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अवधूत श्री दत्तात्रेय स्वामी एवं उनकी शिक्षा

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अवधूत श्री दत्तात्रेय स्वामी जी श्री अत्रि ऋषि एवं सती अनसूया जी के पुत्र और भगवान विष्णु जी के अंश से अवतीर्ण हुवे थे। श्री दत्तात्रेय स्वामी जी का गुजरात में गिरनार पर्वत पर विष्णुपद आश्रम प्रसिद्द है। गिरनार पर्वत के अलावा भी कई स्थानों पर श्री दत्तात्रेय स्वामी जी के आश्रम एवं पादुका स्थान प्रसिद्द हैं, जिनमे गांगनापुर, माहुर, मणिकर्णिका घाट,  कोल्हापुर, बांगर आदि स्थान हैं।  मार्गशीर्ष (अगहन) माह की पूर्णिमा तिथि को भगवान श्री दत्तात्रेय स्वामी जी का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। श्रीमद भागवत में परम धार्मिक राजा यदु के वृतान्त से दत्तात्रेय स्वामी जी के शिक्षा ग्रहण करने का जो उल्लेख मिलता है उससे यह प्रमाणित होता है कि गुरु सिर्फ मानवदेहधारी ही नहीं हो सकता है अपितु शिक्षा मानवदेहधारियों के अलावा पशु पक्षियों और कीट पतंगों से भी ग्रहण की जा सकती है। भगवान श्री दत्तात्रेय स्वामी जी ने इसी प्रकार से चौबीस पृथक पृथक गुरु बनाकर उनसे शिक्षा प्राप्त की थी।   

हमारी प्राचीन व्यवस्थाऐ और वर्तमान वैज्ञानिक धारणा - (2)

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सनातन  हिन्दू धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है।  प्राचीन काल में शिक्षा का प्रचार प्रसार नहीं होने के कारण हिन्दू धर्म में ज्ञान विज्ञान की शिक्षा धर्म के माध्यम से परम्पराओं और मान्यताओं के रूप में सिखाने का प्रयास हमारे पूर्वजों द्वारा किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि वैज्ञानिक नियमों पर आधारित विकास ही वास्तविक विकास होता  है, इसी कारण से हिन्दू धर्म को सनातन धर्म भी कहा जाता है क्योंकि सनातन धर्म की नींव ही वैज्ञानिकता पर आधारित है, जिसका प्रमाण प्रथम दृष्टया प्राचीन काल के कर्मो के अनुसार किये गए वर्ण विभाजन से जहां व्यक्ति के कार्य के अनुसार उसके वर्ण को विभाजित किया गया था। सभी वर्णों में भी पारस्परिक सद्भाव और समन्वय था। इसके अलावा हमारे पूर्वजों ने अनेकानेक वैज्ञानिक कसौटियों पर आधारित धार्मिक परम्पराएँ और मान्यताएँ निर्धारित की हुई है, लेकिन जब उन्हें वैज्ञानिक कसौटी पर कसा जाता था तो वे विज्ञान की  कसौटी पर खरी उतरती थी।