महत्वपूर्ण प्राचीन स्थापित परम्पराएँ
सनातन धर्म में स्थापित एवं प्रचलित परम्पराएं जिनका प्राचीन समय से ही अनुसरण हमारे पूर्वज करते चले आ रहे होकर वे सभी परम्पराएं आज किसी न किसी रूप में हमारे समक्ष है, जिनका वर्तमान समय में भी कई लोग पालन कर रहे हैं। ये सभी परम्पराएं हमें कहीं धर्म से जुडी हुई दिखाई देती है तो कहीं हमारे स्वास्थ्य और जीवन से जुडी हुई दिखाई पड़ती है तो कभी उनके पीछे कोई ऐसा कारण जान पड़ता है जिससे उन परम्पराओं का निर्वाह करना हमें अत्यंत ही आवश्यक प्रतीत होता है। प्रायः यह भी देखा गया है कि जो लोग इनका निर्वहन करते हैं अथवा इन्हें अपने जीवन में आत्मसात करते हैं वे कई परेशानियों या समस्याओं से बचे रहते हैं और जो इनको नजरअंदाज करते हैं वे कई उलझनों का सामना करते हैं। कुछ ऐसी ही परम्पराओं पर हम यहाँ चर्चा कर रहे हैं, जिस पर चिंतन और मनन करते हुवे पालन करने की आवश्यकता है ताकि हमें किसी प्रकार की कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।
एक ही गोत्र में विवाह नहीं करना - कई शोध होने पर यह स्थिति स्पष्ट हुई है कि किसी को भी जेनेटिक बीमारी न हो इसके लिए एक समाधान है कि सेपरेशन ऑफ जींस अर्थात अपने किसी नजदीकी रिश्तेदारों में विवाह नहीं करना चाहिए। रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नहीं हो पाने के कारण जींस से संबंधित कई बीमारियां होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है साथ ही संतानोत्पत्ति में भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि जींस और डीएनए के बारे में उस समय ही खोज कर ली गई हो और इसी कारण से एक गोत्र में विवाह नहीं करने की परम्परा बनाई गई हो।
कान छिदवाने की परंपरा - सनातन धर्म में जो सोलह संस्कर होते हैं उन्ही में से एक है कर्णवैध संस्कार। लड़का हो या लड़की दोनों के लिए पुरातन काल से ही कान छिदवाने की परम्परा चली आ रही है, हांलाकि वर्तमान में पुरुष वर्ग में इस परम्परा का निर्वाह करने वाले कम ही रह गए हैं। इस परम्परा के बारे में मान्यता यह है कि इससे सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है, कानों से लेकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित और व्यवस्थित रहता है। कान छिदवाने से एक्यूपंचर से होने वाले स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं।
मस्तक पर तिलक लगाना - स्त्री हो या पुरुष मस्तक पर कुमकुम, चन्दन या अन्य किसी प्रकार का तिलक लगाने की भी परम्परा है, इसके पीछे मान्यता यह है कि दोनों आँखों के मध्य आज्ञाचक्र होता है और इस चक्र वाले स्थान पर तिलक लगाने से हमारी एकाग्रता बढ़ती है, मन बेकार की बातों में नहीं उलझता है। तिलक लगाते समय अंगुली या अंगूठे का जो दबाव बनता है, उससे मस्तक तक जाने वाली नसों का रक्त संचार व्यवस्थित होता है और रक्त कोशिकाएं सक्रीय हो जाती है।
जमीन पर बैठकर भोजन करना - जमीन पर बैठकर भोजन करना पाचन तंत्र और पेट के लिए अत्यंत ही फायदेमंद है, पालथी मारकर बैठना भी योग का ही एक आसन है, इस अवस्था में बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है और पाचनक्रिया अच्छी रहती है। इस आसन में बैठने से गैस, कब्ज, अपच जैसी समस्याएं दूर रहती है।
