श्री रामचरित मानस - कौन जीवित व्यक्ति है मृतक समान
मृत्यु एक शास्वत सत्य है, जो इस संसार में आया है उसे एक न एक दिन जाना है, किन्तु कई लोग इस प्रकार के होते हैं, जो मरने के बाद भी अमर हो जाते हैं लोग उनका नाम भूलते नहीं उनके जीवन को आदर्श मानकर उपदेशों में भी उनके जीवन का दृष्टांत बताते हैं, तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी पहचान उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाया करती है किन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवित होते हुवे भी मृतक समान माने जाते हैं। श्री रामचरित मानस में भी ऐसे लोगों का उल्लेख लंका काण्ड में राम रावण युद्ध के समय अंगद - रावण संवाद में आया है जब अंगद ने लंकापति रावण से कहा है कि हे रावण तुम तो मरे हुवे हो और मरे हुवे को मारने से क्या फायदा। तब लंकापति रावण ने पूछा कि मैं जीवित हूँ, मुझे किस आधार पर मरा हुआ बता रहे हो तो अंगद बोले कि केवल श्वांस लेने वाले को ही जीवित नहीं कहते, श्वांस तो लौहार की धौंकनी भी लिया करती है इंसान के कर्म और उसकी स्थिति ही निर्धारित करती है कि उसे जीवित माना जाय या मृतक।
श्री रामचरित मानस में लंका काण्ड में 14 ऐसे व्यक्ति जिन्हे जीवित होने पर भी मृतक माना जाता है, का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने करते हुवे कहा है कि - कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा ।। सदा रोगबस संतत क्रोधी। विष्णु बिमुख श्रुति संत बिरोधी।। तनु पोषक निंदक अध खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी।।
1 . कामवश - जिसके मन की इच्छाऍ कभी ख़त्म नहीं होती और जो प्राणी केवल अपनी इच्छाओं के ही अधीन होकर अपना जीवन व्यतीत करता है, वह मृतक समान है। जो आध्यात्म का सेवन नहीं करता है, सदैव कामवासना में लिप्त रहता हो, अत्यंत भोगी होकर संसार के भोगों में ही उलझा रहे वह भी मृतक समान है।
2 . वाममार्गी - जो व्यक्ति दुनिया के विपरीत चले, संसार की हर बात में नकारात्मकता ही देखे, नियमोँ, परम्पराओं और लोक व्यवहार के विपरीत चले, वह व्यक्ति वाममार्गी कहलाता है और ऐसे लोगों को भी मृतक समान माना जाता है।
3 . कंजूस - जो व्यक्ति धर्म कार्य करने में धन खर्च न करे, दान देने से बचे, आर्थिक रूप से किसी लोक कल्याणकारी कार्यो में सहभागिता नहीं रखे ऐसे अति कंजूस व्यक्ति भी मृतक समान ही माने जाते हैं।
4 . अति दरिद्र - गरीबी सबसे बड़ा श्राप है किन्तु दरिद्रता उससे बड़ा श्राप है, जो व्यक्ति धन, आत्म विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, अत्यंत ही दरिद्र हो उसे मरा हुआ ही माना जाता है। दरिद्र और गरीब व्यक्ति को कभी भी दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योंकि वह पहले से ही मरा हुआ होता है। दरिद्र नारायण मानकर यथासंभव सहयोग कर सको तो ठीक अन्यथा उसे परेशान नहीं करना चाहिए।
5 . विमूढ़ - अत्यंत ही मूढ़ अर्थात मुर्ख व्यक्ति को भी मरा हुआ ही माना जाता है। जिसके पास बुद्धि विवेक नहीं हो, आध्यात्म से भी अनभिज्ञ हो, जो खुद कोई निर्णय नहीं ले सके, अर्थात प्रत्येक कार्य को समझने या निर्णय लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुवे भी मृतक समान ही माना गया है।
6 . अजसि - जो व्यक्ति संसार में बदनाम हो, जो घर परिवार, कुटुंब समाज, नगर राष्ट्र, कहीं पर भी सम्माननीय नहीं हो या किसी भी इकाई में सम्मान नहीं पाता हो, ऐसा व्यक्ति भी जीते जी मृतक समान माना जाता है।
7 . सदा रोगवश - जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता हो, जिसका स्वस्थ शरीर के आभाव में मन विचलित रहता है, जिस पर नकारात्मकता हावी रहती हो और वह मृत्यु की कामना करने लग जाता हो, उसे भी जीते जी मृतक माना जाता है। वैसे भी एक रोगी व्यक्ति जीवन के आनंद से तो वंचित रहता ही है।
