चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य और उनके नवरत्न

इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य का नाम सर्वविदित है तो उनका शासनकाल भी इतिहास में स्वर्णिम युग के रूप में ही माना जाता है। अत्यंत ही न्यायप्रिय, प्रजापालक, पराक्रमी, बलशाली और बुद्धिमान राजा रहे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य अपनी प्रजा का अपनी संतान की भांति ध्यान रखते थे। अपनी प्रजा के कल्याण और विकास के लिए हरसंभव प्रयास वे करते ही रहते थे, अपने शासनकाल में प्रजा के हितों को दृष्टिगत रखते हुए हर क्षेत्र में कल्याणकारी कार्य तत्काल किये जाने की व्यवस्थाऍ उन्होंने की थी। प्रजा के कल्याण और सुविधाओं की व्यवस्था में किसी प्रकार का कोई अवरोध उत्पन्न न हो इसलिए उन्होंने हर क्षेत्र के विशेषज्ञ अपने दरबार में नियुक्त किये थे, जिनसे समय समय पर सलाह लेकर कल्याणकारी कार्य संपन्न किये जाते थे। 
राज दरबार में नव रत्नों को नियुक्त करने की परंपरा चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने ही प्रारम्भ की थी उनके दरबार में धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि नवरत्न थे जो उच्च कोटि के विद्वान्, श्रेष्ठ कवि, राजनीतिज्ञ, आयुर्वेदाचार्य, गणित एवं विज्ञान के प्रकाण्ड विद्वान् एवं अपने अपने क्षेत्र के विषेशज्ञ थे और चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के राज दरबार की शान थे। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों को इस लेख के माध्यम से हम संक्षिप्त में जानने का प्रयास करेंगे :-  

(1) धन्वंतरि - आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि आयुर्वेद चिकित्सा विधा में बड़े ही सिद्धहस्त थे, आयुर्वेद चिकित्सा विधा पर इन्होंने कई ग्रंथो की रचना भी की थी जो आज भी आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में अपना महत्त्व रखते है। धन्वंतरि शल्य चिकित्सक थे और वे सम्राट विक्रमादित्य के सेना में मौजूद रहकर सेना के घायल सैनिकों का उपचार करते थे।   
(2) क्षपणक -  प्राचीनकाल में राजकाज का कार्य और मंत्रीत्व को आजीविका का कार्य नहीं माना जाकर जनकल्याण हेतु माना जाता था।  क्षपणक एक बौद्ध सन्यासी और श्रेष्ठ गणितज्ञ भी थे और जनकल्याण के लिए गठित मंत्रिपरिषद में सन्यासी को भी शामिल किया जाता था। इन्होने भी कई ग्रंथों की रचना की थी किन्तु उनमे से केवल भिक्षाटन और नानार्थकोश ही उपलब्ध बताये जाते हैं। कहीं कहीं क्षपणक के वेश में गुप्तचरों की स्थिति का भी उल्लेख मिलता है।     
(3) अमरसिंह  -  प्रकांड विद्वान थे अमरसिंह, उन्होंने भी कई ग्रंथों की रचना की थी जिनमे से अष्टाध्यायी और अमरकोश प्रमुख हैं।  बोध गया स्थित वर्तमान बुद्ध मंदिर के एक शिलालेख में भी अमरसिंह जी के यश का वर्णन मिलता है।  संसार का सबसे पहला संस्कृत का शब्दकोष निर्माता के रूप में भी इन्हें याद किया जाता है। 
(4)  शंकु - इनको संस्कृत का प्रकांड विद्वान् माना गया है, इनका पूरा नाम शङ्कुक बताया जाता है।  उनके द्वारा रचित कई ग्रंथो में भुवनाभ्युदयम् नमक काव्य ग्रन्थ बहुत ही प्रसिद्ध रहा है। इन्हें नीतिशास्त्र के ज्ञाता और रसाचार्य भी बताया जाता है।           
(5)  वेतालभट्ट -  सम्राट विक्रमादित्य और वेताल की कथा जगप्रसिद्ध है, जिसका संकलन वेताल पच्चीसी में है, उसके रचयिता वेतालभट्ट ही बताये जाते हैं। इनके रचित ग्रंथों में से भी यही एकमात्र रचना उपलब्ध बताई जाती है। वेताल भट्ट युद्ध कौशल में महारथी थे।  सीमाओं की सुरक्षा की जवाबदारी इन्ही के पास थी इस कारण इन्हें द्वारपाल भी कहा जाता था।  
(6)  घटखर्पर  -  इन प्रकांड विद्वान् का वास्तविक नाम तो लुप्तप्राय है, ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने यह प्रतिज्ञा ली थी कि जो भी अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहाँ वे फूटे हुवे घड़े से पानी भरेंगे, इस प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम घटखर्पर के रूप में प्रसिद्द हो गया और वास्तविक नाम लुप्त ही हो गया। यमक और अनुप्रास पर इनकी प्रसिद्द रचना का नाम भी घटखर्पर काव्यम्  है, इसके अलावा इनका एक ग्रन्थ नीतिसार के नाम से भी बताया जाता है।    
(7)  कालिदास  - कहा जाता है कि देवी काली की कृपा से विद्या प्राप्त होने के कारण ही इनका नाम कालिदास पड़ा था। महाकवि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के अति प्रिय थे और कविवर कालिदास ने भी अपने ग्रंथों में सम्राट विक्रमादित्य के व्यक्तित्व का उज्जबल स्वरुप का वर्णन किया है।  कविवर कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के बारे में कोई संशय नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रतिम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी उन जैसा कोई साहित्यकार नहीं हुआ है।  उनके कई काव्य और नाटक प्रसिद्द हैं, जिनमे शाकुंतलम उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति मानी  जाती है।  
(8)  वराहमिहिर  -  ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड पंडित थे ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर।  ज्योतिष शास्त्र पर इन्होने कई रचनाऐ भी की है जिनमें बृहज्जातक, सूर्यसिद्धांत, बृहस्पति संहिता, पंचसिद्धांती प्रमुख हैं इसके अलावा गणक तरंगिणी, लघु जातक, समास संहिता, विवाह पटल योग यात्रा आदि भी इनके द्वारा रचित बताई जाती है। वराह मिहिर महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। 
(9)  वररुचि  -   कविवर कालिदास की तरह ही वररुचि भी महान काव्यकर्ताओं में सम्मिलित हैं इन्होने भी कई ग्रंथों की रचना की है। वररुचि व्याकरण के विद्वान तो थे ही साथ ही शास्त्रीय संगीत के भी अच्छे जानकार थे। ये बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि के रहे थे एक बार सुनी किसी भी बात को वे ज्यों की त्यों कह दिया करते थे।    

आज ऐसे नवरत्न क्यों नहीं होते क्योंकि हमारे यहाँ धर्म ग्रंथों को को पढ़ाया नहीं जाता धर्म ग्रन्थ के ज्ञान को सिर्फ पूजा पाठ तक ही सीमित कर दिया है।  हमारे धर्म ग्रंथों का ज्ञान विश्व के समस्त ज्ञान, विज्ञान से आगे होने के बाद भी हम उससे दूर हैं और विदेशों में उन पर रिसर्च करके कई दुर्लभ ज्ञान प्राप्त कर लिया गया है।  आज हमें हमारे देश में फिर से वही प्राचीन ऋषि परंपरा वले गुरुकुल की आवश्यकता है।  


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