हाथ जोड़कर नमस्ते करना - हम जब भी किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते या नमस्कार करते हैं, इसके पीछे मान्यता यह है कि हाथ जोड़कर नमस्ते करने से सभी अंगुलियों के शीर्ष आपस में एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ने से एक्यूप्रेशर का फायदा मिलता है। हाथों की हथेलियों और अंगुलियों की नसों का सम्बन्ध शरीर के सभी अंगों से होता है, ताली बजने की प्रक्रिया इसी तारतम्य में होती है। इसके अलावा एक अन्य फायदे की जानकरी हमें विगत दिनों कोरोना कालावधि में भी हो ही गई है, जिसके चलते हमने भी हाथ मिलाना ही छोड़ दिया था और सभी से मिलने जुलने पर हाथ जोड़कर ही अभिवादन करते रहे हैं।
भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से - हमारे यहाँ भोजन करने के भी कुछ नियम हैं जिनमे से एक है कि भोजन की शुरुआत तीखे से करना चहिये और अंत में मीठा खाकर भोजन पूर्ण करना चाहिये। भोजन के इस तरीके के पीछे यह मान्यता है कि तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रीय हो जाते हैं जिससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है जिससे हमारे पेट में जलन नहीं होती ओर न ही किसी प्रकार की कोई परेशानी होती है।
पीपल की पूजा - सनातन धर्म में कई व्रत, पर्व व त्यौहार के अवसर पर पीपल के वृक्ष की पूजन माता बहनों द्वारा की जाती है। पीपल के वृक्ष की पूजन के बड़े में कई धार्मिक कथाएँ तो प्रचलित है ही साथ ही पर्यावरण सुरक्षा भी है, सनातन धर्म में पीपल के अलावा अन्य वृक्षों की पूजन का भी विधान है जिसके पीछे हमें वृक्षों की सुरक्षा और देखभाल करने, वृक्ष नहीं काटने के साथ ही उनका सम्मान करने का सन्देश भी है। पीपल एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो रात्रि में भी ऑक्सीजन छोड़ता है, इसलिए अन्य पेड़ो की अपेक्षा पीपल के वृक्ष की पूजा का महत्त्व काफी अधिक बताया गया है ।
दक्षिण दिशा की ओर मस्तक करके सोना - सनातन धर्म में दक्षिण दिशा को यम की दिशा माना जाता है और दक्षिण दिशा की और पैर करके सोने के बारे में मना किया जाता है, उसके पीछे सार यह है कि जब हम दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोते हैं तो हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगो के दायरे में आ जाता है और ये चुंबकीय तरंगे हमारे पैर से सिर की और उल्टी प्रवाहित होने लगती है जिससे रक्त प्रवाह भी असंतुलित हो जाता है तथा मस्तिष्क संबधी बीमारियों की भी आशंका बढ़ जाती है जबकि दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से इन सब परेशानियों से बचाव हो सकता है।
सूर्य की पूजा करना - सनातन धर्म में सूर्य को अर्ध्य देने और नमस्कार करने की परम्परा है जिसके पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि सूर्य को जल अर्पित करने से हमारे घर परिवार और समाज में मान सम्मान मिलने के साथ ही यदि हमारी कुंडली में सूर्य कमजोर है या अशुभ फल दे रहा है तो सूर्य की पूजा से कमजोर सूर्य के प्रभाव क्षीण हो जाते हैं। उसी प्रकार से यह भी मान्यता है कि सूर्य को जल अर्पित करते समय हमारी आँखों में पड़ने वाली सूर्य की किरणों से आँखों की रोशनी अच्छी होती है और उस समय की धूप हमारी त्वचा के लिए काफी फायदेमंद होती है।
चोटी रखना - प्राचीन समय में हमारे यहाँ लगभग सभी लोग चोटी रखा करते थे। ऋषि मुनि जटाएँ रखा करते थे और मस्तक पर उन्हें बांध कर रखते थे। इस संबंध में मान्यता है कि जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है, उस स्थान पर मस्तिष्क की सारी नसों का केंद्र होता है चोटी से मानसिक मजबूती मिलने के साथ ही एकाग्रता बढ़ती है क्रोध पर रोक लगने के साथ ही सोचने समझने की क्षमता में भी वृद्धि होती है।
