गणितज्ञ श्री राधानाथ जी सिकदर
विदेशी आक्रामकों के शासनकाल के दौरान हमारे देश की कई महान विभूतियां गुमनामी में ही रही होकर उन्हें जो मान, सम्मान और पहचान मिलना थी उससे वे वंचित हो गए और श्रेय किसी और को मिल गया। तात्कालिक इतिहासकारों ने जिस स्वरुप में इतिहास में तथ्य विलोपित कर अन्य महिमामण्डन कर दिए गए, उसी स्वरुप में हमें आज भी पढ़ाया और बताया जा रहा है। आज आवशयकता है कि तत्समय के इतिहास जिसमें सिर्फ एक तरफ़ा जानकारी उपलब्ध है, उससे बाहर निकल कर वास्तविकता को जानने और समझने की तथा आगे आने वाली पीढ़ी को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने की। माउन्ट एवरेस्ट का मूल संस्कृत नाम सगरमाथा बताया जाता है जोकि नेपाल में आज भी प्रचलित है। तिब्बती भाषा में इसे चोमोलुंगमा अर्थात विश्व की माँ देवी कहा जाता है। फिर इसे पीक - 15 के नाम से जाना जाने लगा। फिर भारत में आये ब्रिटिश शासन के प्रथम सर्वेयर सर जार्ज एवरेस्ट कालांतर में माउन्ट एवरेस्ट का नाम सर जार्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा गया, यह ही हमें इतिहास में बताया जाता है किन्तु सर जार्ज एवरेस्ट का किसी भी प्रकार का कोई उल्लेखनीय योगदान माउन्ट एवरेस्ट के सम्बन्ध में इतिहास में नहीं मिलता है, जबकि माउन्ट एवरेस्ट की ऊँचाई को मापने वाले महान गणितज्ञ श्री राधानाथ जी सिकदर वर्षों तक मेहनत कर इतनी बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने के बाद भी गुमनामी के अँधेरे में खो गए। इस लेख के माध्यम से हम बंगाल के कोलकत्ता के जोरासांको के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और माउन्ट एवरेस्ट की ऊँचाई को पहली बार मापने की उपलब्धि प्राप्त करने वाले महान गणितज्ञ श्री राधानाथ जी सिकदर के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।
अक्टूबर 1813 में जन्मे राधानाथ सिकदर की स्कूली शिक्षा कोलकाता के कमल बोस स्कूल तथा हिन्दू कॉलेज में हुई थी। बचपन से ही उन्हें गणित में विशेष रूचि रही थी और अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण शिक्षकों के चहेते भी थे। ब्रिटिश शासनकाल में भारत आये प्रथम सर्वेयर जनरल ऑफ इण्डिया जार्ज एवरेस्ट को पीक - 15 की ऊंचाई को मापने के लिए एक ऐसे गणितज्ञ की तलाश थी जिसे कि गोलाकार त्रिकोणमिति में महारत हासिल हो, तब हिन्दू कॉलेज के प्रोफ़ेसर टेटलर ने उन्हें अपने विद्यार्थी राधानाथ सिकदर का नाम सुझाया। प्रोफ़ेसर के सुझाव पर उन्होंने राधानाथ सिकदर को अपने साथ ले लिया। राधानाथ सिकदर ने तब 19 वर्ष की आयु में ग्रेट त्रिग्नोमेट्री सर्वे में 30 रूपये प्रतिमाह की पगार पर कम्प्यूटर कार्य करना स्वीकार किया था। उस समय इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर तो नहीं थे गणितीय गणना के कार्य के लिए इंसानों को रखा जाता था और कम्प्यूटर शब्द उनके लिए उपयोग होता था। ह्यूमन कम्प्यूटर को भी कुछ नियम पालन करना होते थे उन नियमो के उल्लंघन की उन्हें मनाही थी।
