रानी वेलू नचियार

मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। सन 1857 की क्रांति को भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है किन्तु भारतीय इतिहास में इसके पहले भी कई राजा और सम्राट हुवे हैं, जिन्होंने विदेशी ताकतों को हमारे देश में आसानी से पाँव ज़माने नहीं दिए थे। भारत भूमि पर अनेक वीरांगनाओं ने भी जन्म लिया और फिर देश की रक्षा के लिए हँसते हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी। रानी वेलू नचियार भी ऐसी ही एक वीरांगना थी, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थी, जिन्होंने रानी लक्ष्मी बाई के भी बहुत पहले ईरानी और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ हथियार उठाये थे। रानी वेलू नचियार ने तमिलनाडु के शिवगंगई क्षेत्र में जन्म लिया था और विदेशी आक्रांताओं से लोहा लेकर उनको नाकों चने चबवा दिए थे। तमिल क्षेत्र में उन्हें वीरमंगाई अर्थात बहादुर महिला के नाम से सम्बोधित किया जाता है।  
वेलू नचियार रामनाथपुरम राज्य की राजकुमारी और रामनाद साम्राज्य के राजा चेल्लामुतहू विजयाराघुनाथ सेथुपति और रानी स्कंधिमुथल सेतुपति की इकलौती संतान थी। रानी वेलू का पालन पोषण राजकुमारों की तरह हुआ होकर उन्हें युद्ध कलाओं, घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवारबाजी और मॉर्शल आर्ट के साथ ही विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्रों का प्रशिक्षण भी दिया गया था। उन्होंने अंग्रेजी, फ्रेंच और उर्दू जैसी कई भाषाएँ भी सीखी थी। सोलह वर्ष की आयु में वेलू नचियार का विवाह शिवगंगा के राजा मुथुवदूगनाथपेरिया उदयियाथेवर के साथ संपन्न हुआ होकर इनकी एक पुत्री संतान भी हुई थी, जिसका नाम वेल्लाची रखा गया था। सन 1772 में ईस्ट इंडिया कंपनी की अंग्रेज सेना और अरकोट के नवाब की सेनाओं ने मिलकर शिवगंगा पर आक्रमण कर दिया। उस समय के सबसे विध्वंसक  कलैयार कोली नामक इस युद्ध में वेलू नचियार के पति और कई सैनिक मारे गए। ब्रिटिश सेना ने किसी को भी नहीं बख्शा, बच्चे, बूढ़े महिलाएं सभी को मौत के घाट उतार दिया था। 

रानी वेलू नचियार और उनकी पुत्री इस युद्ध से सकुशल बच निकलने में सफल हो गई थी, उन्होंने कुछ समय तमिलनाडू के डिंडिगुल में गोपाल नायकर के यहाँ रहकर अंग्रेजों से अपना राज्य वापस लेने की योजनाएं बनाई और कई शासकों के साथ मैत्री भी बढ़ाई। रानी वेलू नचियार ने धीरे धीरे अपनी सेना भी इकट्ठा की। उसके बाद उन्होंने अपनी सेना के साथ सन 1780 में अंग्रेजों से लोहा लिया, अंग्रेजों के विरूद्ध युद्ध करने वाली वे भारत की प्रथम महिला थी। युद्ध के दौरान रानी वेलू नचियार की पुत्री का निधन हो गया, जिसकी याद में उन्होंने एक सशक्त महिला सेना को भी तैयार किया। रानी वेलू नचियार ने ही इतिहास में प्रथम मानव बम (सुसाइड बम) का प्रयोग कर हमला करने की योजना बनाई थी। 

रानी वेलू नचियार की महिला सेना की कमाण्डर और उनकी बड़ी वफादार कुडली ने रानी की मानव बम योजना के लिए स्वयं को बलिदान के लिए आगे किया, वीरांगना कुडली के अपने आप पर काफी सारा घी डाला, आग लगाई और अंग्रेजों के गोला बारूद और हथियार रखे जाने वाले स्थान में कूद गई और उनका सारा गोला बारूद और हथियार नष्ट कर अंग्रेजों की सेना को कमजोर कर दिया और इस कार्य को करते हुवे वे वीरगति को प्राप्त हो गई। रानी वेलू नचियार ने कुशल रणनीति, युद्ध कलाओं से कई लोगों में देश भक्ति की भावना को जाग्रत कर दिया था। रानी वेलू नचियार के शौर्य के सामने अग्रेजों के हौसले पस्त हो गए और वे शिवगंगा छोड़कर उस युद्ध से भाग निकले तथा अंग्रेजों ने दोबारा वहाँ आने का साहस नहीं किया। 

इस प्रकार से रानी वेलू नचियार ने शिवगंगा की जनता और तमिल वासियो के दिलों में देशप्रेम और देशभक्ति की जिस ज्वाला को प्रज्वलित किया, वह ज्वाला देश को आजादी मिलने तक प्रज्वलित रही। रानी वेलू नचियार ने करीब दस वर्षों तक अपने राज्य पर शासन किया, उसके बाद वे बीमार हो गई और बीमारी के ही चलते सन 1796 में उनका निधन हो गया। इस प्रकार से भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी वीरांगना रानी वेलू नचियार  की वीरगाथा भारत के इतिहास के पन्नों पर अंकित है, जिन्हें समस्त देशवासियों के साथ साथ दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का भी सादर नमन।      

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