भक्त कूबा जी कुम्हार
प्रभु की भक्ति में लीन होकर संसार सागर में रत भक्तों में एक नाम कूबा जी का भी अक्सर लिया जाता रहा है। कूबा जी का जन्म एक छोटे से राजपूताने गांव में हुआ था। कूबा जी जाति से कुम्हार थे और इनका पैतृक काम मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचना था। संतोषी भक्त कूबा जी की पत्नी पूरी देवी भी बड़ी ही धार्मिक और पतिपरायणा थी। दोनों पति पत्नी इतने संतोषी थे कि महीने भर में वे केवल तीस बर्तन बनाकर अपनी जीविका संचालन करते और शेष समय में भगवान का नाम स्मरण करते थे। सुख और दुःख को कर्मो का फल तथा माया का प्रपंच मानते हुवे दोनों पति पत्नी अपनी स्थिति में ही सदैव संतुष्ट रहते थे। मिट्टी के केवल तीस बर्तन बनाकर उससे प्राप्त धन से अपनी जीविका के साथ साथ अतिथि सेवा भी कर दिया करते थे जिससे उनके घर में अन्न वस्त्र की सदैव ही कमी रहा करती थी, किन्तु उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं थी।
भगवान भी कभी कभी अपने भक्तों की परीक्षा ले लिया करते है, जिससे कि उनके भक्त कसौटी पर खरे तो उतरे साथ ही भक्तो को यश और कीर्ति भी मिले। ऐसी ही परीक्षा लेने के लिए एक बार भगवान ने लीला रची। एक शाम दौ सौ साधुओं की एक मंडली भजन कीर्तन करते हुवे कूबा जी के गांव में आई। साधु मंडली के प्रमुख साधु महाराज ने गांववालों से कहा कि साधुगण भूखे हैं, कोई दाता भोजन की सामग्री दे देवे तो बड़ा ही उपकार होगा। गांव के कुछ लोगों ने हास परिहास करते हुवे कूबा जी का नाम बतला दिया। वैसे तो उस गांव में सेठ साहूकार और धनाढ्य लोग भी निवास करते थे किन्तु कहते हैं कि भाग्यवान का धन ही सद्कार्यों में लगता है। साधु मंडली कीर्तन करते हुवे कूबा जी के घर जा पंहुची। कूबा जी ने बाहर आकर साधु मंडली को प्रणाम कर कहा कि मेरे अहोभाग्य है जो आज आपके दर्शन हुवे, आज्ञा कीजिये।
कूबा जी के पूछने पर साधुगणों ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि साधुगण भूखे हैं सभी के भोजन की व्यवस्था कर दो। कूबा जी ने सभी को आदरपूर्वक बैठाया और अपने पड़ौस में रहने वाले महाजन के पास जाकर निवेदन किया कि मेरे घर दौ सौ संत पधारे है, उन्हें भोजन कराना है आप उनके लायक भोजन सामग्री दे दीजिये जिसका दाम आप जैसा कहेंगे मैं अदा कर दूंगा। महाजन भी भला व्यक्ति था और वह कूबा जी की निर्धनता के साथ ही सत्यपरायणता से भी परिचित था। महाजन ने कहा कि मुझे एक कुआ खुदवाना है तुम खोद देना यह कहकर महाजन ने भोजन सामग्री कूबा जी को प्रदान कर दी। कूबा जी ने भी महाजन की बात को स्वीकार कर सामग्री ली और साधु मंडली को भोजन कराया। साधुवेशधारी भक्तवत्सल प्रभुगण भोजन करके कूबा जी को आशीर्वाद प्रदान करके चले गये।
