काशी पुरी स्वामिनी माता अन्नपूर्णा देवी
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण वल्ल्भे, ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थ भिक्षां देहि च पार्वती ।। अन्नपूर्णा देवी सनातन धर्म में विशेष रूप से पूजनीय हैं, इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना जाता है, जिनके द्वारा सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। समस्त जीवों के भरण पोषण की अधिष्ठात्री माता अन्नपूर्णा को सकल जगत की पालनकर्ता माना जाता है, अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है धान्य अर्थात अन्न की अधिष्ठात्री। सनातन धर्म की मांन्यता है कि प्राणियों को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है। सम्पूर्ण विश्व के अधिपति भगवान विश्वनाथ जी की अर्धांगिनी करुणा मूर्ति देवी पार्वती ही अन्नपूर्णा स्वरुप में समस्त जीवों का बिना किसी भेद भाव के भरण पोषण करती है। जो भी भक्ति भाव के साथ इन वात्सलयमयी माता का आव्हान करता है, माता अन्नपूर्णा उसके यहाँ सूक्ष्म रूप से वास करती है तथा उसे भोग के साथ साथ मोक्ष भी प्रदान करती है।
देवाधिदेव महादेव की प्रिय मोक्षदायिनी एवं महाश्मशान वाली नगरी काशी मानी जाती है, किन्तु यह नगरी माता अन्नपूर्णा की नगरी भी कही जाती है। इस सम्बन्ध में जो कथानक है, वह भी काफी रोचक है। भगवान शंकर जी माता पार्वती के के साथ विवाह उपरांत जब माता पार्वती जी के पिता के क्षेत्र हिमालय पर्वत क्षेत्र में ही कैलाश पर निवास करने लगे तब देवी पार्वती जी ने अपने मायके में निवास करने के स्थान पर अपने पति की नगरी काशी में रहने की इच्छा व्यक्त की। देवी पार्वती की इच्छा का सम्मान करते हुवे देवाधिदेव महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त क्षेत्र काशी आ गए। काशी उस समय तक केवल महाश्मशान नगरी थी, किन्तु माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर में श्मशान होना उचित नहीं लगा। तब से ही यह व्यवस्था निश्चित की गई कि सत, त्रेता और द्वापर इन तीनो युगों में काशी श्मशान रहे और कलयुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी बन जाये। इस प्रकार कलियुग में काशी माता अन्नपूर्णा की पुरी होकर माता अन्नपूर्णा के आधिपत्य में है।
बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ दुरी पर तीनो लोकों की माता अन्नपूर्णा का मंदिर भी स्थित है, जो वर्तमान समय में काशी का प्रधान देवीपीठ है। यह भी कहा जाता है कि इसी स्थान पर माता अन्नपूर्णा द्वारा भगवान भोलेनाथ को भोजन कराया जाता था। प्रचलित अन्य कथानक इस प्रकार है कि एक बार पृथ्वी पर अकाल पड गया था, अन्न संकट के कारण हाहाकार मच गया था। तब पृथ्वीवासियों ने त्रिदेव की उपासना कर अन्न संकट से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की, तब आदिशक्ति माँ जगदम्बा अन्नपूर्णा का स्वरुप धारण कर काशी नगरी में विराजित हुई और देवाधिदेव महादेव ने उनसे आकर अन्न भिक्षा में माँगकर पृथ्वीवासियों को वितरित किया जिसका कालांतर में कृषि उपयोग कर अन्न उपजाया और अन्न संकट को दूर किया।
