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Showing posts from December, 2021

भक्त कूबा जी कुम्हार

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प्रभु की भक्ति में लीन होकर संसार सागर में रत भक्तों में एक नाम कूबा जी का भी अक्सर लिया जाता रहा है।  कूबा जी का जन्म एक छोटे से राजपूताने गांव में हुआ था। कूबा जी जाति से कुम्हार थे और इनका पैतृक काम मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचना था। संतोषी भक्त कूबा जी की पत्नी पूरी देवी भी बड़ी ही धार्मिक और पतिपरायणा थी।  दोनों पति पत्नी इतने संतोषी थे कि महीने भर में वे केवल तीस बर्तन बनाकर अपनी जीविका संचालन करते और शेष समय में भगवान का नाम स्मरण करते थे।  सुख और दुःख को कर्मो का फल तथा माया का प्रपंच मानते हुवे दोनों पति पत्नी अपनी स्थिति में ही सदैव संतुष्ट रहते थे। मिट्टी के केवल तीस बर्तन बनाकर उससे प्राप्त धन से अपनी जीविका के साथ साथ अतिथि सेवा भी कर दिया करते थे जिससे उनके घर में अन्न वस्त्र की सदैव ही कमी रहा करती थी, किन्तु उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं थी। 

ठाकुर जी के छप्पन भोग

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भगवान श्री कृष्ण जी की सेवा हो और छप्पन भोग का स्मरण नहीं हो, ऐसा हो ही नहीं सकता है।  भगवान श्री कृष्ण जी को लगाए जाने वाले छप्पन भोग की बड़ी महिमा है और छप्पन भोग के बिना तो उनकी सेवा पूजा मानो अधूरी सी ही मानी जाती है। भगवान को छप्पन प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे कि छप्पन भोग कहा जाता है। अष्ट प्रहर भोजन करने वाले श्री बालकृष्ण जी को लगाए जाने वाले छप्पन भोग के बारे में भी अलग अलग मान्यताएँ और रोचक कथाएँ प्रचलित हैं। भगवान को लगाया जाने वाला यह छप्पन भोग रसगुल्ले से शुरू होकर इलाइची पर जाकर पूरा होता है। कई जगहों पर सोलह तरह के नमकीन, बीस तरह की मिठाइयां और बीस तरह के सूखे मेवे छप्पन भोग में भगवान को अर्पित किये जाते हैं।