व्रत उपवास रखना - सनातन धर्म में पूजा पाठ, पर्व त्यौहार, तिथि वार आदि पर व्रत रखने की परम्परा चली आ रही है, जिसमे एक समय भोजन या फलाहार लेने की व्यवस्था होती है अर्थात सही शब्दों में खान पान पर नियंत्रण रखना। व्रत उपवास करने से पाचन तंत्र को आराम तो मिलता ही है साथ ही इस आराम से पाचन तंत्र आगे और अधिक ऊर्जा से कार्य करने के लिए सक्षम बनता है और पाचन क्रिया अच्छी होती है। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत उपवास करने से कैंसर, मधुमेह, ह्रदय संबंधी बीमारियों की संभावनाएं कम हो जाती है। अभी कुछ वर्ष पहले दो शोधकर्ताओं को नोबल पुरुस्कार भी प्राप्त हुआ है, उनके शोध के अनुसार जो महीने में दो बार भी उपवास कर लेते हैं तो कैंसर जैसे जानलेवा रोग से भी बचा जा सकता है।
चरण स्पर्श करना -परिवार में बुजुर्गों के चरण स्पर्श करने की परम्परा सनातन धर्म में अनिवार्य है साथ ही घर में किसी भी बुजुर्ग या बड़ो के आगमन पर उनके चरण स्पर्श करने और उनका सम्मान करने के संस्कार भी हमारे परिवारजन द्वारा प्रदान किया जाता रहा है। इस संस्कार से बड़े बुजुर्गों का आदर सम्मान तो होता ही है साथ ही मान्यता है कि मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हमारे हाथों से सामने वाले के पैरों तक पहुँचती है और बड़े बुजुर्गो के पैरों होते हुवे उनके हाथों तक पहुँचती है उसके बाद उनके द्वारा आशीर्वाद देते समय चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति के सिर पर हाथ रखने से वह ऊर्जा पुनः हमारे मस्तिष्क तक पहुँचती है, इस प्रकार से ऊर्जा का एक चक्र पूर्ण होता है।
मांग में सिंदूर भरना - सनातन धर्म में विवाहित सुहागिन महिलाओं के लिए मांग में सिंदूर भरना एक अनिवार्य परम्परा है। सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है, जिनका मिश्रण ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखता है साथ ही इसके उपयोग से मानसिक तनाव भी कम होता है।
तुलसी की पूजा - सनातन धर्म में तुलसी सेवा का बहुत ही महत्त्व है। तुलसी में जल चढ़ाने और पूजा करने से घर में सुख समृद्धि बनी रहती है, शांति रहती है वहीं तुलसी के सेवन से हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और लगातार नियमित सेवन से कई बीमारियों से बचाव भी किया जा सकता है।
इन परम्पराओं के अलावा भी और कई परम्पराएँ हमारे धर्म, देश, परिवार में प्रचलित हैं जिन्हे आज आधुनिकता के दौर में हम भूलते जा रहे हैं या छोड़ते जा रहे हैं, जिसके कई दुष्परिणामों से भी हम सामना कर रहे हैं। आज आवश्यकता है कि हमें यदि किसी परम्परा की जानकारी होती है तो उसके पीछे क्या मान्यता है, उसके क्या फायदे हैं, क्यों आवश्यक है इस बारे में विचार करें, चिंतन और मनन करें। चिंतन उपरांत अपने जीवन में उन्हें आत्मसात करने का प्रयास करें। उन परम्पराओं का हम स्वयं तो निर्वहन करें साथ ही अपने बच्चों को भी उनका निर्वाह करने के लिए प्रेरित करें और लाभान्वित हों। हमें आने वाली पीढ़ी के लिए हमारी उन सभी प्रचलित परम्पराओं को जीवंत रखना होगा, जिनका हमारे देश हमारे धर्म में वर्षों से प्रचलन रहा है और जो हमारे देश एवं धर्म की पहचान हैं। अंत में यही कहना चाहूंगा कि ईश्वर हमें इतनी शक्ति प्रदान करें कि हम अपने देश और धर्म की विस्मृत रीति रिवाज और परम्पराओं को पुनः अंगीकार करें। इन्हीं शुभकामना के साथ दुर्गा प्रसाद शर्मा की ओर से आप सभी को जय श्री कृष्ण।
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