दानवीर क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले
दानवीर क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले के नाम से हमारे देश में कई लोग अपरिचित होंगे, स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे क्रांतिकारी हैं जो कि गुमनामी के अंधेरों में गुम हो चुके है, उन्हीं में से एक नाम है दानवीर क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले का। सन 1723 में सेठ फतेहचंद जी को तत्कालीन बादशाह ने जगत सेठ की उपाधि प्रदान की थी, तब से ही वह सम्पूर्ण घराना जगत सेठ के नाम से ही प्रसिद्ध हो गया। दानवीर क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले के पिता सेठ मानिकचंद जी इस घराने के संस्थापक थे। सेठ मानिकचंद जी ने 17 वीं शताब्दी में राजस्थान के नागौर जिले के एक मारवाड़ी परिवार में हीरानंद जी साहू के घर जन्म लिया था। हीरानंद जी साहू ने अपने व्यवसाय हेतु बिहार का चयन करते हुवे उन्होंने अपना व्यवसाय का विस्तार बिहार, बंगाल, दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई प्रमुख बड़े शहरों तक किया। यह घराना उस समय का सबसे धनवान बैंकर घराना माना जाता था, इन घरानों की सम्पन्नता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय ब्रिटिश की सभी बैंकों से भी अधिक पैसा इन जगत सेठों के पास हुआ करता था और समय समय पर ये जगत सेठ अंग्रेजों और मुगलों को उधार में पैसा दिया करते थे।
दिल्ली में जन्मे सेठ रामदास जी गुडवाले दिल्ली के अरबपति सेठ और बैंकर थे। दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना इन्हीं के परिवार ने की थी। सेठ रामदास जी गुड़वालए की अमीरी के बारे में उस समय यह कहावत प्रचलित थी कि रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना चांदी और जवाहरात है कि उनकी दीवारों से वो गंगा जी का पानी भी रोक सकते हैं। जब 1857 में क्रांति की चिंगारी मेरठ से प्रारंंभ होकर दिल्ली तक पहुंची तब मुग़ल साम्राट बहादुरशाह जफ़र को 1857 की सैनिक क्रांति का नायक घोषित कर दिया था। दिल्ली में अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल रखा था तब उनके भोजन और वेतन की समस्या उत्पन्न हो गई थी और बादशाह का खजाना खाली हो गया था। एक दिन उन्होंने अपनी रानियों के गहने मंत्रियों के सामने रख दिए।
बहादुरशाह जफ़र के साथ सेठ रामदास जी गुड़वाले की मित्रता थी, उनसे वह अवस्था देखी नहीं गई और उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले करते हुवे कहा कि मातृभूमि की रक्षा होगी तो धन फिर से कमा लेंगे। सेठ रामदास जी ने केवल धन ही नहीं दिया बल्कि सैनिकों को सत्तू, आटा, अनाज के साथ ही बैलों, ऊंटों और घोड़ों के लिए चारे की भी व्यवस्था की। सेठ जी जिन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था, अब सेना और ख़ुफ़िया विभाग के संगठन का कार्य भी करने लगे, उनकी संगठन की शक्ति को देख अंग्रेज भी हैरान रह गए। सम्पूर्ण उत्तर भारत में सेठ रामदास जी ने जासूसों का जाल बिछा दिया, अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त सम्पर्क किया और एक शक्तिशाली सेना एवं गुप्तचर संगठन का निर्माण किया। देश के कोने कोने में गुप्तचर भेजे और छोटे से छोटे मनसबदार और राजाओं से निवेदन किया कि इस संकट काल में मदद कर देश को स्वतंत्र करवायें।
सेठ रामदास जी गुड़वाले की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधियों से ब्रिटिश शासन के अग्रेज अधिकारी बहुत परेशान होने लगे थे। क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश शासन द्वारा अधिक सख्त होने पर बाद में दिल्ली पर फिर से अग्रेजों का कब्ज़ा होने लगा तब इन्होंने चाँदनी चौक की दुकानों के आगे जगह जगह पर जहर मिली हुई शराब की बोतलों की पेटियां रखवा दी, अंग्रेज सेना उस शराब से अपनी प्यास बुझाती और वहीँ लेट जाती थी। अब तो अंग्रेजो ने यह समझ लिया था कि यदि भारत पर शासन करना है तो सेठ रामदास जी गुड़वाले का अंत करना होगा। अंग्रेजो ने योजनाबद्ध तरीके से सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ा अत्यंत ही क्रूरतापूर्ण तरीके से उन्हें मारा।
सन 1857 के स्वाधीनता संग्राम के इस महान दानवीर क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले को अंग्रेजों ने धोखे से पकड़ने के बाद रस्सियों से उनके हाथ पैर बांधकर सरे आम एक खम्बे से बांधा और फिर उन पर शिकारी कुत्ते छोड़ दिए, जिन शिकारी कुत्तों द्वारा सेठ रामदास जी के जीवित शरीर को नौंच डाला, चबा डाला उसके बाद उस अधमरी अवस्था में अंग्रेजों द्वारा इस महान दानवीर क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले को दिल्ली के चाँदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका कर उनका प्राणान्त किया।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार श्री ताराचंद जी ने अपनी पुस्तक "हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट" में इन महान दानवीर क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले के बारे में काफी कुछ लिखा है। सम्पूर्ण यूरोप में भी सेठ रामदास जी गुड़वाले की अमीरी की चर्चा होती रहती थी कि उनके पास राजा महाराजाओं से भी अधिक धन दौलत थी किन्तु भारत में दानवीर क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले की चर्चा उनकी अमीरी या उनकी अकूत सम्पत्ति को लेकर नहीं बल्कि देश भक्ति और मातृभूमि के लिए स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने की वजह से होती थी। भारत के ऐसे महान देश भक्त और मातृभूमि के लाड़ले पुत्र दानवीर क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले को शत शत नमन। वन्दे मातरम, जय हिन्द - दुर्गा प्रसाद शर्मा।
Comments
Post a Comment