8 . अति बूढ़ा - अत्यंत ही वृद्ध व्यक्ति जोकि अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है, शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम हो जाता है, वह व्यक्ति भी जीवित होते हुवे मृतक माना जाता है। ऐसी स्थिति में कई बार देखने में आता है कि ऐसे व्यक्ति स्वयं और उसके परिवारजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लग जाते हैं ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।
9 . सतत क्रोधी - पूर्व जन्म के संस्कार लेकर जीव क्रोधी होता है, क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है और नरकगामी होता है। हमेशा क्रोध में रहने वाला व्यक्ति जोकि हर छोटी बड़ी बात पर क्रोध करता हो, क्रोध के कारण मन और बुद्धि दोनों ही उसके नियंत्रण से बहार हो जाते हों, जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण नहीं हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुवे मृतक समान माना जाता है।
10 . अध खानी - जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता है, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुवे मृतक माना गया है। ऐसे व्यक्ति के साथ रहने वाले भी उसी के समान हो जाते हैं। पाप की कमाई पाप में ही जाती है और पाप की कमाई से नीच गौत्रादि की प्राप्ति होती है, इसलिये सदैव मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए।
11 . तनु पोषक - ऐसा व्यक्ति जोकि पूरी तरह से अपनी ही आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता हो, संसार के किसी भी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना नहीं हो, ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। जो लोग खाने पीने में, वाहनों में स्थान के लिए और हर बात में सिर्फ यही सोचते हों कि सारी चीजें पहले उसे ही मिल जाये बाकि किसी अन्य को नहीं मिले तो ऐसे व्यक्ति को जीवित होते हुवे भी मृतक समान माना जाता है। अपने शरीर को ही अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है क्योंकि विनाशी शरीर तो नष्ट होना है।
12 . निंदक - अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही दिखाई देती हो, जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चुके, ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी न किसी की बुराई ही करे, ऐसा व्यक्ति जीवित होते हुवे भी मृतक समान माना जाता है। परनिंदा करने से भी नीच गौत्र की प्राप्ति होती है।
13 . परमात्म विमुख - जो व्यक्ति ईश्वर यानि परमात्मा का विरोधी हो, जो व्यक्ति यह सोच लेता है कि कोई परमात्मतत्व है ही नहीं और हम जो करते हैं वही होता है, संसार को हम ही चला रहे हैं, जो व्यक्ति परम शक्ति में आस्था नहीं रखता है, ऐसा व्यक्ति जीवित होते हुवे भी मृतक के समान माना जाता है।
14 . श्रुति संत विरोधी - श्रुत और संत समाज में अनाचार पर नियंत्रण करने का काम करते हैं। अगर वाहन में समय पर ब्रेक नहीं लगे तो एक्सीडेंट हो सकता है, वैसे ही समाज को संतों की भी आवश्यकता होती है ताकि समाज को योग्य एवं उचित मार्गदर्शन समय समय पर मिलता रहे और अनाचार पर नियंत्रण बना रहे किन्तु जो व्यक्ति संत, ग्रंथ और पुराणों का विरोधी हो, वह जीवित होते हुवे भी मृतक समान माना जाता है ।
हमें भी ऐसे सभी लोगों से बचना चहिये और यदि इनमे से कोई अवगुण यदि हममें हो तो उस अवगुण को हमें तत्काल त्याग कर देना चाहिये और अन्य को भी प्रेरित करते रहना चाहिए। जय श्री राम - दुर्गा प्रसाद शर्मा।
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