ठाकुर जी के छप्पन भोग

भगवान श्री कृष्ण जी की सेवा हो और छप्पन भोग का स्मरण नहीं हो, ऐसा हो ही नहीं सकता है।  भगवान श्री कृष्ण जी को लगाए जाने वाले छप्पन भोग की बड़ी महिमा है और छप्पन भोग के बिना तो उनकी सेवा पूजा मानो अधूरी सी ही मानी जाती है। भगवान को छप्पन प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे कि छप्पन भोग कहा जाता है। अष्ट प्रहर भोजन करने वाले श्री बालकृष्ण जी को लगाए जाने वाले छप्पन भोग के बारे में भी अलग अलग मान्यताएँ और रोचक कथाएँ प्रचलित हैं। भगवान को लगाया जाने वाला यह छप्पन भोग रसगुल्ले से शुरू होकर इलाइची पर जाकर पूरा होता है। कई जगहों पर सोलह तरह के नमकीन, बीस तरह की मिठाइयां और बीस तरह के सूखे मेवे छप्पन भोग में भगवान को अर्पित किये जाते हैं। 
सामान्यतः दीपावली के पश्चात् गोवर्धन पूजा के अवसर पर छप्पन भोग लगाए जाने की परम्परा रही है जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में अन्नकूट भी कहा जाता है।  यह भी मान्यता है कि भगवान को छप्पन भोग में उन खाद्य पदार्थो का भोग लगाया जाता है जिन्हें वर्षा ऋतु में खाना निषेध होता है। छप्पन भोग और अन्नकूट को लेकर कई कथाएँ प्रचलित है जिनमे से एक प्रसंग देवराज इंद्र के गर्व से सम्बंधित है, ब्रजमंडल में प्रतिवर्ष देवराज इंद्र की पूजा हुआ करती थी जिससे देवराज इंद्र को अभिमान हो गया था, जिस अभिमान को तोड़ने के लिए भगवान श्री बालकृष्ण ने समस्त ब्रजवासियों से कहा कि वर्षा करना तो इंद्र देव का काम ही है तो उनकी पूजा क्यों?  यदि पूजा करना ही है तो गिरिराज की करो जो हमें आश्रय, भोजन तो देता ही है साथ ही गौचारण और अन्य कई सुविधा भी हमें प्रदान करता है।

ब्रजवासियों को बालकृष्ण जी की बात अच्छी लगी और उन्होंने देवराज इंद्र की पूजा नहीं करते हुवे गिरिराज गोवर्धन की पूजा की, जिससे देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने समस्त ब्रजमंडल को बहा देने की मंशा से घनघोर बारिश प्रारम्भ कर दी। भगवान श्री बालकृष्ण जी ने जब देखा कि ब्रजवासी संकट में हैं तो उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया और समस्त ब्रजवासियों ने गिरिराज गोवर्धन के नीचे शरण ली। देवराज इंद्र ने लगातार सात दिनों तक घनघोर बारिश की किन्तु ब्रजवासियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता देखा, साथ ही भगवान श्री कृष्ण जी के साक्षात् परमेश्वर होने का भान हुआ तो बारिश रोककर उनसे क्षमायाचना की।  बारिश रुकने पर समस्त ब्रजवासी गिरिराज गोवर्धन के नीचे से निकले और गिरिराज को वापस यथावत स्थान प्रदान किया गया। 

सात दिनों की घनघोर बारिश में गिरिराज गोवर्धन को धारण करने के कारण माता यशोदा जी के हाथों से प्रतिदिन अष्ट प्रहर भोजन करने वाले (आठ प्रहर में आठ बार) भगवान श्री बालकृष्ण जी लगातार सात दिनों तक अन्न जल ग्रहण नहीं कर पाए थे और नन्दलाल के इस प्रकार से सात दिनों तक निराहार रहने से माता यशोदा जी और समस्त ब्रजवासियों को बड़ा ही कष्ट हुआ और उन्होंने सभी ने मिलकर सात दिनों के प्रतिदिन आठ प्रहर के मान से 7 x 8 = 56 प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्धनधारी श्री बालकृष्ण जी को उन 56 व्यंजनों का महाभोग लगाया था।

