श्री कृष्ण लीला - कुम्हार पर प्रभु कृपा

                                                                   

आप सभी को  दुर्गा प्रसाद शर्मा का जय श्री कृष्ण। वैसे तो भगवान श्री कृष्ण की कई सुन्दर लीलाएँ हैं किन्तु बाल लीलाओं का एक अलग ही आनंद है।  प्रभु की लीलाओं का बखान करने की हमारी तो कोई सामर्थ्य नहीं है बस इस बहाने से प्रभु का स्मरण हम और आप कर रहे हैं।  यशोदा नंदन श्री बाल कृष्ण जी की एक लीला जिसमे उन्होंने एक कुम्हार पर अपनी कृपा की।  ठाकुरजी की उस सुन्दर कथा को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ। एक बार की बात है कि गोकुल की गोपियों के मुख से आये दिनों बाल कृष्ण की शिकायतों और उलाहनों से यशोदा मैया बड़ी व्यथित हो गई थी और वे गुस्से में आकर छड़ी लेकर बाल कृष्ण की ओर दौड़ी, जब प्रभु श्री कृष्ण ने मैया को क्रोध में अपनी ओर आते देखा तो वे अपना बचाव करने के लिए भागने लगे।  भागते भागते श्री कृष्ण एक कुम्हार के पास पंहुचे, कुम्हार उस समय मिटटी के घड़े बनाने में लगा हुआ था किन्तु जैसे ही उसने श्री कृष्ण को देखा तो वह बड़ा ही प्रसन्न हुआ क्योंकि कुम्हार यह जानता था कि श्री कृष्ण साक्षात् परमेश्वर है।  

कुम्हार के पास पंहुचकर बाल कृष्ण बोले  कि आज मेरी मैया मुझ पर बड़ी क्रोधित है और छड़ी लेकर मेरे पीछे आ रही है मुझे कहीं छुपा लो। तब कुम्हार ने बालक श्री कृष्ण को एक बड़े मटके के नीचे छिपा दिया। कुछ ही क्षणों में माता यशोदा भी वहाँ आ गयीं और उन्होंने कुम्हार से पूछा क्यूँ  रे, कुम्हार तूने मेरे कन्हैया को कहीं देखा है क्या ? कुम्हार ने कह दिया नहीं मैया जी मैंने तो कन्हैया को नहीं देखा है।  नन्दलाल मैया और कुम्हार की सब बातें उस बड़े घड़े के नीचे से सुन रहे थे।  जब थोड़ी देर तक मैया की कोई आहट नहीं आई तब कन्हैया ने कुम्हार से कहा कि मैया चली गई हो तो मुझे इस घड़े से बाहर निकालो। किन्तु कुम्हार बड़ा ही चतुर था वह बोला कन्हैया इतनी आसानी से मैं तुम्हें बाहर नहीं निकालने वाला, पहले तुम मुझे चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त करने का  वचन दो। ठाकुर जी कुम्हार की चतुराई पर मुस्कुराए और बोले ठीक है मैं तुम्हें चौरासी लाख योनियों से मुक्त करने का वचन देता हूँ, अब तो बाहर निकाल दो।  


कुम्हार ने सोचा कि आज तो प्रभु श्री कृष्ण मेरे ही बस में हैं और जो जो भी मांगूंगा मुझे मिल जायेगा और यह अवसर दोबारा तो आने वाला है नहीं।  यह सोचकर वह बोला की प्रभु जी मुझे अकेले को नहीं मेरे पुरे परिवार के सभी लोगों को चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त करने का वचन दोगे तो ही मैं आपको इस घड़े से बाहर निकालूंगा। मेरे ठाकुर भी बेबस से होकर बोले चलो ठीक है तुम्हारे परिवार के सभी सदस्यों को भी चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त करने का वचन देता हूँ, अब तो बाहर निकालो। लेकिन कुम्हार ने उन्हें बाहर नहीं निकाला और बोला प्रभु जी बस एक और विनती है उसे भी पूरा करने का वचन दोगे तब ही बाहर निकालूंगा।  ठाकुर जी भी आनंद लेते हुए बोले भई वह भी बता दो कि क्या चाहते हो ? कुम्हार बोला प्रभु जी आप जिस घड़े के नीचे छिपे हुवे हैं उसकी मिटटी मेरे बैलों पर लाद करके लाई गई है, इस कारण से मेरे बैलों को भी आप चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त कर देने का वचन दो। ठाकुर जी कुम्हार पर प्रसन्न थे उन्होंने कुम्हार के बैलों को भी चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त करने का वचन दे दिया। 


इतना सब होने के बाद ठाकुर जी बोले अब तो तुम्हारी सभी इच्छाऍ पूरी हो गई है, अब तो मुझे बाहर निकालो। तब कुम्हार बोला कि अभी नहीं प्रभु  अभी एक इच्छा और बाकी रह गई है उसे भी पूरा आपको ही करना है और इसके पहले आपको बाहर निकाल दूंगा तो आप फिर मेरे हाथ में थोड़े ही आओगे। ठाकुर जी द्वारा कुम्हार की अंतिम इच्छा पूछने पर कुम्हार बोला प्रभु मेरी अंतिम इच्छा यह है कि जो जो भी प्राणी हम दोनों के इस संवाद को सुनेगा आप उसे भी चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त करने का वचन दीजिये तब ही आपको घड़े से बाहर निकालूंगा। कुम्हार की प्रेम से परिपूर्ण बातों को सुनकर ठाकुर जी महाराज अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कुम्हार की उस इच्छा को भी पूर्ण करने का वचन दिया। ठाकुर जी से सभी इच्छाओं को मनवाने के बाद कुम्हार ने श्री कृष्ण जी को घड़े से बाहर निकाल दिया और उनके श्री चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। प्रभु जी के चरण धोये और चरणामृत का पान किया। अपनी पूरी झोपड़ी में  चरणामृत का छिड़काव किया और प्रभु जी के गले से लगकर भाव विभोर होकर प्रभु में ही विलीन हो गया। 


अब यहाँ जरा यह सोचने वाली बात है कि जो बाल कृष्ण सात कोस में फैले लम्बे चौड़े गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठका अंगुली पर उठा सकते हैं तो क्या वे एक मामूली सा मिटटी का घड़ा नहीं उठा सकते थे। कोई कितना भी जतन करे,  यज्ञ करे,  अनुष्ठान करे,  दान करे, चाहे कितनी ही भक्ति करे लेकिन जब तक आपके दिल में किसी प्राणी के लिए दुःख दर्द या भावना नहीं है तो  प्रभु का दर्शन तो दूर भक्ति भी प्राप्त नहीं हो सकती है। बिना प्रेम रीझे नहीं नटवर नन्द किशोर, पल में चित्त चुराये वो नटखट माखन चोर। जय श्री कृष्ण।                   




 

 

 

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