बुजुर्गों से है परिवार की सुरक्षा

आज हम पाश्चात्य संस्कृति को अपना कर हम अपनी मूल संस्कृति और संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं।  हम अपने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए तो चिंतित रहते हैं किन्तु हम अपने बच्चों को संस्कारित नहीं कर पा रहे हैं जिसके परिणामस्वयरूप नई पीढ़ी संस्कारविहीन होकर मात्र अपने स्वार्थ के वशीभूत क्या नहीं कर रही है।  इस स्थिति में सर्वाधिक पीड़ित पक्ष यदि है तो वह है वृद्धजन। समाचार पत्रों और न्यूज चैनल पर कई खबरें देख,सुन और पढ़कर बड़ा ही दुःख होता है कि उच्च शिक्षित बच्चे जिनके लिए उनके माता पिता ने अपनी समस्त इच्छाओं का गला घोंट कर उनके उज्जवल भविष्य के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा दिया हैं वे ही बच्चे अपने माता पिता को कुछ नहीं समझते हैं और तो और उन्हें अपने साथ रखना तक नहीं चाहते, घर से बाहर कर देते है वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं।  आज ही मैंने एक कहानी पढ़ी, जो हो सकता है काल्पनिक हो किन्तु आज के परिपेक्ष्य में सत्यता के काफी करीब है, इसलिए आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ।   
सुहावने मौसम में हल्के बादल और पक्षियों की चहचहाहट भी मानसी के मन को उस प्रकार का सुकून नहीं दे पा रहे थे जैसा वह छोड़ कर आई थी। बच्चे स्कूल चले गए थे और हरीश के ऑफिस जाने के बाद वह अकेली बड़ी उदास सी टेरेस पर बैठी थी।  हरीश का नए शहर में ट्रांसफर हो गया था, इसके पहले वे परिवार के साथ रहते थे।  मानसी खुद भी जॉब करती थी, परिवार के साथ रहने के कारण घर और बच्चों की तरफ से कोई चिंता नहीं थी।  विचारों में खोए खोए अनायास ही उसकी निगाह घर से थोड़ी दूर पेड़ की ओट में कड़ी बुढ़िया पर पड़ी जो की उनके घर की तरफ ही देख रही थी।  इसके पहले भी दो चार बार मानसी उस बुढ़िया को इस प्रकार देख चुकी थी, इस कारण उसके मन में शंका उत्पन्न हो गई और उसकी बैचेनी बढ़ गई। 

हरीश का ट्रांसफर हुवे दो माह हो गए थे, आते ही हरीश तो अपने काम में व्यस्त हो गए, बिटिया पिंकी का भी आसानी से स्कुल में एडमिशन हो गया बेटे राजू के एडमिशन में कुछ परेशानी आई थी किन्तु आखिर में उसका भी एडमिशन हो गया था, बच्चे धीरे धीरे रूटीन में आ रहे थे  किन्तु मानसी एडजस्ट नहीं हो पाई थी।  ससुर  और देवर देवरानी के साथ रहते हुवे घर और रसोई उनके भरोसे छोड़कर अपने जॉब पर चली जाती थी बच्चों की भी कोई चिंता नहीं थी।  जीवन व्यवस्थित चल रहा था किन्तु ट्रांसफर से सब कुछ गड़बड़ा गया था। यहाँ आस पास कोई अच्छा डे केयर भी नहीं था और भरोसे लायक कोई मेड भी नहीं मिल रही थी, इस कारण जॉब तो कर ही नहीं सकती थी।  इन सब टेंशन के बीच इस विचित्र बुढ़िया के कारण मानसी और अधिक परेशान हो गई थी। 

