युगों की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ


युग शब्द का अर्थ होता है निश्चित संख्या की कालावधि।  हमारे धर्म शास्त्रों में चार युगों की व्याख्या मिलती है सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग।  हमारे शास्त्रों में इन चारों युगो के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता  है, उसी आधार पर हम भी इन युगों के बारे में जानने का प्रयास करते हैं कि किस किस युग में किस प्रकार की व्यवस्थाएँ रही है, उस युग में हुए अवतारों के साथ ही उस युग के लोगो के बारे में प्रमाण और जानकारियों का  हमारे धर्म शास्त्रों में कुछ इस प्रकार का उल्लेख प्राप्त होता है, हालाँकि विभिन्न विभिन्न मत मतांतर के कारण मतभेद भी है फिर भी हम उस युग के बारे में मुख्यतः ज्ञानार्जन करते हुए कुछ अल्प ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।     
सत युग अर्थात सत्य युग -
सतयुग नामक प्रथम युग की मुख्य विशेषताऍ  कुछ इस प्रकार हैं  - 
सतयुग की कालावधि हमारे धर्म शास्त्रों में 17,28,000  वर्ष की मानी गई है।  इस युग का तीर्थ तीर्थराज पुष्कर को माना गया है। इस सतयुग में रत्न आदि मुद्रा के रूप में प्रचलन में थे और पात्र स्वर्ण के होते थे।  इस युग में मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह आदि अमानवीय अवतारों के साथ ही मोहिनी अवतार भी हुआ। मत्स्य अवतार में जहां दैत्य हयग्रीव का संहार किया गया वहीं वेदो को पुनर्स्थापित करने और प्रलय काल के समय नवीन सृष्टि की स्थापना और रक्षा का कार्य भी संपन्न हुआ था। कूर्म अवतार समुद्र मंथन के समय मंदार पर्वत को आधार प्रदान करने के लिए हुआ था जिसके कारण ही समुद्र मंथन हो सका था। इसी समय समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत के वितरण की व्यवस्था के लिए मोहिनी अवतार भी हुआ था। हिरण्याक्ष के वध और हिरण्याक्ष के द्वारा पृथ्वी को रसातल में डुबो देने के कारण पृथ्वी को पुनः यथावत स्थापित करने का कार्य वराह अवतार में संपन्न हुआ था तथा नरसिंह अवतार हिरण्यकश्यप के संहार के लिए लिया गया था।  इस युग में मनुष्य की लम्बाई करीब 32 फिट की बताई जाती है और मनुष्य की आयु एक लाख वर्ष होती थी। ऐसा बताया जाता था कि  इस युग में मनुष्यों में सिर्फ पुण्य ही होता था पाप की मात्रा शून्य होती थी।   

त्रेता  युग -  
त्रेता युग नामक द्वितीय युग की मुख्य विशेषताऍ  कुछ इस प्रकार हैं  - 
त्रेता युग की कालावधि हमारे धर्म शास्त्रों में 12,96,000  वर्ष की मानी गई है।  इस युग का तीर्थ नैमिषारण्य को माना गया है। इस त्रेतायुग में स्वर्ण मुद्रा के रूप में प्रचलन में था और पात्र चाँदी के होते थे।  इस युग में वामन, परशुराम और राम का अवतार हुआ। वामन अवतार में जहाँ बलि का उद्धार करते हुवे उन्हें पाताल भेजने का कार्य संपन्न हुआ वहीं परशुराम जी के अवतार में बल के मद से चूर क्षत्रियों का संहार हुआ। रामावतार में रावण का वध और रावण द्वारा बंधक देवताओं को बंधनमुक्त किये जाने के कार्य संपन्न हुए। इस युग में मनुष्य की लम्बाई करीब 21  फिट की बताई जाती है और मनुष्य की आयु दस हजार वर्ष होती थी। ऐसा बताया जाता था कि  इस युग में मनुष्यों में पुण्य की मात्रा 75 प्रतिशत और पाप की मात्रा 25 प्रतिशत होती थी।   

द्वापर  युग -  
द्वापर युग नामक तृतीय युग की मुख्य विशेषताऍ  कुछ इस प्रकार हैं  - 
द्वापर युग की कालावधि हमारे धर्म शास्त्रों में 8,64,000  वर्ष की मानी गई है।  इस युग का तीर्थ कुरुक्षेत्र को माना गया है। इस द्वापर युग में चाँदी मुद्रा के रूप में प्रचलन में थी और पात्र ताम्र के होते थे।  इस युग में कृष्ण  का अवतार हुआ था जिस अवतार में भगवान् श्री कृष्ण ने कंस आदि कई दैत्यों का संहार किया था।  इस युग में मनुष्य की लम्बाई करीब 11 फिट की बताई जाती है और मनुष्य की आयु एक हजार वर्ष होती थी। ऐसा बताया जाता था कि  इस युग में मनुष्यों में पुण्य की मात्रा 50 प्रतिशत और पाप की मात्रा 50 प्रतिशत होती थी।    

कलि युग -  
कलि युग नामक चतुर्थ युग की मुख्य विशेषताऍ  कुछ इस प्रकार हैं  - 
कलि युग की कालावधि हमारे धर्म शास्त्रों में 4,32,000 वर्ष की मानी गई है।  इस युग का तीर्थ गंगा को माना गया है। इस सतयुग में लोहा मुद्रा के रूप में प्रचलन में है और पात्र मिटटी के होते हैं। इस कलि युग में बुद्ध अवतार के आलावा भविष्य में भगवान का कल्कि अवतार होने का हमारे धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है ।  बताया जाता  है कि यह अवतार मनुष्य जाति के उद्धार और अधर्मियों के विनाश एवं धर्म की रक्षा के लिए होना हमारे धर्म शास्त्रों में बताया जाता है।  इस युग में मनुष्य की लम्बाई करीब 5.5 फिट की बताई जाती है और मनुष्य की आयु साठ से एक सौ वर्ष मानी गई है जो जैसे जैसे कलियुग का समय बढ़ेगा वैसे वैसे आयु का कम होना बताया गया है। ऐसा बताया जाता था कि  इस युग में मनुष्यों में पुण्य की मात्रा 25 प्रतिशत और पाप की मात्रा 75 प्रतिशत होती थी।    






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