संत कनप्पा
आंध्र प्रदेश के राजमपेट इलाके में जन्में संत कनप्पा भगवान शिव जी के महान उपासक 63 नयनार संतों में से एक माने जाते हैं। माता पिता ने उनका नाम थिन्ना रखा था किन्तु वे थिनप्पन, थिन्नन, धीरा, कन्यन, कन्नन और अन्य भी कई नामों से जाने जाते थे। पेशे से शिकारी रहे कनप्पा कालांतर में संत बन गए थे, संत कनप्पा के भक्तगणों की मान्यता थी कि संत कनप्पा अपने पूर्व जन्म में पाण्डु पुत्र अर्जुन थे। कहा जाता है कि जब अर्जुन पाशुपतास्त्र के लिए भगवान शिव जी का ध्यान कर रहे थे, तब अर्जुन की परीक्षा के लिए भगवान शिवजी शिकारी के रूप में जंगल में आये और उसी समय एक शिकार पर अर्जुन और शिवजी दोनों ने अपने अपने बाण चला दिए उसके बाद शिकार किसने किया इस पर दोनों में विवाद हुआ और विवाद इतना बढ़ा कि दोनों में युद्ध प्रारम्भ हो गया। जब शिवजी ने देखा कि अर्जुन पाशुपतास्त्र के लिए योग्य है, तो उन्होंने प्रसन्न होकर अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्रदान किया तथा अगले जन्म में उनके सबसे बड़े भक्त के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद भी प्रदान किया, जिसके परिणामतः संत कनप्पा ने जन्म लिया और अंत में उन्होंने शिव कृपा से मोक्ष को प्राप्त किया। संत कनप्पा के पिता भी एक बड़े शिकारी थे, वे शिवभक्त तो थे ही साथ साथ शिवपुत्र कार्तिकेय की भी पूजा अर्चना किया करते थे।
संत कनप्पा श्री कलाहस्तीश्वर मंदिर में वायुलिंग की पूजा किया करते थे, यह मंदिर उन्हें शिकार के समय मिला था। पांचवी सदी के पहले से निर्मित इस मंदिर का बाहरी हिस्सा ग्यारहवीं सदी में चोल वंशीय राजा राजेन्द्र चोल ने बनवाया था तथा पश्चात में विजय नगर साम्राज्य के राजाओं द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। वायु तत्व का यह मंदिर स्वर्णमुखी नदी के किनारे एक पहाड़ी के सिरे को काटकर बनाया गया था। श्री कलाहस्तीश्वर शब्द में श्री का अर्थ मकड़ी से है, कला का अर्थ सर्प से और हस्ति का अर्थ हाथी। ऐसा कहते हैं कि इन तीनों जानवरों द्वारा यहाँ पूजा अर्चना की गई थी और बाद में उन्हें मुक्ति प्राप्त हुई थी। इस मंदिर में पूजा करने वाले कनप्पा को न तो शिवभक्ति का कोई ज्ञान था और न ही उन्हें शिव पूजा के विधि विधान की कोई जानकारी थी। भगवान शिव जी में अगाध श्रद्धा रखने वाले कनप्पा यह भी नहीं जानते थे कि शिव पूजा में किन नियमों का पालन करना होता है। संत कनप्पा के बारे में तो यहाँ तक कहा जाता है कि वे मंदिर के पास की ही स्वर्णमुखी नदी से अपने मुख में जल भरकर लाते थे और उस जल से शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे, शिकार में उन्हें जो भी मिल जाता उसका एक हिस्सा शिव जी को अर्पित कर देते थे।
भगवान शिव जी अपने इस अज्ञानी भक्त की आस्था से प्रसन्न थे, उन्हें पता था कि इसे न तो पूजा करना आती है और न इसे पूजा के विधि विधान और मंत्रों का ज्ञान है। एक बार मंदिर में जब कनप्पा के साथ ही कुछ लोगों की उपस्थिति में भगवान शिव जी ने अपने इस भक्त की परीक्षा लेने का निश्चय कर मंदिर परिसर में भूकंप की स्थिति को निर्मित किया। जैसे ही भूकंप के झटके आये और लगने लगा कि मानो मंदिर की छत गिरने वाली है तो उस समय कनप्पा को छोड़कर डर के मारे सब लोग भाग गए। उस समय कनप्पा ने सोचा कि यदि मंदिर की छत से कोई पत्थर गिरा तो शिव जी को चोट लग जाएगी, यह सोच उन्होंने अपने शरीर से शिवलिंग को पूरी तरह से ढंक लिया ताकि कोई पत्थर गिरे भी तो उन पर गिरे, शिव जी पर नहीं और शिव जी सुरक्षित रहें।
भूकंप के थमने पर कनप्पा ने देखा कि शिवलिंग पर बनी हुई तीन आँखों में से एक आँख से रक्त और आंसू एक साथ निकल रहे हैं। शिवलिंग की आँख से रक्त बहता देख कनप्पा चौंक गए और वे समझे कि भगवान किसी नेत्र रोग से पीड़ित हैं तो वह जल्दी से जंगल गया और कुछ औषधीय जड़ी बूटी लाकर उसका लेप बनाकर आँख पर लगाया किन्तु रक्त का बहना नहीं रुका। यह देख कर कनप्पा समझे कि किसी पत्थर से शिवजी की आँख घायल हो गई है। उस समय कनप्पा ने तत्काल अपने बाण से अपनी एक आँख निकाल कर शिवलिंग की आँख पर लगा दी, जिससे उसमें से रक्त निकलना बंद हो गया। कुछ देर बाद उन्होंने देखा कि शिवलिंग की दूसरी आँख से रक्त और आंसू निकल रहे है। तब कनप्पा ने अपने एक हाथ से शिवलिंग की आँख बंद कर दी, जिससे उससे रक्त बहना बंद हो जाय और अपने दूसरे हाथ से अपनी दूसरी आँख निकालने का प्रयास करने लगे किन्तु एक हाथ से आँख निकालने में असुविधा लगने लगी तो विचार किया कि जब मेरी दूसरी आँख निकल जाएगी तो मुझे कैसे दिखेगा कि आँख को शिवलिंग पर कहाँ लगाना है।
बहुत सोच विचार के बाद उस मासूम भक्त को एक उपाय सुझा और उन्होंने बड़ी ही मासूमियत से अपने एक पैर को उठाया और पैर का अंगूठा ठीक उस शिवलिंग की आँख वाले स्थान पर लगा दिया ताकि आँख निकालने के बाद दिखना बंद हो जाने के बाद भी अपने पैर के अंगूठे वाले स्थान पर अपनी दूसरी आँख लगा सके। इसके पश्चात् कनप्पा ने जैसे ही अपनी दूसरी आँख को निकालने का प्रयत्न किया, उसी समय शिव जी प्रकट हुवे और उनकी आस्था से अति प्रसन्न होकर अपनी असीम भक्ति प्रदान कर उन्हें आशीर्वाद दिया तथा उनकी आँखों को बिलकुल ठीक कर दिया। बस इसी घटना के चलते थिन्ना को नया नाम कनप्पा मिला और कालांतर में वे शिवजी के महान उपासक संत कनप्पा कहलाये और भगवान शिव जी की कृपा प्राप्त कर अंत में शिव चरणों में लीन होकर मोक्ष को प्राप्त हुवे। ऐसे शिवभक्त संत श्री कनप्पा जी को सादर नमन - दुर्गा प्रसाद शर्मा
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