भक्तराज केवट

भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, भक्ति के कारण भगवान भी भक्त के अधीन हो जाते हैं।  भक्त के लिए भगवान अवतरित तो होते ही हैं साथ ही भक्त के मन के अनुरूप कार्य भी करते हैं। भक्त प्रह्लाद, बालक ध्रुव, भक्त नरसी मेहता, शबरी जैसे कई दृष्टांत हमारे शास्त्रों में मिलते हैं, उसी श्रृंखला में त्रेता युग के भक्त निषादराज केवट का भी नाम सर्वोपरि है। किसी भी रामकथा, भागवत कथा अथवा भगवत प्रसंग में भक्तराज केवट के नाम का स्मरण अवश्य ही होता है। भक्तराज केवट की भक्ति में तो इतनी शक्ति थी कि भगवान श्री राम जी को भी भक्त का आश्रय लेना पड़ा और भक्त के कहने के अनुसार कार्य भी करना पडा। भक्त और भगवान की  इस अद्भुत लीला वाला भजन भी काफी प्रचलित है कि  "कभी कभी भगवान को भी भक्तों से काम पड़े जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े। ''  इस भजन में भक्त और भगवान  की लीला का इतना सुन्दर भाव मिलता है कि भगवान श्री राम जी को गंगा नदी के  पार जाना था जिसमे उन्हें केवट का सहयोग लेना था और केवट बगैर शर्त अपनी नाव उन्हें चढ़ाना नहीं चाहते थे।

 कहा जाता है कि भक्तराज केवट अपने पूर्व जन्म में एक कछुवे की योनि में जन्में थे उस योनि में भी उनमें भक्ति के भाव थे।  क्षीर सागर में भगवान विष्णु जी शेष शैया पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मी जी उनके पैर दबा रही हैं, तथा भगवन के एक पैर का अंगूठा शैया से बाहर आ गया  है जिसे सागर की लहरें स्पर्श कर रही है, यह देखकर कछुवे के मन में भी विचार आया कि  भगवान के अंगूठे को अपनी जिव्हा से स्पर्श कर लूँ जिससे मेरा मोक्ष हो जावे यह सोचकर वह भगवान की ओर बढ़ा। शेषनाग ने उसे देखकर उसे भगाने के लिए जोर से फुंफकार लगाई, जिसे सुनकर कछुवा भाग कर छिप गया। थोड़ी देर बाद जब शेषनाग का ध्यान हट गया तब कछुवे ने पुनः प्रयास किया तो इस बार लक्ष्मीजी की निगाह उस पर पड़ी और उन्होंने उसे भगा दिया। 

कछुवे के अनेक प्रयास शेषनाग और लक्ष्मी जी के कारण असफल रहे और युग परिवर्तन भी हो गया सतयुग व्यतीत होकर त्रेतायुग आ गया। इस बीच कछुवे के भी अन्य कई जन्म विविध योनियों में हो गए और वह प्रत्येक जन्म में भगवत प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहा होकर उसने अपने तपोबल से भगवान के मर्म तक को जान लिया था साथ ही दिव्य दृष्टि भी उसे प्राप्त हो गई, उसे यह ज्ञान हो गया कि त्रेतायुग में क्षीर सागर में शयन करने वले विष्णु जी राम का, शेषनाग लक्ष्मण का और लक्ष्मी जी सीता माता के रूप में अवतरित होंगे और वनवास के समय गंगा नदी को पार करने के लिए नाव और नाविक की आवश्यकता पड़ेगी इसलिए वह केवट बन कर वहाँ  आ गया। जब प्रभु श्री राम अपने वनवास के समय गंगा किनारे आये तब केवट ने उन्हें कहा भी था कि कहहि तुम्हार मरमु मैं  जाना। इस बार केवट किसी भी प्रकार से अवसर अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था उसे याद था कि शेषनाग क्रोध में  फुफकारते थे तो वह डर जाता था और उसे यह भी ज्ञात है कि अब तो लक्ष्मण उस पर बाण भी चला सकते हैं, पर केवट ने इस बार भय का त्याग कर दिया था। 

केवट ने बहाने की ओट ली और कहा कि आपके पैरों के स्पर्श से पत्थर नारी बन गया यदि मेरी नाव भी नारी बन गई तो मेरा तो काम ही बंद हो जायेगा इसलिए जब तक आपके चरण नहीं पखार देता तब तक न तो नाव पर चढ़ने दूंगा और न गंगा पार उतारूंगा, मैं आपसे उतराई भी नहीं चाहता, किन्तु चरण तो पहले धोऊंगा। केवट के इस प्रकार के प्रेम से लिपटे हुवे अटपटे वचन को सुनकर प्रभु श्री राम भी भक्त की अभिलाषा को समझ गए और वे लक्ष्मण और जानकी जी की ओर देख कर मुस्कुराये मानो उनसे पूछ रहे हों कि कहो अब मैं क्या करुँ उस समय तो यह मात्र अंगूठे को ही स्पर्श करना चाहता था और तुम इसे भगा देते थे पर अब तो यह दोनों पैर मांग रहा है। भक्त की अभिलाषा के आगे भगवान को भी झुकना पड़ा और उन्होंने केवट की बात मान ली।  

कितना सुन्दर प्रसंग रहा होगा कि केवट भगवान के चरण धो रहे है एक पैर धोकर कठौती से बाहर रखते है फिर दूसरा पैर कठौती में रखकर धोने लगते है पहला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से उस पर धूल लग जाती  है तो दूसरा पैर निकाल कर उसे फिर से धोने लगते  हैँ इस प्रकार से केवट ने सात बार प्रभु के पैर धोये फिर चतुराई से बोले कि प्रभु एक पैर कठौती में रखें और दूसरा मेरे हाथ पर रखें ताकि गन्दा न हो।  भगवान  भी वैसा ही करते हैं एक पैर  कठौती में दूसरा केवट के हाथों में और जब भगवान को खड़े रहने में असुविधा हुई और उन्होंने केवट से कहा कि केवट ऐसे में तो मैं गिर जाऊंगा तो केवट तुरंत बोल उठे कि प्रभु चिंता न करो अपने हाथ मेरे सिर पर रख दो और आराम से खड़े हो जाओ आप नहीं गिरोगे भगवान भी उस छोटे बच्चे की तरह जिसे उसकी माँ नहलाती है और वह माँ के सहारे से खड़ा हो जाता है, उस तरह खड़े हो गए।  जरा सोचिये कैसी स्थिति रही होगी कि भगवान का एक पैर कठोती में दूसरा पैर केवट के हाथों में और प्रभु के दोनों हाथ केवट के सिर पर। आखिर भगवान भी बोल उठे कि केवट आज मेरा अभिमान टूट गया है कि मैं भक्तों को गिरने से बचाता हूँ वास्तव में भक्त भी भगवान को गिरने से बचाता है। केवट ने भगवान के चरणों को धोकर परिवार सहित चरणामृत का पान करके उसी जल से अपने पितरो का तर्पण भी किया और फिर आनंदपूर्वक प्रभु श्री रामचंद्र जी को लक्ष्मण और माता जानकी सहित गंगा पार उतारा।  इस प्रकार केवट ने अपना अपने परिवार और पितरों तक को मोक्ष प्रदान करवा दिया। 

भक्त और भगवान की जय हो।  आप सभी को दुर्गा प्रसाद शर्मा की ओर से जय श्री राम।          

    






Comments

  1. "श्रीराम"राम जी की महिमा निराली है

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