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Showing posts from September, 2020

प्राचीन गुरुकुल की शिक्षा और पर्व - आयोजन

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  प्राचीन समय में गुरुकुल की शिक्षा पद्धति में संस्कारों के अतिरिक्त व्यक्तित्व निर्माण, पूजा उपासना की विभिन्न पद्धति, रीति की महत्वपूर्ण शिक्षा उपासना के उपकरणों के माध्यम से, विभिन्न देवी देवताओं के रहस्य, अवतारों, उनके आयुधों के आधार पर दी जाती थी।  हमारे ऋषि मुनियों ने सिर्फ इतना ही नहीं किया बल्कि उन्होंने समाज को उन्नत और सुविकसित बनाने, उसमे सामूहिकता, ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा से कार्य करने, नागरिकता के कर्तव्य एवं दायित्वों के आधार पर परमार्थ परायणता, देशभक्ति और लोकमंगल की प्रेरणा की ऊर्जा प्रदान करने के लिए जिस दूरदर्शी प्रणाली का अविष्कार किया वह प्रणाली है - पर्व - आयोजन। 

बुजुर्गों से है परिवार की सुरक्षा

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आज हम पाश्चात्य संस्कृति को अपना कर हम अपनी मूल संस्कृति और संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं।  हम अपने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए तो चिंतित रहते हैं किन्तु हम अपने बच्चों को संस्कारित नहीं कर पा रहे हैं जिसके परिणामस्वयरूप नई पीढ़ी संस्कारविहीन होकर मात्र अपने स्वार्थ के वशीभूत क्या नहीं कर रही है।  इस स्थिति में सर्वाधिक पीड़ित पक्ष यदि है तो वह है वृद्धजन। समाचार पत्रों और न्यूज चैनल पर कई खबरें देख,सुन और पढ़कर बड़ा ही दुःख होता है कि उच्च शिक्षित बच्चे जिनके लिए उनके माता पिता ने अपनी समस्त इच्छाओं का गला घोंट कर उनके उज्जवल भविष्य के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा दिया हैं वे ही बच्चे अपने माता पिता को कुछ नहीं समझते हैं और तो और उन्हें अपने साथ रखना तक नहीं चाहते, घर से बाहर कर देते है वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं।  आज ही मैंने एक कहानी पढ़ी, जो हो सकता है काल्पनिक हो किन्तु आज के परिपेक्ष्य में सत्यता के काफी करीब है, इसलिए आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ।   

संझा (सांझी) पर्व

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भारतीय लोक कलाओं में भारतीय संस्कृति के स्वरुप और सौंदर्य के दर्शन तो होते ही है, इनमें चित्र कला एवं आकृतियों का भी अपना अलग ही महत्त्व है।  ऐसी ही एक कला है संझा या सांझी कला और इस कला के पर्व को संझा पर्व के रूप में भाद्रप्रद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक सोलह दिनों तक मनाया जाता है। श्राद्ध पक्ष अर्थात पितृ पक्ष में मनाया जाने वाला यह पर्व विशेषकर कुमारी कन्याओं का ही एक पर्व है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह पर्व सर्वप्रथम माता पार्वती ने मनवांछित वर प्राप्ति के लिए मनाया था।  इसके आलावा वृषभान दुलारी राधारानी द्वारा भी इस पर्व को मनाये जाने की मान्यता चली आ रही है। पुष्टिमार्गीय सेवा में पुरे सोलह दिनों तक फूलों की सांझी बनाइ जाती है। मालवा और निमाड़ की अपनी अनूठी लोक कला और परम्परा अनुसार एक विशिष्ठ पहचान रखने वाला पर्व है संझा पर्व। कला की अभिवयक्ति में जब धर्म का सम्पुट लग जाता है तो वह पवित्र और पूजनीय हो जाती है। पितृ पक्ष में मनाया जाने वाला यह पर्व कुमारी कन्याओं का अनुष्ठानिक व्रत वाला पर्व है।  कहा जाता है कि कुमारी कन्याएँ अपने ...

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

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  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मेँ कई ऐसे महानायक हैं जिन्होंने अपने महान कार्यों से देश को स्वतंत्र कराने में अहम भूमिका निभाई है, ऐसे ही एक महान नायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जिन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और भारतीय क्रांति का जनक भी कहा जाता है। बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी नामक स्थान पर एक सुसंस्कृत मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक था। श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक पहले रत्नागिरी में सहायक अध्यापक थे उसके बाद में वे पुणे और ठाणे में सहायक उप शैक्षिक निरीक्षक के रूप में कार्यरत थे। प्रारंभिक शिक्षा मराठी में पूर्ण होने के बाद बाल गंगाधर तिलक को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने के लिए पुणे भेजा गया। बाल गंगाधर तिलक ने डेक्कन कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक शिक्षक और शिक्षक संस्था के संस्थापक के रूप में उनका सार्वजानिक जीवन आरम्भ हुआ।