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खाटू नरेश श्री श्याम बाबा (1)

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भारतवर्ष की यह पावन धरा अनादिकाल से ही देवभूमि रही है और अनेकों महापुरुषों का इस धरा पर अवतरण हुआ है।  स्वयं ईश्वर भी लोक कल्याण हेतु प्रत्येक युग में अवतार ग्रहण करके इस धरा पर अवतरित होते हैं।  ईश्वर के अलावा भी समय समय पर कई महान विभूतियों का इस धरा पर अवतरण हुआ है, जिनकी श्रृंखला में परमवीर बर्बरीक का नाम उस युग से आज तक स्मरणीय, वंदनीय एवं पूजनीय चला आ रहा है, जिन्हें आज भी हम लोग खाटू वाले श्री श्याम बाबा के नाम से जानते हैं और उनके दरबार में अपनी हाजिरी देने तथा उनके दर्शन लाभ से लाभान्वित होने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। फाल्गुन के माह में तो खाटू धाम में विशाल मेला लगता है, जिसमें देश विदेश से काफी श्याम प्रेमी खाटू धाम अपने अपने मनोरथ लेकर बाबा के दर्शन  के लिए पधारते हैं।  

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा (2)

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गतांक से आगे - अब तक हमने महापराक्रमी बर्बरीक के पूर्व जन्म का कथानक इसके पूर्व वाले लेख में पढ़ा  था। उसके पश्चात् जब ब्राह्मण विजय से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद और देवी द्वारा बताये अनुसार होमकुण्ड की भस्म को अपने पास सुरक्षित रखने के कुछ समय बाद ही दुर्योधन की कुटिलता और गांधार नरेश शकुनि की धूर्तता से पराजित होकर पांडवबन्धु एवं द्रोपदी सभी प्रसिद्द तीर्थों में भ्रमण करते हुवे वनवास की अवधि में इस तीर्थ क्षेत्र में स्नान तथा देवी दर्शन के लिए पहुंचे। अपनी थकान मिटाने के लिए वे सभी विश्राम के लिए वृक्ष की छाया में बैठे, सभी प्यास से भी व्याकुल थे। सामने जलकुण्ड देखकर भीमसेन उस कुंड से जल प्राप्त करने की इच्छा से आगे बढ़े।  तब धर्मराज युधिष्ठिर ने शास्त्र मर्यादा बताते हुए भीमसेन से कहा कि तुम पहले कुण्ड से जल लेकर बाहर ही हाथ पैर धोकर ही जल पीना, किन्तु प्यास से व्याकुल भीमसेन धर्मराज की बातों पर ध्यान नहीं दे सके और बगैर हाथ पैर धोये ही कुण्ड में प्रवेश कर उसी में हाथ पैर और मुँह धोने लगे।