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Showing posts from November, 2020

युगों की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ

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युग शब्द का अर्थ होता है निश्चित संख्या की कालावधि।  हमारे धर्म शास्त्रों में चार युगों की व्याख्या मिलती है सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग।  हमारे शास्त्रों में इन चारों युगो के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता  है, उसी आधार पर हम भी इन युगों के बारे में जानने का प्रयास करते हैं कि किस किस युग में किस प्रकार की व्यवस्थाएँ रही है, उस युग में हुए अवतारों के साथ ही उस युग के लोगो के बारे में प्रमाण और जानकारियों का  हमारे धर्म शास्त्रों में कुछ इस प्रकार का उल्लेख प्राप्त होता है, हालाँकि विभिन्न विभिन्न मत मतांतर के कारण मतभेद भी है फिर भी हम उस युग के बारे में मुख्यतः ज्ञानार्जन करते हुए कुछ अल्प ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।     

श्री कृष्ण लीला - कुम्हार पर प्रभु कृपा

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                                                                     आप सभी को  दुर्गा प्रसाद शर्मा का जय श्री कृष्ण। वैसे तो भगवान श्री कृष्ण की कई सुन्दर लीलाएँ हैं किन्तु बाल लीलाओं का एक अलग ही आनंद है।  प्रभु की लीलाओं का बखान करने की हमारी तो कोई सामर्थ्य नहीं है बस इस बहाने से प्रभु का स्मरण हम और आप कर रहे हैं।  यशोदा नंदन श्री बाल कृष्ण जी की एक लीला जिसमे उन्होंने एक कुम्हार पर अपनी कृपा की।  ठाकुरजी की उस सुन्दर कथा को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ। एक बार की बात है कि गोकुल की गोपियों के मुख से आये दिनों बाल कृष्ण की शिकायतों और उलाहनों से यशोदा मैया बड़ी व्यथित हो गई थी और वे गुस्से में आकर छड़ी लेकर बाल कृष्ण की ओर दौड़ी, जब प्रभु श्री कृष्ण ने मैया को क्रोध में अपनी ओर आते देखा तो वे अपना बचाव करने के लिए भागने लगे। ...

श्री गुरु रामदास जी

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  सिख मत के चतुर्थ गुरु श्री रामदास जी हुवे, गुरुदेव रामदास जी का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर की चुना मंडी में हुआ था। गुरु रामदास जी का पूर्व नाम भाई जेठा जी था।  बाबा हरिदास जी सोढ़ी खत्री इनके पिताजी थे और दयाकौर इनकी माता जी थी।  इनके परिवार की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी, मात्र सात वर्ष की आयु में ही इनके माता पिता का साया नहीं रहा होने के कारण इनकी नानीजी जी इन्हें अपने यहां बसर्के गांव ले आई थी। बसर्के गांव में कई वर्षो तक उबले हुवे चने बेचकर अपना जीवन यापन किया करते थे, किन्तु दयाभाव और उदारता इतनी थी की कई बार किसी जरूरतमंद या किसी के द्वारा याचना करने पर चने बेचना भूलकर चने उन्हें दे दिया करते थे। एक बार गुरुदेव अमरदास जी बसर्के गांव में जेठा जी के दादा जी के देहांत के समय इनके घर पर पधारे तब उन्हें जेठा जी से गहरा लगाव हो गया था। उसके बाद जेठा जी भी अपनी नानी के साथ गोइंदवाल ही आकर रहने लगे थे और वहां भी उबले चने बेचने का काम करने लगे साथ ही जेठा जी गुरु अमरदास जी की सेवा करते हुवे धार्मिक संगत में भी भा...