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ऋषि पंचमी

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भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी के रूप में मनाया जाने वाला पर्व महिलाओं के लिए अटल सौभाग्यवती व्रत माना जाता है, इस दिन स्त्रियाँ सप्तऋषियों के सम्मान और रजस्वला दोष से शुद्धि के लिए उपवास रखकर पूजन करती हैं। ऐसी मान्यता है कि महिलाओं की माहवारी के समय अनजाने में हुई धार्मिक गलतियों और उनसे होने वाले दोषों के शमन के लिए और उन दोषों की मुक्ति के लिए इस व्रत को किया जाता है।  समस्त पापों को नष्ट कर देने वाले इस व्रत के दिन किसी देवी देवता का पूजन नहीं किया जाता है बल्कि इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुवे सप्तऋषियों की पूजा की जाती है।  इसे भाई पंचमी भी कहा जाता है, कई लोग इसी दिन राखी का त्यौहार भी मानते हैं। इस दिन माता अरुंधति के साथ सप्तऋषियों की पारम्परिक पूजा होती है और इस दिन मोरधन का आहार ही लिया जाता है। दक्षिण भारत के कुछ स्थानों में इस दिन भगवान विश्वकर्मा जी का पूजन किया जाता है।  

हरतालिका तीज

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भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला पर्व है हरतालिका तीज ,  जिसे गौरी तृतीया भी कहा जाता है। भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित यह पर्व अविवाहित एवं विवाहित सभी महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। अविवाहित युवतियां श्रेष्ठ एवं मनोवांछित वर की प्राप्ति हेतु तो विवाहित महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु इस पर्व को मानती हैं। भगवान शिव, माता पार्वती और श्री गणेश जी की निराहार रहकर पूजन प्रत्येक प्रहर करते हुवे फल, फूल और पत्रादि वनस्पतियां अर्पित की जाती है, रात्रि जागरण कर भजन कीर्तन किये जाते हैं।  इस व्रत के बारे में कहा जाता है कि इसे एक बार प्रारम्भ करने के बाद छोड़ा नहीं जाता बल्कि आजीवन किया जाता है। रात्रि जागरण उपरांत प्रातः काल आखिरी में पूजन कर माता गौरी को सिंदूर अर्पित कर ककड़ी का भोग लगाया जाता है, उस प्रसाद से महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं और फिर अन्न ग्रहण करती हैं।