हरीश के ऑफिस से आने के बाद मानसी से उस बुढ़िया की बात सुनकर हरीश को भी कुछ चिंता हुई और उसने मानसी को कहा कि ठीक है यदि अगली बार देखो तो चौकीदार से ध्यान रखने को कहना अन्यथा पुलिस में शिकायत करेंगे।  कुछ दिन इसी प्रकार निकल गए।  मानसी भी घर की स्थिति को पुनः ठीक करने के लिए जॉब के बारे मेँ सोचने लगी किन्तु उसे कोई समाधान नहीं दिखाई दिया। एक दिन सुबह मानसी ने टैरेस से देखा कि  चौकीदार एक बुढ़िया को लेकर घर के गेट पर आया है और हरीश उनसे कुछ बात कर रहा है, उसे बुढ़िया का चेहरा कुछ जाना पहचाना लग रहा था। हरीश उनसे बात करके घर के अंदर आ गया था और वह बुढ़िया गेट पर ही खड़ी थी। मानसी भी तब तक नीचे आ गई थी, बुढ़िया को भी उसने पहचान लिया था, उसने हरीश से पूछा कि यह वही बुढ़िया है और ये यहाँ क्यों आई है ? तब हरीश बोला बताता हूँ  किन्तु जैसा तुम सोच रही हो वैसा नहीं है।  वह इस घर की पुरानी मालकिन है।          

मानसी ने आश्चर्य से कहा हमने तो यह घर प्रकाश जी से ख़रीदा  है।  तब हरीश ने कहा कि यह लाचार बेबस बुढ़िया उसी प्रकाश की अभागी माँ यशोदा देवी है, जिसने पहले धोखे से सब कुछ अपने नाम करा लिया और फिर अपनी बूढ़ी माँ को वृद्धाश्रम छोड़कर घर हमें बेचकर विदेश चले गए। मानसी को काफी दुःख हुआ फिर अचानक याद आया कि स्टोर रूम की सफाई करते समय  घर के नाम की तख्ती जिस पर यशोदा निवास लिखा था साथ ही एक महिला की  पुरानी फोटो देखी थी, जिस महिला का चेहरा इस बुढ़िया से मिलता जुलता था।  मानसी की चिंता अब यह थी कि हमने तो प्रकाश को पूरी कीमत देकर घर ख़रीदा है ये अपना घर वापस लेने तो नहीं आई है। तब हरीश बोला ऐसा नहीं है आज इनके पति की पहली बरसी है और ये उस कमरे में कुछ देर बैठकर प्रार्थना करना चाहती है जहाँ इनके पति ने अंतिम साँस ली। मानसी असमंजस में थी किन्तु हरीश ने कहा कि यदि हमारी हाँ से उन्हें कुछ ख़ुशी मिलती है तो क्या परेशानी है, तब मानसी भी सहमत हुई। यशोदा देवी अंदर आई उनकी आँखे छलक उठी थी उन्होंने मानसी और हरीश को आशीर्वाद दिया। वे उस घर को देख रही थी जो कभी उनका अपना था, जिससे काफी सुख और दुःख की यादें जुडी हुई थी।  

यशोदा देवी उस कमरे में गई जो कभी उनका कमरा हुआ करता था, कुछ देर बैठ कर प्रार्थना की फिर बताया कि वे इसी घर में दुल्हन बन कर आई थी कई वर्ष आनंद के साथ गुजरे थे, पुरानी यादों को याद करते हुवे वापस लौटने लगी किन्तु पैर नहीं उठ रहे थे। तब मानसी ने उन्हे बैठाया और बाहर जाकर हरीश को बुलाया और पूछा कि क्यों न हम  इन्हें यही रहने दें हमें इनका सानिध्य मिल जायेगा और इनके टूटे दिल को कुछ आराम मिल जायेगा, अकेली है और इस घर से इनकी यादे भी जुडी हुई है ये घर में रहेंगी तो घर के व्यक्ति की तरह घर का ध्यान रखेंगी बच्चो को भी इनका सानिध्य मिलेगा और ये यहाँ रहने के लिए तैयार हो जावे तो मैं  भी जॉब कर सकूंगी। दोनों की सहमति हो जाने पर यशोदा देवी के समक्ष प्रस्ताव रखा कि आप यहीं रहें।  यशोदा देवी का मन तो था किन्तु वे यह भी नहीं चाहती थी कि उनके कारण किसी को कोई परेशानी हो। हरीश और मानसी के मनुहार को देख अनुभवी यशोदा देवी मानसी की मंशा तो समझ ही चुकी थी किन्तु उस घर में रहने का मोह उन्हें मना करने से रोक रहा था।  

