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संत कनप्पा

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आंध्र प्रदेश के राजमपेट इलाके में जन्में संत कनप्पा भगवान शिव जी के महान उपासक 63 नयनार संतों में से एक माने जाते हैं।  माता पिता ने उनका नाम थिन्ना रखा था किन्तु वे थिनप्पन, थिन्नन, धीरा, कन्यन, कन्नन और अन्य भी कई नामों से जाने जाते थे। पेशे से शिकारी रहे कनप्पा कालांतर में संत बन गए थे, संत कनप्पा के भक्तगणों की मान्यता थी कि संत कनप्पा अपने पूर्व जन्म में पाण्डु पुत्र अर्जुन थे। कहा जाता है कि जब अर्जुन पाशुपतास्त्र के लिए भगवान शिव जी का ध्यान कर रहे थे, तब अर्जुन की परीक्षा के लिए भगवान शिवजी शिकारी के रूप में जंगल में आये और उसी समय एक शिकार पर अर्जुन और शिवजी दोनों ने अपने अपने बाण चला दिए उसके बाद शिकार किसने किया इस पर दोनों में विवाद हुआ और विवाद इतना बढ़ा कि दोनों में युद्ध प्रारम्भ हो गया।  जब शिवजी ने देखा कि अर्जुन पाशुपतास्त्र के लिए योग्य है, तो उन्होंने प्रसन्न होकर अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्रदान किया तथा  अगले जन्म में उनके सबसे बड़े भक्त के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद भी प्रदान किया, जिसके परिणामतः संत कनप्पा ने जन्म लिया और अंत में उन्होंने शिव कृपा से...

वर्त्तमान समय में शिक्षा कैसी हो ?

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हमारी सनातन सभ्यता के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य ऐसे ज्ञान की प्राप्ति कराना है जिससे कि इहलोक में सर्वांगीण विकास अर्थात शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और नैतिक विकास हो तथा परलोक में मोक्ष की प्राप्ति हो। भगवान श्री कृष्ण जी ने भी गीता में कहा है कि शिक्षा ऐसी हो जो हमें अज्ञान के बंधन से मुक्त कर दे। संभवतः इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुवे प्राचीन समय में हमारे ऋषि मुनिगण ने चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास) की व्यवस्था की थी। ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करते हुवे विद्यार्थी संयम की व्यवहारिक शिक्षा के साथ साथ लौकिक और परलौकिक ज्ञान प्राप्त करके जब गुरुकुल से निकलता था तब वह गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर अपने जीवन को संयम, सेवा और त्याग से परिपूर्ण करते परमात्मा के स्वरुप में रम जाता था।