अन्नकूट महोत्सव के अवसर पर माता अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा के दर्शन की भी परम्परा भक्तों के लिए चली आ रही है। धनतेरस के समय से चार दिन का उत्सव यहाँ होता है जिसमे लाखों भक्तों के मध्य मंदिर में खजाना बांटा जाता है। सदियों से प्रचलित इस परम्परा में खजाने के साथ साथ भक्तों को अन्न के रूप में नए धान की बालियां भी दी जाती है। मंदिर से प्राप्त खजाने को तिजोरी में और अन्न को खाद्य सामग्री में रखने से घर परिवार में कभी अन्न और धन की कमी नहीं रहती है। इस प्रकार से काशीवासियों के योगक्षेम का भार भी इन्हीं पर है । भविष्यपुराण में मार्गशीर्ष मास में अन्नपूर्णा व्रत का भी विधान बताया गया है, उसी प्रकार कुछ पंचांगो में मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाने का भी उल्लेख मिलता है, इसके बारे में यह भी कहा जाता है कि अन्न भिक्षा में इसी पूर्णिमा तिथि को मांगा गया था।
देवी भागवत में राजा ब्रहद्रथ की कथा में भी माता अन्नपूर्णा और उनकी काशी नगरी की महिमा का वर्णन मिलता है। बन्धूक के फूलों के मध्य दिव्य आभूषणों से विभूषित प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण सिंहासन पर त्रिनेत्रधारी भगवती अन्नपूर्णा अनुपम लावण्य से युक्त एक नवयुवती के सृदृश्य हैं, जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित है। देवी के बांये हाथ में अन्न से पूर्ण माणिक्य रत्न जड़ित पात्र तथा दाहिने हाथ में रत्नो से निर्मित कलछुल अर्थात कलछी है और माता अन्नपूर्णा सदैव ही अन्नदान में तल्लीन रहती हैं। इसी स्थान पर आदि शंकराचार्य जी द्वारा अन्नपूर्णा स्त्रोत की रचना कर ज्ञान और वैराग्य प्राप्ति की कामना करने की भी कथा प्रचलित है। स्कंदपुराण में भगवान विश्वेश्वर भोलेनाथ के गृहस्थ होने और भवानी के द्वारा उनकी गृहस्थी चलाने का भी उल्लेख मिलता है, वहीं ब्रह्मवैवर्तपुराण में भवानी को ही अन्नपूर्णा देवी माना गया है।
श्रद्धालुओं की यह भी धारणा है कि माँ अन्नपूर्णा की नगरी काशी में जहां वे देवाधिदेव महादेव के साथ विराजती हैं, वहां कभी कोई भूखा नहीं सोता है, अन्नपूर्णा माता अपने भक्तों के समस्त पाप नष्ट कर सभी विपत्तियों से उनकी रक्षा करती है तथा प्रसन्न होने पर जन्म जनमांतर से चली आ रही दरिद्रता को दूर कर अपने भक्तों को समस्त सांसारिक सुख के साथ साथ मोक्ष भी प्रदान करती है। काशी की पारंपरिक नवगौरी यात्रा में आठवीं भवानी गौरी तथा नवदुर्गा यात्रा में अष्टम महागौरी का दर्शन पूजन अन्नपूर्णा मंदिर में ही संपन्न होता है, साथ ही अष्टसिद्धियों की स्वामिनी माता अन्नपूर्णा देवी की चैत्र एवं आश्विन के नवरात्रि के समय विशेष पूजन भी संपन्न होती है। प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भी कई भक्त दर्शन और पूजन के लिए यहाँ अवश्य ही आते हैं।
भगवान विश्वनाथ भी माता अन्नपूर्णा की प्रशंसा में कहते हैं कि मैं अपने पांचों मुख से भी अन्नपूर्णा का गुणगान करने में समर्थ नहीं हूँ। काशी में अपने शरीर का त्याग करने वाले प्राणी को तारक मन्त्र देकर मुक्ति प्रदान करने का कार्य तो बाबा विश्वनाथ ही करते हैं, किन्तु इसकी याचना माँ अन्नपूर्णा से ही की जाती है। गृहस्थ धन धान्य की तो योगी जन ज्ञान और वैराग्य की भिक्षा इन्हीं से करते हैं। माता अन्नपूर्णा को ही आदिशक्ति माँ जगदम्बा का ही स्वरुप माना जाता है, उन्ही से इस विश्व का संचालन और भरण पोषण होता है। हमें भी अन्न का सम्मान करना चाहिए, जितनी भूख हो उतना ही लेना या परोसना चाहिए। कभी भी अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए न कभी अन्न को व्यर्थ फेंकना चाहिए। अन्न को व्यर्थ बर्बाद करने से माँ अन्नपूर्णा रुष्ट हो जाती है और घर की समृद्धता भी प्रभावित होती है। उपनिषदों में लिखा है कि अन्नादवे ब्रह्म अर्थात अन्न साक्षात् ईश्वर का रूप है। माता अन्नपूर्णा एवं अन्न देव को प्रणाम। जय माता अन्नपूर्णा - दुर्गा प्रसाद शर्मा।
Comments
Post a Comment