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भगवान श्री परशुरामजी

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन। हमारे धर्मग्रंथों में भगवान श्री नारायण के कई अवतारों का उल्लेख मिलता है किन्तु मुख्य रूप से दशावतार माने गए हैं, जोकि मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंग, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि। श्रीमद भगवद गीता में स्वयं भगवान द्वारा स्वीकार करते हुवे कहा गया है कि यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मनं सृजाम्यहम।। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।  धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। अर्थात हे पार्थ जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब तब ही मैं अपने साकाररूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ।  साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं युग युग में प्रकट हुआ करता हूँ। भगवान श्री परशुराम विष्णु भगवान के छठे अवतार अपने ओज और तेज के लिए विख्यात हैं, हमारा यह 156 वाँ लेख उन्हीं के श्री चरणों में अर्पित है।  चारों वेदों के ज्ञाता, धनुष बाण एवं परशु धारण करने व...

महाभारत - भीष्म पितामह एवं भगवान श्री कृष्ण का संवाद

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन।  हमारे धर्मग्रंथों एवं हमारे ऋषि मुनि आचार्य आदि और स्वयं भगवान भी यही कहते आएं हैं कि मनुष्य तुम केवल कर्म करो, फल की इच्छा मत करो, क्योंकि फल तो मिलना ही है। हमें मनुष्य का जीवन मिला है, हमारे इस मनुष्य जीवन में हमारे आने से लेकर जाने तक और इसके मध्य के भी समस्त कार्यकलाप की स्क्रिप्ट ईश्वर द्वारा पहले से ही बना कर रखी हुई है, हमें तो केवल कर्म करना है। हमें अपने जीवनकाल में अपने प्रारब्ध के अनुसार जो कुछ भी भोगना है वह भी निश्चित है।  हमारे सम्पूर्ण जीवनकाल में घटने वाली प्रत्येक घटना भी निश्चित है, आज अपनी इस बेबसाईट के 155 वें लेख में हम इसी पर चिंतन कर रहे हैं। जहाँ घटनाओं का घटित होना निश्चित है, उनका तरीका भी निश्चित है, वहीं उसके परिणामों को भोगना भी लगभग निश्चित ही है।