लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मेँ कई ऐसे महानायक हैं जिन्होंने अपने महान कार्यों से देश को स्वतंत्र कराने में अहम भूमिका निभाई है, ऐसे ही एक महान नायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जिन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और भारतीय क्रांति का जनक भी कहा जाता है। बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी नामक स्थान पर एक सुसंस्कृत मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक था। श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक पहले रत्नागिरी में सहायक अध्यापक थे उसके बाद में वे पुणे और ठाणे में सहायक उप शैक्षिक निरीक्षक के रूप में कार्यरत थे। प्रारंभिक शिक्षा मराठी में पूर्ण होने के बाद बाल गंगाधर तिलक को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने के लिए पुणे भेजा गया। बाल गंगाधर तिलक ने डेक्कन कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक शिक्षक और शिक्षक संस्था के संस्थापक के रूप में उनका सार्वजानिक जीवन आरम्भ हुआ। 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरम दल में अपने उग्र विचारों के कारण बाल गंगाधर तिलक की एक अलग ही पहचान थी। नरम दल वाले छोटे मोटे सुधारों के लिए सरकार के पास अपना वफादार प्रतिनिधिमंडल भेजकर कार्य करवाने में अधिक विश्वास रखते थे जबकि  बाल गंगाधर तिलक का लक्ष्य तो स्वराज था, छोटे मोटे सुधार नहीं।  उन्होंने कांग्रेस को अपने उग्र विचारों को स्वीकार करने के लिए राजी करने का काफी प्रयास किया था, इस मामले में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में नरम दल के साथ उनका संघर्ष भी हुआ था।  ब्रिटिश सरकार  ने तिलक पर राजद्रोह का आरोप लगाकर मुकदमा भी चलाया था, जिसमे तिलक को 6 वर्ष के कैद की सजा सुनाई होकर सजा काटने के लिए उन्हें मांडले और बर्मा भेज दिया गया था। भारत के वाइसराय लार्ड कर्जन ने जब बंगाल का विभाजन किया था तब  बाल गंगाधर तिलक ने बंगालियों द्वारा इस विभाजन को रद्द करने की मांग का जबरदस्त समर्थन कर ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार के लिए भी आवाज उठाई जो जल्द ही एक देशव्यापी आंदोलन बन गया था।  कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गई गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपतराय और बिपिनचन्द्र पाल शामिल थे।  इन तीनो को लाल बाल पाल के नाम से जाना जाने लगा।  

ब्रिटिश शासन काल में वैचारिक मतभेद, जाति  और सम्प्रदाय में बंटे समाज को एकजुट कर संघर्ष के लिए प्रेरित करने के लिए बाल गंगाधर तिलक  ने गणेश उत्सव मनाना प्रारम्भ किया था।  मुंबई में मनाया जाने वाला गणेश उत्सव वही उत्सव है जिसने अग्रेजों के खिलाफ जन आंदोलन तैयार करने में अहम् भूमिका निभाई थी और धीरे धीरे यह गणेश उत्सव आज़ादी की एक मिसाल ही बन गया था। बाल गंगाधर तिलक  ने "स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं ऐसे लेकर रहूँगा" के नारे को बुलंद करते हुवे एनी बेसेंट जी के साथ इंडियन होमरूल लीग की स्थापना की। होमरूल आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक को काफी लोकप्रियता मिली, जिस कारण उन्हें लोकमान्य की उपाधि प्राप्त हुई।  यह सत्याग्रह आंदोलन जैसा नहीं था इस आंदोलन का उद्देश्य भारत में स्वराज की स्थापना था।  इसमें चार पांच लोगों की टुकड़ी बना दी जाती थी जो पुरे भारत में बड़े बड़े लोगो से मिलकर आंदोलन के प्रति लोगों को जागरूक करते थे।    

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक बाल विवाह एवं अन्य सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ थे, उन्होंने अपने कई भाषणों में समाज में व्याप्त कुरीतियों की निंदा की। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक अच्छे लेखक भी थे, उन्होंने मराठी भाषा में "केसरी" और अंग्रेजी भाषा में  "द  मराठा" के माध्यम से लोगों की सुप्त चेतना को जागृत करने का काम प्रारम्भ किया। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अपने सामाजिक कार्यों और गतिविधियों के कारण आज भी याद किये जाते है। 

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के बचपन की अनेक घटनाओं में से दो घटनाऐ जिससे उनका स्वभाव एवं सिद्धांत दर्शित होते हैं।  एक बार बाल तिलक का मन चौपड़ खेलने का हुवा किन्तु साथ में कोई खेलने वाला नहीं होने के कारण एक खम्बे को अपना साथी बना कर खेलने लगे। दाँये हाथ से खम्बे के पासे और बाँये हाथ से अपने पासे फेंककर खेलने लगे और खेलते हुवे दो बार हार भी गए।  उनकी दादी दूर बैठी देख रही थी, वे हंस कर बोल उठी अरे बेटा गंगाधर तुम खम्बे से हार गए। दादी की बात का जवाब बाल तिलक ने देते हुवे कहा कि मुझे दांये हाथ से खेलने की आदत है और वह हाथ खम्बे की तरफ होने से वह हाथ उसका हुआ इसलिए खम्बा जीत गया और मैं हार गया। 

एक बार विद्यालय में उनकी क्लास के कुछ विद्यार्थियों ने मूंगफली खाकर छिलके क्लास में ही फेंक दिए जब अध्यापक ने क्लास को गन्दा देखा तो वे पूरी क्लास को ही दण्डित करने लगे।  जब शिक्षक ने उन्हें भी दंड देने के लिए हाथ आगे करने को कहा तो तिलक ने दंड स्वीकार करने से मना कर दिया और स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब मैंने क्लास को गन्दा नहीं किया तो दंड क्यों स्वीकार करुँ।      

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक बाल विवाह एवं अन्य सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ थे, उन्होंने अपने कई भाषणों में समाज में व्याप्त कुरीतियों की निंदा की। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक अच्छे लेखक भी थे, उन्होंने मराठी भाषा में "केसरी" और अंग्रेजी भाषा में  "द  मराठा" के माध्यम से लोगों की सुप्त चेतना को जागृत करने का काम प्रारम्भ किया। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अपने सामाजिक कार्यों और गतिविधियों के कारण आज भी याद किये जाते है। आदरणीय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी को दुर्गा प्रसाद शर्मा का शत शत नमन।   


 


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