यशोदा देवी उनके साथ रहने लगी।  सभी उन्हें अम्मा का सम्बोधन देते थे और उन्होंने भी घर की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी हर काम उनकी निगरानी में होने लगा।  घर की और से बेफिक्र मानसी ने भी जॉब शुरू कर दिया समय कैसे बीतता गया मालूम ही नहीं पड़ा। अम्मा सुबह से दोनों बच्चो को उठाना, तैयार कर स्कूल भेजना, खाना तैयार करना सब कुछ अपने हाथ में ले लिया। मानसी को भी काफी अचरज होता कि पिज्जा चिप्स खाने वाले बच्चे ख़ुशी ख़ुशी भोजन करने लगे, टेलीविजन देखने वाले बच्चे अम्मा के पास बैठकर कहानी सुनने लगे, बात बात पर चिड़ने वाले बच्चे माता पिता का कहना तो मानने लगे ही सम्मान भी करने लगे, सब काम समय पर करने लगे। मानसी को पहली बार इस बात का अहसास हुआ की घर में बुजुर्गों की उपस्थिति मात्र से कितना सकारात्मक प्रभाव होता है। 

मानसी का जन्मदिन आ गया दोनों पति पत्नी ने सोचा अम्मा बच्चो का ध्यान रख लेंगी वे बाहर डिनर करे। उस दिन जल्दी घर आ गए।  घर में प्रवेश करते ही दोनों हैरान हो गए बच्चो ने घर को गुब्बारों आदि से सजा रखा था और अम्मा ने केक के साथ काफी व्यंजन बना रखे थे।  इस सरप्राइज पार्टी से मानसी की आँखे भर गई, उसकी लाइफ में ऐसा पहली बार हुआ था। बच्चे उसे देख कर हैप्पी बर्थ डे कहते हुवे दौड़े आये और बोले अम्मा ने बता दिया था कि आपको अच्छा लगेगा। अम्मा के प्रति मानसी के मन में कृतज्ञता के भाव आये कि आज उनके कारण बच्चे क्या से क्या हो गए और घर में कितनी रौनक आ गई।  केक काटने के बाद यशोदा देवी ने अपने पल्लू में से लाल रुमाल में लिपटी कोई चीज मानसी को देकर कहा कि बेटी यह तुम्हारे जन्म दिन का उपहार। मानसी ने जब खोलकर देखा तो उसमे सोने की चैन थी, अम्मा बोली मेरा बहुत मन था कि तुम्हे कुछ उपहार दूँ किन्तु इसके आलावा मेरे पास कुछ भी नहीं है और अब मैं इसका करूंगी भी क्या।  तुम पहनना तुम्हे अच्छी लगेगी। यह देखकर मानसी की आत्मा उसे कचोटने लगी कहाँ तो उसने स्वार्थवश अम्मा को आश्रय दिया और अम्मा ने क्या से क्या कर दिया।  

मानसी ने सोने की चैन लेने से मना करने पर अम्मा बोली बेटी ले ले एक माँ का आशीर्वाद समझ कर ले ले।  एक माँ का आशीर्वाद समझकर रख ले क्या पता तेरे अगले जन्मदिन तक मैं रहूं या नहीं।  यह सुनकर तो मानसी के सब्र का बांध टूट सा गया उसे ऐसा लगा मानो बरसो बाद उसे उसकी माँ मिल गई हो।  वह उनके गले लग कर फूट फूट कर रोई और बोली ऐसा न कहो अम्मा ईश्वर आपका साया हमारे सर पर सदैव बना कर रखें। मानसी अपना वह जन्मदिन कभी नहीं भूली क्योकि उसे उस दिन माँ की ममता से भरा ऐसा अनमोल उपहार मिला जो किस्मत से ही मिलता है।                    










Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

बूंदी के हाडा वंशीय देशभक्त कुम्भा की देशभक्ति गाथा

महाभारत कालीन स्थानों का वर्तमान में अस्तित्व