श्री रामचरित मानस - कौन जीवित व्यक्ति है मृतक समान
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मृत्यु एक शास्वत सत्य है, जो इस संसार में आया है उसे एक न एक दिन जाना है, किन्तु कई लोग इस प्रकार के होते हैं, जो मरने के बाद भी अमर हो जाते हैं लोग उनका नाम भूलते नहीं उनके जीवन को आदर्श मानकर उपदेशों में भी उनके जीवन का दृष्टांत बताते हैं, तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी पहचान उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाया करती है किन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवित होते हुवे भी मृतक समान माने जाते हैं। श्री रामचरित मानस में भी ऐसे लोगों का उल्लेख लंका काण्ड में राम रावण युद्ध के समय अंगद - रावण संवाद में आया है जब अंगद ने लंकापति रावण से कहा है कि हे रावण तुम तो मरे हुवे हो और मरे हुवे को मारने से क्या फायदा। तब लंकापति रावण ने पूछा कि मैं जीवित हूँ, मुझे किस आधार पर मरा हुआ बता रहे हो तो अंगद बोले कि केवल श्वांस लेने वाले को ही जीवित नहीं कहते, श्वांस तो लौहार की धौंकनी भी लिया करती है इंसान के कर्म और उसकी स्थिति ही निर्धारित करती है कि उसे जीवित माना जाय या मृतक।