अगले दिन सुबह से ही कूबा जी और उनकी पत्नी महाजन के यहाँ कुआ खोदने के काम में लग गए। हरिनाम स्मरण करते हुवे कूबा जी कुवा खोदते और उनकी पत्नी मिट्टी को बाहर फेंकती जाती। निरंतर खुदाई के बाद आखिर एक दिन मीठा जल निकल आया। कुवे की खुदाई में नीचे बालू अधिक होने तथा मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाने के कारण मिट्टी घँस गई और उस समय अंदर काम कर रहे कूबा जी उस मिट्टी में दब गए। कूबा जी की पत्नी का विलाप सुनकर महाजन गांव के कुछ लोगों को लेकर आया, सभी ने प्रयास भी किये किन्तु सारी मिट्टी निकालकर कूबा जी को जीवित बचा लेना असंभव देखकर सभी ने कूबा जी की पत्नी पूरी देवी को समझा बुझा कर सांत्वना देकर घर पहुँचाया। पूरी देवी कूबा जी के बिछोह के कारण बड़ी ही दुखी रहने लगी।
कूबा जी को कुवे में दबे पूरा एक वर्ष हो गया था, बारिश में पानी के साथ साथ बहकर आने वाली मिट्टी से कुवे का गड्ढा भी भर गया। एक दिन कुछ यात्री उधर से निकले और रात हो जाने के कारण उन्होंने वहीं पर डेरा डाला। रात्रि के समय उन यात्रियों को अचानक करताल, मृदंग और वीणा की धवनि के साथ ही हरिकीर्तन की आवाज सुनाई देने लगी, गौर करने पर आवाज जमीन के अंदर से आती जान पड़ी। सभी यात्री भी मंत्रमुग्ध होकर रात भर साथ साथ कीर्तन करते रहे और सुबह उन यात्रियों ने वह घटना गांववालों को सुनाई। गांव वालों को भी पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ किन्तु जब उन्होंने भी आवाज सुनी तो बड़ा ही आश्चर्य हुआ। ऐसी बात को फैलते हुवे देर नहीं लगती है। आसपास के गांवों तक खबर फैलने पर बहुत से लोग वहां पहुंचने लगे। राजा तक भी खबर पहुंची, वे भी दल बल सहित आ गए। राजा ने भजन कीर्तन की आवाज सुनकर पूछताछ की तो एक वर्ष पुरानी कूबा जी वाली घटना की जानकारी मिली।
सब जान कर राजा ने वहां से मिट्टी निकलने की आज्ञा दी। देखते ही देखते कुवे में से पूरी मिट्टी निकाल दी गई कुआ साफ हो गया और अंदर के मनोरम दृश्य को देखकर समस्त जनसमूह अभिभूत हो गया। सबने देखा कि अंदर भगवान श्री हरि चतुर्भुज रूप में एक दिव्य आसान पर विराजमान हैं और भक्त कूबा जी प्रभु के सम्मुख प्रेमविभोर होकर कीर्तन कर रहे हैं, नेत्रों से अश्रुधारा बह रही है तथा दिव्य साज बज रहे हैं जिनकी ध्वनि से सम्पूर्ण वातावरण गुंजायमान हो रहा है। उपस्थित सभी जनसमूह के देखते देखते ही भगवान अंतर्धान हो गए और कूबा जी कुवे से बाहर निकल आये। राजा सहित सभी ने कूबा जी को प्रणाम किया और चरणधूलि प्राप्त की। कूबा जी के घर पहुँचने पर उनकी पत्नी भी प्रेमानन्द में मग्न हो गई। इसके बाद तो कूबा जी की कीर्ति चारो और फ़ैल गई और कई लोग नित्य उनके दर्शन को आने लगे। राजा भी उनके नित्य दर्शन को आता था, किन्तु कूबा जी और उनकी पत्नी तो पूर्व अनुसार ही भगवत कीर्तन में अपना समय वयतीत करते हुए श्री हरि के परम धाम को प्राप्त हुवे। भक्तराज कूबा जी के चरणों में नमन करते हुवे आप सभी को भी दुर्गा प्रसाद शर्मा का जय श्री कृष्ण।
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