राधानाथ सिकदर को कम्प्यूटर कार्य देकर गणितीय सर्वे कार्य के लिए देहरादून के पास सिनोंज भेजा गया। व्यावहारिक गणित के मास्टर राधानाथ सिकदर ने खुद के कुछ फार्मूले बनाकर अपने काम को करते हुवे सभी को प्रभावित किया। जार्ज एवरेस्ट तो उनके कार्य से इतना प्रभावित हो गए थे कि उन्होंने राधानाथ सिकदर को नौकरी छोड़कर डिप्टी कलेक्टर की नौकरी करने के लिए भी रोक लगा दी थी। सर जार्ज के साथ काम करते हुवे राधानाथ सिकदर ने सबसे पहले पीक - 15 की ऊँचाई का पता लगाया, इसके पहले तक कंचनजंगा पर्वत शिखर को ही सबसे ऊँचा पर्वत शिखर माना जाता था। गणितीय गणना में दक्ष राधानाथ सिकदर ने अपने सर्वेक्षण के दौरान अनेकों आंकड़े जुटाए साथ ही इस चोटी के अलावा अनेकों और भी पहाड़ों की जानकारी जुटाई, जिस कारण राधानाथ सिकदर को चीफ कम्प्यूटर का पद दिया गया । तेरह वर्ष के अथक प्रयास के बाद पर्वत पर चढ़े बगैर ही अपनी गणनाओं से राधानाथ सिकदर ने इस पर्वत शिखर की ऊंचाई 29029 फिट आंकी थी।
माउन्ट एवरेस्ट की ऊंचाई का आकलन सर्वप्रथम ब्रिटिश शासनकाल में सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा किया गया, सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना भारत का आधिकारिक मानचित्र बनाने के लिए की गई थी। ऊंचाई की आधिकारिक घोषणा के पूर्व ही जार्ज एवरेस्ट के स्थान पर सर एंड्रयू स्कॉट वॉ नए डायरेक्टर सर्वे ऑफ इंडिया बनाये गए और ऊंचाई की आधिकारिक घोषणा करते हुवे राधानाथ सिकदर से उनकी महत्वपूर्ण खोज को छीन लिया गया और श्रेय सर एंड्रयू स्कॉट वॉ को दे दिया गया। सर एंड्रयू स्कॉट वॉ जोकि सर जार्ज एवरेस्ट के साथ काम कर चुके थे और उन्हें अपना गुरु मानते थे, इस कारण उन्होंने पीक - 15 पर्वत शिखर का नाम माउन्ट एवरेस्ट रखने का प्रस्ताव ब्रिटेन की रॉयल ज्यॉग्राफिकल सोसाइटी की ओर प्रेषित किया और महान गणितज्ञ श्री राधानाथ जी सिकदर की महत्वपूर्ण खोज का श्रेय सर जार्ज एवरेस्ट को देते हुवे दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत शिखर का नामकरण सर जार्ज एवरेस्ट के नाम पर कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने इस जानकारी को छिपाने की काफी कोशिश की किन्तु महान गणितज्ञ श्री राधानाथ जी सिकदरकी इस महान खोज का छिपाया नहीं जा सका। वर्ष 1966 में एक साइंस जर्नल इंडियन जर्नल ऑफ हिस्टोरी आफ साइंस में राधानाथ सिकदर की इस महान सफलता की जानकारी दी गई।
राधानाथ सिकदर अपनी गणितीय गणनाओं के कार्य के लिए अक्सर हिमालय पर्वत श्रृखलाओं में जाते रहते थे जिस कारण उन्हें फ्रॉस्ट बाइट्स रोग (बर्फ की वजह से अंगों का गलना) हो गया था। उस समय इस बीमारी के बारे में कोई जानकारी किसी को नहीं थी और इस बीमारी को कुष्ठ रोग (जिसके बारे में उस समय काफी भ्रांतियाँ थी) मानकर राधानाथ सिकदर को उन्हीं के अपनों ने अपने से दूर कर दिया। उस समय बीमारियों के बारे में लोगों को अधिक ज्ञान नहीं था और कुष्ठ रोग को एक छूत का और कलंकित रोग माना जाता था, तथा रोगी को भी काफी हेय दृष्टी से देखा जाता था। जीवन के अंतिम दिनों में महान गणितज्ञ श्री राधानाथ जी सिकदर अपनों के प्रेम स्नेह से दूर बदहाल स्थिति में रहे, हालांकि ईसाइयों ने उनके स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा और शायद यही एक वजह थी जिस कारण से विवशतावश राधानाथ सिकदर को अपने अंतिम समय में धर्म परिवर्तन करना पड़ा था। महान गणितज्ञ श्री राधानाथ जी सिकदर ने 17 मई 1870 को अंतिम साँस लेते हुवे इस संसार सागर से विदा ली। भारतीय डाक विभाग द्वारा इस महान गणितज्ञ सम्मान में 27 जून 2004 को एक डाक टिकिट जारी किया गया । हो सकता है कि भविष्य में माउन्ट एवरेस्ट का नामकरण भी उनके नाम पर हो और उन्हें उचित सम्मान प्राप्त हो। जय हिन्द - दुर्गा प्रसाद शर्मा
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