एक अन्य कथा के अनुसार ब्रजमंडल की गोपिकाओं ने नंदकुमार को पति रूप में प्राप्त करने की अभिलाषा से माता कात्यायनी की पूजा आराधना करते हुवे एक माह तक ब्रह्म मुहुर्त में यमुना नदी में स्नान किया था और माता कात्यायनी के प्रसन्न होने पर व्रत की समाप्ति पर व्रत के उद्यापन में गोपिकाओं द्वारा छप्पन भोग का आयोजन किया था। छप्पन भोग को छप्पन सखियाँ भी माना गया है, कहा जाता है कि गौलोक में भगवान श्री कृष्ण जी राधिका जी के साथ तीन परतों वाले एक दिव्य कमल पर विराजमान रहते हैं, जिसकी प्रथम परत में आठ,  दूसरी परत में सोलह और तीसरी परत में बत्तीस पंखुडियां, इस प्रकार से कुल छप्पन पंखुड़ियां और प्रत्येक पर एक एक सखी विराजित हैं और उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण जी राधिका जी के साथ विराजते हैं।  एक अन्य मान्यता यह भी है कि जब भगवान श्री कृष्ण जी श्री राधा रानी को ब्याहने बरसाना गए थे तब उनकी बारात के स्वागत में वृषभान जी ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाये थे और इस विवाह में सम्मिलित होने वाले मेहमानों की संख्या भी छप्पन ही थी। 

नटवर नन्द किशोर की माया की ही तरह से छप्पन भोग की कथाओं और मान्यताओं की कड़ी में और भी कई मनके जुड़ते चले जावेंगे लेकिन इनका पार नहीं पा सकते। अब हम ठाकुरजी को लगने वाले इन छप्पन भोग के व्यंजनों के बारे में भी जान लें कि आखिर ठाकुरजी के छप्पन भोग में कौन कौन से व्यंजनों को स्थान प्राप्त हुआ है,  ठाकुर जी को निवेदित किये जाने वाले छप्पन भोग इस प्रकार हैं  -  (1) वायुपूर (रसगुल्ला), (2) चन्द्रकला, (3) कूपिका (रबड़ी), (4) स्थूली  (थूली), (5) दधि (महारायता), (6) भात (भक्त), (7) दाल (सूप),  (8) प्रलेह (चटनी), (9) सदिका (कढ़ी),  (10) दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), (11) मधु शीर्षक (मठरी), (12) बटक (बड़ा), (13) फेणिका (फेनी), (14) पूरी, (15) शतपत्र (खजला/खजरा), (16) अवलेह (शरबत), (17) बालका (बाटी), (18) सिखरिणी (सिखरन), (19) इक्षु खेरीणी (मुरब्बा), (20) लवण, (21) कषाय, (22) तिक्त, (23) कटु पदार्थ, (24) अम्ल खट्टा पदार्थ, (25) त्रिकोण (शक्करपारा), (26) सधिद्रक (घेवर), (27) चिल्ड़िका (चीला), (28) चक्राम (मालपुआ), (29) सुधाकुंडलिका (जलेबी), (30) धृतपूर (मेसूब), (31) पर्पट (पापड़),  (32) शक्तिका (सीरा),  (33) संघाय (मोहनथाल), (34) कर्पूर नाड़ी (लौंगपूरी), (35) खंड मंडल (खुरमा), (36) गोधूम (दलिया), (37) परिखा, (38) सुफलाढ़या/सौंफलखा  (सौंफयुक्त), (39) मोदक (लड्डू), (40) दधिरूप (बिलसारु), (41) पायस (खीर), (42) गौधृत (घी), (43) हेयंगपीनम  (मक्खन), (44) मंडूरी (मलाई), (45) शाक (साग), (46) मधुर (शहद), (47) मोहन भोग, (48) सौधान/अधानौ  (अचार), (49) सुवत, (50) मंडका (मोठ), (51) फल, (52) लसिका (लस्सी), (53) मठ्ठा (छांछ), (54) ताम्बूल (पान), (55) सुफला (सुपारी) और (56) सिता (इलाइची)।  अब आप भी ठाकुरजी की सेवा के साथ ही उन्हें छप्पन भोग अर्पित करें और अपने बच्चों को भी प्रसादी प्रदान कर हमारी संस्कृति और परम्पराओं से उन्हें अवगत करावें।  सभी को दुर्गा प्रसाद शर्मा का जय श्री कृष्ण। 

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