उसे अंग्रेज घायल अवस्था में ही खतरनाक आदिवासियों के टापू पर फेंक आये।
जब नीरा को होश आया तो उसने अपने आप को खतरनाक आदिवासियों के बीच पाया जो उसे घेरे हुए थे। नीरा ने भगवान को याद करने के लिए ॐ का उच्चारण किया, तो ॐ सुनकर उन आदिवासियों ने नीरा को देवी समझ लिया और उसकी देखरेख और सेवा में लग गए। कुछ दिनों बाद नीरा ने अपनी आपबीती उन आदिवासियों को समझाने का प्रयास किया तो उन्होंने एक मजबूत नाव बनाकर खाने का इंतजाम नाव में रखकर नीरा को टापू से विदा किया। नीरा जैसे तैसे हैदराबाद पहुंची तब तक देश आजाद हो गया था। नीरा का शरीर दुर्बल हो गया था वह हैदराबाद में एक झोपडी बनाकर रहने लगी और फूल बेचकर अपना गुजरा करने लगी। नीरा अपने माथे पर तिलक लगाती थी इस कारण वहां उन्हें कट्टरपंथ से भी मुकाबला करना पड़ा, उनकी झोपड़ी तोड़ दी गई फूल फेंक दिए जाते थे। नीरा काफी बूढ़ी हो चुकी थी एक दिन तेज बुखार में बेहोश हो गई अस्पताल ले जाया गया किन्तु उपचार के दौरान ही उनका स्वर्गवास हो गया और इस प्रकार से एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की गुमनामी के अँधेरे में अंतिम विदाई हुई। इस प्रकार से देश की प्रथम महिला जासूस, आजाद हिन्द फ़ौज की महान क्रान्तिकारी कैप्टन, नेताजी की धर्म बहन और कालापानी की सजा भोगने वाली नीरा आर्य की संघर्ष भरी जिंदगी का अंत हो गया। ऐसी महान क्रान्तिकारी को जीवित रहते हुवे तो कुछ नहीं दे पाए कम से कम उनकी मृत्यु के बाद हमें उनके नाम को तो जीवित रखना चाहिए और उनकी वीरगाथा जन जन तक पहुँचाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिल सके। जय हिन्द।
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