नव निधियाँ
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। मानव जीवन में सुख, सम्पत्ति, यश, वैभव, ऐश्वर्य आदि की उपलब्धि मानव की मेहनत से कहीं अधिक भाग्य और प्रारब्ध पर निर्भर करती है। प्रायः हम देखते हैं कि कुछ लोगों को काफी अल्प प्रयास करने पर भी काफी कुछ मिल जाता है तो कई ऐसे भी लोग देखने को मिल जायेंगे, जो काफी मेहनत करने के बाद भी अपनी गुजर बसर बड़ी ही मुश्किल से कर पाते हैं। मानव जीवन में तीन गुणों का प्रभाव होता है - सत्व गुण, रज गुण और तम गुण और इन तीनों गुणों के आधार पर ही मानव के भाग्य और प्रारब्ध का निर्माण होता है जिसके अनुसार ही मानव को अपने जीवन काल में सुख दुःख सम्पत्ति, यश, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है साथ ही इनके उपयोग उपभोग की अवधि का भी निर्धारण होता है। सुख सम्पत्ति के उपयोग और उपभोग की प्राप्ति और उसकी भोग अवधि को निधियों के रूप में हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है।
हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार कुबेर के खजाने (कोष) की इन निधियों को नौ प्रकार अर्थात नव निधि के रूप में बताया गया है। ये नव निधियाँ अति दुर्लभ होकर इनकी प्राप्ति का मार्ग सरल भी नहीं है। कुबेर के कोष की इन नव निधियों को क्रमशः (1) पद्म निधि, (2) महापद्म निधि, (3) नील निधि, (4) मुकुंद निधि, (5) नंद निधि, (6) मकर निधि, (7) कच्छप निधि, (8) शंख निधि और (9) खर्व या मिश्र निधि कहा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष सभी निधियाँ अति दुर्लभ हैं। अब हम इन नव निधियों के स्वभाव और प्रकृति पर भी विचार करते हैं।
(1) पद्म निधि - पद्म निधि के लक्षणों से संपन्न मनुष्य सात्विक गुणों से युक्त होता है, तो उसकी कमाई गई संपदा भी सात्विक होती है। सात्विक तरीके से कमाई गई संपदा से मानव की कई पीढ़ियों को धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। ऐसे व्यक्ति सोने-चांदी रत्नों से संपन्न होते हैं और उदारतापूर्वक दान भी करते हैं।
(2) महापद्म निधि - महापद्म निधि भी पद्म निधि की तरह सात्विक गुणों से ही युक्त होती है। हालांकि इसका प्रभाव मानव की 7 पीढ़ियों के बाद नहीं रहता। इस निधि से संपन्न व्यक्ति भी दानी होता है और उसकी 7 पीढियों तक सुख ऐश्वर्य भोग का योग मिलता है।
(3) नील निधि - नील निधि प्राप्त करने वाले मानव में सत्व गुण और रज गुण दोनों ही मिश्रित होते हैं। ऐसी निधि व्यापार द्वारा ही प्राप्त होती है इसलिए इस निधि से संपन्न व्यक्ति में दोनों ही गुणों की प्रधानता रहती है। इस निधि का प्रभाव मानव की तीन पीढ़ियों तक ही रहता है।
(4) मुकुंद निधि - मुकुंद निधि प्राप्त करने वालों में रजोगुण की प्रधानता रहती है इसलिए इसे राजसी स्वभाव वाली निधि भी कहा गया है। इस मुकुंद निधि से संपन्न व्यक्ति या साधक का मन भोगादि में लगा रहता है। यह निधि एक पीढ़ी बाद ही खत्म हो जाती है।
(5) नंद निधि - नंद निधि प्राप्त करने वालों में रज गुण और तम गुण दोनों का ही मिश्रण होता है। ऐसा भी माना जाता है कि यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर प्रगति प्रदान करती है। ऐसी निधि से संपन्न व्यक्ति अपनी प्रशंसा से ही प्रसन्न होता है।
(6) मकर निधि - मकर निधि को तमोगुण से प्रभावी होने के कारण तामसी निधि भी कहा गया है। इस निधि से संपन्न साधक अस्त्र और शस्त्र को संग्रह करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति का राज्य और शासन में दखल होता है। वह शत्रुओं पर भारी पड़ता है और युद्ध के लिए तैयार रहता है। इनकी मृत्यु भी अस्त्र-शस्त्र या दुर्घटना में होती है।
(7) कच्छप निधि - कच्छप निधि का साधक मनुष्य प्रायः अपनी संपत्ति को छिपाकर ही रखता है। वह न तो स्वयं उसका उपयोग करता है, न किसी अन्य को करने देता है। वह सांप की तरह उसकी रक्षा करता है। ऐसे व्यक्ति धन होते हुए भी उसका उपयोग उपभोग नहीं कर पाते हैं।
(8) शंख निधि - शंख निधि को प्राप्त करने वाला व्यक्ति अपनी स्वयं की ही चिंता और स्वयं के ही भोग की इच्छा करता रहता है। वह कमाता तो बहुत है, लेकिन उसकी खर्च नहीं करने की प्रवृति के कारण उसके परिवार वाले भी गरीबी और आभावों में ही जीते हैं। ऐसा व्यक्ति धन का उपयोग केवल अपने स्वयं के सुख-भोग के लिए करता है, जिससे उसका परिवार गरीबी और आभावों में ही जीवन गुजारता है।
(9) खर्व या मिश्र निधि - खर्व निधि को मिश्रत निधि भी कहते हैं। अपने नाम के अनुरुप ही अन्य 8 निधियों का सम्मिश्रण वाली इस निधि से संपन्न व्यक्ति को मिश्रित स्वभाव वाला कहा गया है। उसके कार्यों और स्वभाव के बारे में किसी प्रकार की भविष्यवाणी भी नहीं की जा सकती। ऐसा माना जाता है कि इस निधि को प्राप्त व्यक्ति विकलांग व घमंडी होता हैं, यह मौका मिलने पर दूसरों का धन और सुख भी छीन सकता है।
निधियों की इन प्रवृतियों को जानकर हमें यह प्रयास करना चाहिए कि इन नव निधियों में भले ही हम पद्म निधि, महापद्म निधि और नील निधि प्राप्त कर पाएं अथवा नहीं किन्तु मुकुंद निधि प्राप्त करने लायक तो अपने आप को बना ही लेना चाहिए। इसी आशा के साथ सभी को दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर की और से जय श्री कृष्ण।
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