राजा भोज और सिंहासन बत्तीसी का प्रसंग


परम पराक्रमी, बलशाली, अति न्यायप्रिय और बुद्धिमान राजा चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के न्याय से प्रभावित और प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने उन्हें बत्तीस पुतलियों से युक्त उत्तम सिंहासन भेंट किया था, इस रहस्यमयी सिंहासन का क्या हुआ यह तो कोई भी नहीं जानता किन्तु ऐसा कहा जाता है कि यह सिंहासन ग्यारह सौ वर्षों के बाद उन्हीं के वंशज राजा भोज को मिला था। तब तक तो इतिहास भी बदल गया था और इस सिंहासन के मिलने के बाद राजा भोज द्वारा सिंहासन पर बैठने की इच्छा के परिणामस्वरूप ही सिंहासन की बत्तीस पुतलियों में से प्रत्येक ने चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के बल, पराक्रम, महानता, न्याय और बुद्धिमानी की कथाएँ राजा भोज को सुनाई थी। वे ही बत्तीस कथाएँ सिंहासन बत्तीसी के नाम से जगप्रसिद्ध हुई। 
राजा भोज मुंजराज के भतीजे और सिंधुराज के पुत्र थे, राजा भोज की माता लीलावती थी। मालवा के अलावा कोंकण, खानदेश, भिलसा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड और गोदावरी घाटी के कुछ भाग में राजा भोज का साम्राज्य था, उन्होंने उज्जैन नगरी के अलावा धार नगरी को अपनी नई राजधानी बनाई थी।  राजा भोज बड़े ही दानी और धर्मात्मा होने के साथ ही बड़े न्यायप्रिय भी थे, उनके न्याय के बारे में तो यहाँ तक कहा जाता है कि वे दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया करते थे। राजा भोज की इन्हीं विशेषताओं के कारण उन्हें नवसाहसाक अर्थात नवविक्रमादित्य भी कहा जाता था।  

राजा भोज की नगरी में ग्रामीण क्षेत्र में एक किसान का खेत था जिसमें उसे बहुत ही अच्छी फसल मिलती थी किन्तु खेत के बीचों बीच थोड़ी सी जमीन हमेशा ही खाली रह जाया करती थी, उस किसान ने काफी कोशिश की किन्तु उस जमीन पर कुछ भी उपज नहीं हुई तब किसान ने उस स्थान पर खेत की रखवाली के लिए एक मचान बना लिया। अब जब जब भी वह किसान उस मचान पर चढ़ता वह अपना आपा खो देता और अपने आप ही बड़े क्रोध में चिल्लाने लगता कि  - कोई है जो जल्दी से जाओ और राजा भोज को पकड़ कर ले आओ और राजा भोज को सजा दो, मेरा राज्य उससे जल्दी ले लो।     

सारी नगरी में किसान की यह बात आग की तरह फ़ैल गई और फिर यह बात राजा भोज के कानों में भी पड़ी। राजा भोज को भी बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि मेरे राज्य में ऐसा बोलने वाला कौन है।  राजा भोज ने अपने सैनिकों से कहा  कि मुझे उस जगह पर लेकर चलो, मैं स्वयं अपनी आँखों से देखना और अपने कानों से सुनना चाहता हूँ।  सैनिको के साथ जब राजा भोज उस स्थान पर पहुंचे तो उन्होंने भी जैसा सुना था वैसा ही देखा कि किसान मचान पर खड़ा हुआ है और जोर जोर से  बोल रहा है - कोई है जो जल्दी से जाओ और राजा भोज को पकड़ कर ले आओ और राजा भोज को सजा दो, मेरा राज्य उससे जल्दी ले लो।  

इस घटना के बाद राजा चुपचाप अपने महल को लौट आये और चिंतित हो गए, रात भर उन्हें नींद भी नहीं आई। प्रातःकाल ही उन्होंने राज्य के ज्योतिषियों और जानकर पंडितों को बुलाया और सारा घटनाक्रम उन्हें सुनाकर उसका राज जानना चाहा।  ज्योतिषियों ने अपने ज्ञान के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि उस मचान के नीचे ही कुछ रहस्य छिपा हुआ है। तब राजा भोज ने तत्काल उस जगह को खुदवाने का आदेश दिया।  जब खोदते खोदते काफी मिट्टी निकल गई तो देखा कि वहां एक भव्य सिंहासन दबा हुआ था, उस सिंहासन को देखकर सभी को अचरज हुआ।  सिंहासन के चारो ओर आठ आठ पुतलियाँ याने कुल बत्तीस पुतलियाँ विध्यमान थी जिनसे सिंहासन की भव्यता और भी बढ़ रही थी।  

