अमर बलिदानी शहीद हेमू कालानी


अविभाजित भारत के सिंध जोकि वर्तमान में पाकिस्तान में है, के सक्खर नामक जिले को अमर बलिदानी शहीद हेमू कालानी की जन्म स्थली के रूप में जाना जाता है। पेसूमल कालानी इनके पिता एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे और माता जी जेठीबाई एक धार्मिक गृहस्थ महिला थी। जिस प्रकार शहीद भगत सिंह अपने चाचा अजीत सिंह से प्रभावित थे, उसी प्रकार से हेमू कालानी के चाचाजी मंघाराम कालानी भी कांग्रेस के कार्यकर्त्ता थे और हेमू बचपन से ही उनके कार्यकलापों से काफी प्रभावित रहे और उन्ही के कारण हेमू के मन में देश की स्वतंत्रता की भावना जाग्रत हुई। यह भी एक अजीब सा संयोग था कि जिस दिन भगत सिंह शहीद हुए उस दिन हेमू कालानी का जन्म दिन था और वे आठ वर्ष के थे। हेमू बचपन से ही साहसी रहे होकर अपने विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे। सात वर्ष की आयु से ही वे तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व किया करते थे।  हेमू कालानी एक होनहार बालक के साथ ही तैराक, धावक और तीव्र साईकिल चालक भी थे, तैराकी में उन्हें कई बार पुरुस्कृत भी किया गया था। जब सिंध प्रांत में तीव्र आंदोलन शुरू हो गया था तो इस वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने भी आंदोलन में बढ़ चढ़  कर  भाग लिया।    
बचपन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त रहे हेमू ने हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसके बाद प्रारम्भ में स्वराज सेना में शामिल होकर वे इस छात्र संगठन के नेता बने, छात्रों के साथ तिरंगा लेकर मार्च करना उनकी दैनिक दिनचर्या थी। इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय का घोष करते हुवे वे प्रभात फेरी निकाला करते थे और स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के साथ ही विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए अपने साथियों को और जन सामान्य को प्रेरित करते रहते थे।  हेमू कालानी में देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी। इस किशोर क्रांतिकारी ने अंग्रेजों भारत छोडो नारे के साथ अपनी टोली के माध्यम से सिंध प्रदेश में तहलका मचा दिया था और उनके उत्साह को देखकर प्रत्येक सिंधवासी जोश में भर गया था और काफी लोगों ने उनके साथ सक्रिय क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होकर अंग्रेजी हुकूमत को उखाड फेंकने का संकल्प लेकर राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था। इनकी टोली छापामार गतिविधियों के द्वारा फिरंगी सरकार के अत्याचार पर रोक लगाने के साथ ही आम जनता पर अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले दमनकारी कार्यों में उनके वाहन आदि जलाकर अवरोध भी उत्पन्न कर देती थी।   

जब अंग्रेजो के खिलाफ भारत छोडो आंदोलन प्रारम्भ हुआ तथा करो या मरो का नारा दिया गया तब पुरे देश में माहौल गर्मा गया, जनता और ब्रिटिश सरकार के बीच लड़ाई तेज हो गई, अधिकांश नेताओ को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। ऐसी स्थिति में छात्रों, किसानों, मजदूरों, आदमी, औरत व अनेक कर्मचारियों ने आंदोलन की कमान स्वयं संभाल ली।  पुलिस स्टेशन, पोस्ट ऑफिस, रेल्वे स्टेशन आदि पर आक्रमण होना प्रारम्भ हो गए, जगह जगह आगजनी की घटनाऐं होने लगी। हेमू कालानी भी इस आंदोलन में कूद पड़े थे। जब अंग्रेजो का विरोध बढ़ने लगा और आंदोलन का विस्तार होने लगा तब अंग्रेजो ने बंदूक और गिरफ्तारी के दम पर आंदोलन पर काबू करने की योजना बनाई। हेमू कालानी को जब यह गुप्त जानकारी मिली कि आंदोलन का दमन करने के लिए अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी तथा हथियारों से भरी ट्रेन उनके शहर से होकर गुजरेगी तब उन्होंने अपने साथियो के साथ मिलकर पटरी को अस्त व्यस्त कर ट्रेन को आगे बढ़ने से रोकने की योजना बनाई। योजना के अनुसार वे सब कार्य बड़े ही गुपचुप तरीके से कर रहे थे, फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों ने उन्हें देख ही लिया और वे जैसे ही इन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़े तब हेमू ने अपने सभी साथियों को वहां से भाग जाने को कहा। सभी साथी फरार हो गए और हेमू को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया।      

रेलवे पुल पर पटरी को उखाड कर रेल गिराने वाली मंशा वाली इस कार्यवाही का मुक़दमा कोर्ट में चला जहां फांसी की सजा सुनाई गई।  उस समय सिंध के कई गणमान्य लोगो ने एक पिटीशन दायर कर हेमू को फांसी की सजा नहीं देने की अपील वायसराय से की, जिसे वाइसराय ने इस शर्त पर स्वीकार कर फांसी की सजा को उम्रकैद में परिवर्तित किया कि हेमू कालानी अपने साथियो के नाम और पते बताये । सजा के दौरान जेल में हेमू को कठोर यातनाऐं दी गई और अपने साथियों के नाम बताने के लिए काफी प्रलोभन दिए गए लेकिन हेमू ने कोई भी नाम नहीं बताया तो यातनाऐं बढ़ने लगी। स्वतंत्रता संग्राम के इस सेनानी हेमू कालानी के क्रांतिकारी हौसलों से भयभीत अंग्रेजी हुकूमत ने हेमू की उम्रकैद की सजा को फांसी में बदल दिया। हेमू को फांसी की सजा सुनाने के बाद सम्पूर्ण भारत में अंग्रेजो का विरोध काफी बढ़ गया। बताते हैं कि फांसी की सजा की खबर सुनकर हेमू कालानी का वजन आठ पौंड बढ़ गया था।  

हेमू कालानी को फांसी की सजा होने पर उनकी अपनी माता से मुलाकात हुई तब आँखों में अनोखी चमक लिए हेमू कालानी ने अपनी माता के चरण वंदन कर कहा माँ मेरा सपना पूरा हुआ अब हमारे भारत देश को आजाद होने से कोई भी नहीं रोक सकता है। ममतामयी माँ की आँखों से आंसू छलक गए जो हेमू कालानी के रोकने से भी नहीं रुके।  ममता और निडरता के इस नज़ारे को देखकर अन्य कैदी रो दिए। फांसी से पहले जब हेमू कालानी से उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उन्होंने फिर से भारतवर्ष में जन्म लेने की इच्छा जाहिर करते हुवे इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय का घोष करते हुवे फांसी को स्वीकार कर लिया। दिनांक २१ जनवरी १९४३ को इस किशोर क्रांतिकारी को फांसी दे दी गई और इस प्रकार से भारत  की आजादी की लड़ाई में शहीद होने वालो में एक नाम और जुड़ गया। गुलामी की जंजीरो में जकड़ी भारत माता को आजाद करवाने में ऐसे क्रांतिकारियों को कभी नहीं भुलाया जा सकता है, भारतीय इतिहास में शहीद हेमू कालानी का नाम सदैव अमर रहेगा।  
अमर बलिदानी शहीद हेमू कालानी को शत शत नमन।  जय हिन्द।  जय भारत।      

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