दानवीर भामाशाह जी
भारत देश के इतिहास में भामाशाह जी का नाम देश सेवा और मातृ भूमि के प्रति अगाध प्रेम के साथ ही दानवीरता के लिए आज भी अमर है। राजस्थान के मेवाड़ राज्य में एक तेली परिवार में भामाशाह जी का जन्म हुवा था, इनके पिता भारमल जी को राणा सांगा द्वारा रणथम्बौर के किले का किलेदार नियुक्त किया था। भामाशाह जी बाल्यकाल से ही महाराणा प्रताप के मित्र और सहयोगी तो थे ही साथ ही वे उनके विश्वासपात्र सलाहकार भी रहे थे। संग्रहण की प्रकिया से खुद तो दूर रहते ही थे साथ ही लोगों को भी प्रेरित करने में भामाशाह जी अग्रणीय थे। भामाशाह जी की निष्ठा, सहयोग और धन सम्पदा के दान का महाराणा प्रताप के जीवन में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मातृभूमि की रक्षा में जब महाराणा प्रताप का सबकुछ धन आदि नहीं रहा तब भामाशाह जी ने अपनी सम्पूर्ण धन सम्पदा, जिसके बारे में बताया जाता है कि उस सम्पत्ति से 25 हजार सैनिकों का 11 वर्ष तक का खर्च पूरा किया जा सकता था, उन्हें अर्पित कर दी, और स्वयं भी महाराणा की सेवा में आ गए।
हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को काफी नुकसान उठाना पड़ा था और मुगलों के हमले भी जारी थे, महाराणा प्रताप ने धीरे धीरे मेवाड़ का काफी क्षेत्र वापस अपने कब्जे में कर लिया था। महाराणा प्रताप की शक्ति तो बढ़ने लगी थी किन्तु बड़ी सेना के बिना मुग़ल सेना से युद्ध जारी रखना कठिन हो गया था और सेना का गठन बगैर धन के संभव नहीं होने के कारण महाराणा प्रताप निराश से हो गए थे। उन्होंने सोचा कि यदि ऐसा ही रहा तो जीते हुवे इलाके भी वापस मुगलों के पास चले जायेंगे इसलिए उन्होंने यहां की कमान अपने विश्वस्त सरदारों के हाथ सौंप कर सेना का गठन करने के लिए गुजरात जाने का विचार किया ताकि मुगलॉ से पूरी शक्ति से युद्ध करके मेवाड़ को स्वतंत्र कराया जा सके। महाराणा प्रताप जब अपने कुछ साथियों को लेकर मेवाड़ से प्रस्थान करने वाले थे तभी उनके पुराने खजाना मंत्री नगरसेठ भामाशाह उपस्थित हुवे और महाराणा का अभिवादन करके कहा कि आप मेवाड़ वापस चले और मेवाड़ का उद्धार करें।
भामाशाह के साथ परथा भील भी आया था, उसका भी परिचय उन्होंने महाराणा से कराया और कहा कि परथा भील ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर पूर्वजों के गुप्त खजाने की रक्षा की है और वह खजाना अपने साथ लेकर आया है और मेरे पास जो धन है वह भी आपके पूर्वजों की ही पूंजी है। मेवाड़ स्वतंत्र रहेगा तो धन और भी कमा लूंगा आप यह सम्पूर्ण धन ग्रहण करें और मेवाड़ की रक्षा करें। भामाशाह और परथा भील की देशभक्ति और ईमानदारी को देखकर महाराणा प्रताप का मन द्रवित हो उठा उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी, उन्होंने दोनों को गले लगा लिया और बोले आप जैसे सपूतों के बल पर ही आज मेवाड़ का अस्तित्व है। मेवाड़ की धरती और मेवाड़ के महाराणा सदा सदा के लिए आपके इस उपकार को याद रखेंगे, मुझे आप दोनों पर गर्व है। इसके बाद महाराणा प्रताप ने मेवाड़ से बाहर जाने का विचार त्याग दिया और अपने सभी सरदारों को भी मेवाड़ ही बुलवा लिया।
भामाशाह जैसे व्यक्ति का सहयोग और ईश्वर द्वारा रक्षित खजाना पाने के बाद महाराणा प्रताप का उत्साह और आत्मबल अत्यंत प्रबल हो गया और सामंतों, सरदारों और साहूकारों के सहयोग से महाराणा प्रताप ने सेना का गठन करना प्रारम्भ कर दिया और उसके बाद तो एक के बाद दूसरा करते करते सारा मेवाड़ उनके कब्जे में आ गया। हल्दी घाटी का युद्ध हारने के बाद महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाये रखने के प्रयास में अपने परिवार सहित जंगलों और पहाड़ियों में छिपते हुवे भटक रहे थे उस समय दानवीर और त्यागी भामाशाह द्वारा किये गये सहयोग ने महाराणा प्रताप को काफी सम्बल दिया और उन्हें शक्तिशाली बना दिया। उसके बाद तो महाराणा प्रताप गुप्त रूप से छापामार और प्रकट युद्ध करते हुवे लगातार विजय की और बढ़ते हुवे मेवाड़ को चरमोत्कर्ष पर पंहुचा दिया। भामाशाह जी ने मेवाड़ की अस्मिता को बचाने के लिए दिल्ली के पद प्रलोभन को भी ठोकर मार दी थी। महाराणा प्रताप को भामाशाह द्वारा प्रदान की गई हरसंभव सहायता से ही मेवाड़ के आत्मसम्मान एवं संघर्ष को एक नई दिशा मिली।
धन अर्पित करने वाले किसी भी दानदाता को दानवीर भामाशाह कहकर आज भी भामाशाह जी का स्मरण वंदन किया जाता है, भामाशाह की दानशीलता और त्याग के किस्से उस दौर में तो किये ही जाते होंगे किन्तु आज भी उन किस्सों को उत्साह और प्रेरणा के साथ सुने और सुनाये जाते है। वर्तमान युग में भी हमारे समाज को भामाशाहों की अत्यंत ही आवश्यकता है। भामाशाह जी को हम सादर नमन करते है और उनके बारे में किसी कवि ह्रदय से व्यक्त हुवे उद्गार के माध्यम से उनका स्मरण करते है कि वह धन्य देश की माटी है, जिसमे भामा सा लाल पला। उस दानवीर की यशगाथा को, मेट सका क्या काल भला।।
देशभक्त स्वामीभक्त देश के लिए अपना तन मन धन न्योछावर करने वाले ऐसे बिरले ही होते हैं।आज भी जिनकी गाथा सुन दिलों में हलचल मचा जाती हैं। ऐसे जाबांजों को कोटि कोटि प्रणाम।
ReplyDeleteनिशा जोशी