सिंहासन के बारे में राजा भोज को जानकारी मिलने पर उन्होंने उस सिंहासन को बाहर निकालने का आदेश दिया किन्तु कई मजदूरों के अथक प्रयास के बाद भी वह सिंहासन नहीं हिला।  तब एक वृद्ध पंडित बोले की राजन यह सिंहासन देवताऑ का बनाया हुआ है और जब तक आप इसकी स्वयं पूजा अर्चना नहीं करेंगे तब तक यह अपने स्थान से नहीं हटेगा।  राजा भोज ने सिंहासन की पूजा की उसके बाद वह सिंहासन मजदूरों ने इस प्रकार उठा लिया मानो फूल समान हो।  उस दिव्य सिंहासन को देखकर राजा भोज बड़े आनंदित हुवे जमीन में दबा होने के बाद भी सिंहासन की चमक अनूठी थी उसमें कई रत्न जड़े हुवे थे, चारों ओर मिलाकर बत्तीस पुतलियाँ थी जिनके सभी के हाथ में एक एक कमल का फूल था।  

राजा भोज ने उस भव्य सिंहासन की सफाई और दुरुस्ती के लिए खजाने से धनराशि लेकर तत्काल कार्य करने का आदेश दिया।  पांच महीनों के बाद सिंहासन की छबि देखते ही बन रही थी दमक उठा था सिंहासन और पुतलियाँ तो ऐसी दिखाई पड़ रही थी मानो अभी बोल ही पड़ेगी। राजा भोज ने पण्डितों को बुलाकर कहा कि आप लोग अच्छा सा मुहुर्त निकालें जिस दिन में इस सिंहासन पर बैठूं।  इसके लिए दिन तय हो गया महल में खुशियाँ मनाई जाने लगी, गायन और वादन होने लगे, दूर दूर तक लोगों को निमंत्रण भी भेजे गए। नियत दिन पूजा के बाद जैसे ही राजा भोज ने आगे बढ़कर सिंहासन पर बैठना चाहा कि सिंहासन की सारी पुतलियाँ एकसाथ खिलखिलाकर हंस पड़ी। सिंहासन की बेजान पुतलियों को हँसते हुए देख सभी को बड़ा ही अचम्भा हुआ। राजा ने अपने पैर पीछे कर लिए और पुतलियों से पूछा कि ओ सुन्दर पुतलियों मुझे सच सच बताओ कि तुम क्यों हंसी ?

पहली पुतली का नाम था रत्नमंजरी। राजा की बात सुनकर वह बोली राजन आप बड़े तेजस्वी हैं, धनी है, बलवान है, किन्तु आपको इन सब बातों का घमंड भी है, जिस राजा का यह सिंहासन है वे दानी, वीर और धनी होते हुवे भी विनम्र थे और दयालु भी थे।  यह सुनकर राजा भोज को क्रोध आ गया तब पुतली ने बताया कि महाराज यह सिंहासन परम प्रतापी, ज्ञानी, न्यायप्रिय चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य का है। राजा बोले मैं कैसे यह बात मान लूँ कि राजा विक्रमादित्य मुझसे अधिक गुनी और पराक्रमी थे।  तब पुतली ने कहा ठीक है राजन मैं आपको राजा विक्रमादित्य की एक कहानी सुनाती हूँ, उसके बाद रत्नमंजरी ने राजा भोज को एक कहानी सुनाई और सवाल किये जिसका राजा भोज ने संतोषजनक उत्तर दिया।   

रत्नमंजरी के बाद एक एक करके सभी पुतलियों ने राजा भोज को सिंहासन पर बैठने से रोकते हुवे राजा विक्रमादित्य की महानता की कहानियां सुनाई।  बत्तीस पुतलियों में रत्नमंजरी के अलावा चित्रलेखा, चन्द्रकला, कामकंदला, लीलावती, रविभामा, कौमुदी, पुष्पवती, मधुमालती, प्रभावती, त्रिलोचना, पद्मावती, कीर्तिमति, सुनयना, सुन्दरवती, सत्यवती, विद्यावती, तारावती, रुपरेखा, ज्ञानवती, चंद्रज्योति, अनुरोधवती, धर्मवती, करुणावती, त्रिनेत्री, मृगनयनी, मलयवती, वैदेही, मानवती, जयलक्ष्मी, कौशल्या, रानी रूपवती नामक सभी पुतलियों ने राजा भोज को राजा विक्रमादित्य की एक एक कहानी सुनाकर राजा से प्रश्न किये, जिन सभी का राजा भोज ने संतोषजनक उत्तर दिया और अंततः सिंहासन पर बैठने में सफलता प्राप्त की।   

Comments

Popular posts from this blog

बूंदी के हाडा वंशीय देशभक्त कुम्भा की देशभक्ति गाथा

महाभारत कालीन स्थानों का वर्तमान में अस्तित्व

बुजुर्गों से है परिवार की सुरक्षा