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Showing posts from March, 2022

महायोद्धा आल्हा और ऊदल

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भारत देश में उत्तर क्षेत्र में चंदेल राजवंश के बड़े ही प्रतापी शासक हुवे थे राजा परमर्दीदेव, जिनके राज्य में सेना के सेनापति थे दसराज सिंह और सरदार बछराज सिंह। इन दोनों भाइयों को राजा अपने पुत्र की तरह मानते थे। ऐसा माना जाता है कि दसराज सिंह और सरदार बछराज सिंह के पूर्वज बिहार के निवासी वनाफर (वनों में रहने के कारण वनाफर कहलाये) अहीर संप्रदाय से थे तथा माता शारदा इनकी कुलदेवी रही हैं। उसी कालखंड में ग्वालियर क्षेत्र में हैहय शाखा के यदुवंशी अहीर राजा दलपत सिंह का शासन था, जिनकी पुत्री राजकुमारी देवल के शौर्य की चर्चा सम्पूर्ण मध्य भारत में थी। कहते हैं कि एक बार राजकुमारी देवल ने अपनी शमशीर के एक ही वार से एक सिंह को मार गिराया था, जिस घटना को देखकर दसराज सिंह बहुत प्रभावित हुवे और वे राजकुमारी देवल से विवाह का प्रस्ताव लेकर राजा दलपत सिंह के पास पहुंचे। राजा दलपत सिंह ने भी प्रस्ताव स्वीकार कर दोनों का विवाह कर दिया। इन्हीं दसराज सिंह और देवल को माँ शारदा की कृपा से आल्हा और ऊदल के रूप में दो महावीर पुत्रों की प्राप्ति हुई, जिनके पराक्रम के किस्से आज भी सुनने को मिल जाते हैं।...

क्रान्तिकारी तिलका मांझी

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सन 1857 के स्वाधीनता संग्राम और मंगल पाण्डे के ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह से भी कई दशक पहले भारत में ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी थी बहादुर आदिवासी जनजाति क्रान्तिकारी तिलका मांझी ने। बिहार के सुल्तानपुर के तिलकपुर नामक गांव में आदिवासी समुदाय के एक संथाल परिवार में तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 को हुआ था। तिलका मांझी का वास्तविक नाम था जबरा पहाड़िया, तिलका मांझी ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया नाम था, इनके पिता का नाम सुंदरा मुर्मू था। पहाड़ी भाषा में समुदाय के मुखिया को मांझी कहा जाता है और लाल लाल आँखॉ वाले क्रोधी व्यक्ति को तिलका कहा जाता है, इस प्रकार जबरा पहाड़िया से तिलका मांझी कहलाने लगे। तिलका मांझी ने ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध एक लम्बी और कभी आत्मसमर्पण नहीं करने वाली लड़ाई लड़ते हुवे स्थानीय साहूकारों, सामन्तों और ब्रिटिश सरकार को नाकों चने चबवा दिए थे, इसीलिए अंग्रेजो ने जबरा पहाड़िया को खूंखार डकैत तिलका मांझी के नाम से प्रचारित किया हुआ था। 

महत्वपूर्ण प्राचीन स्थापित परम्पराएँ

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सनातन धर्म में स्थापित एवं प्रचलित परम्पराएं जिनका प्राचीन समय से ही अनुसरण हमारे पूर्वज करते चले आ रहे होकर वे सभी परम्पराएं आज किसी न किसी रूप में हमारे समक्ष है, जिनका वर्तमान समय में भी कई लोग पालन कर रहे हैं।  ये सभी परम्पराएं हमें कहीं धर्म से जुडी हुई दिखाई देती है तो कहीं हमारे स्वास्थ्य और जीवन  से जुडी हुई दिखाई पड़ती है तो कभी उनके पीछे कोई ऐसा कारण जान पड़ता है जिससे उन परम्पराओं का निर्वाह करना हमें अत्यंत ही आवश्यक प्रतीत होता है। प्रायः यह भी देखा गया है कि जो लोग इनका निर्वहन करते हैं अथवा इन्हें अपने जीवन में आत्मसात करते हैं वे कई परेशानियों या समस्याओं से बचे रहते हैं और जो इनको नजरअंदाज करते हैं वे कई उलझनों का सामना करते हैं। कुछ ऐसी ही परम्पराओं पर हम यहाँ चर्चा कर रहे हैं, जिस पर चिंतन और मनन करते हुवे पालन करने की आवश्यकता है ताकि हमें किसी प्रकार की कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।  

संस्कारों की कमी ही पतन का कारण

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वर्तमान समय में आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर हम अपने संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं।संयुक्त परिवार की व्यवस्था समाप्त होती जा रही है और एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं, रही सही कमी इंटरनेट और मोबाईल ने पूरी कर दी जिसके प्रभाव से घर के चार सदस्य भी एक कमरे में बैठने के बाद भी अपने अपने मोबाइलों में व्यस्त होकर एक दूसरे से बातचीत करना तो दूर एक दूसरे को देख भी नहीं पा रहे हैं। परिवार के बड़े लोग ही जब इस स्थिति में हैं तो वे बच्चों को क्या समझायेंगे। स्कूली शिक्षा भी आज संस्कारों से दूर हो गई है, जिसमे बड़े स्कूल, मिशनरी स्कूल की स्थिति तो और भी अलग है वहाँ तो संस्कारों और नैतिक व्यावहारिक ज्ञान का कोई स्थान ही नहीं है, मात्र किताबी ज्ञान तक ही शिक्षा सीमित हो गई है। थोड़ी बहुत कमी रही थी तो वह फिल्मों और टी वी सीरियलों ने पूरी कर दी होकर बच्चों, युवाओं और महिलाओं की मानसिकता ही बदल दी है।  इन सबसे आज हमारा समाज पतन की गर्त में जा रहा है और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। आज समय रहते हम नहीं संभले तो आने वाला समय और भी विकट हो सकता है। 

मातृशक्ति के सोलह श्रृंगार का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व

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  सौभाग्यवान हिन्दू मातृशक्ति के लिए सोलह श्रृंगार का विशेष महत्त्व होता है। विवाह के बाद महिलाएं सोलह श्रृंगार के रूप में इन सभी सौभाग्य चिन्हों को अनिवार्यतः धारण करती हैं। प्रत्येक श्रृंगार का अपना अलग ही महत्त्व होता है।  प्रत्येक महिला यह चाहती है कि वे सजधज कर सुन्दर लगे।  सोलह श्रृंगार उनके रूप को और भी अधिक सौन्दर्यवान बना देता है। समस्त मातृशक्ति द्वारा धारण किये जाने वाले इन सभी सोलह श्रृंगार के अपने अपने धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व भी हैं, जिनका वर्णन आगे किया जा रहा है।