पाटण की रानी साहिबा रूदाबाई जी
हमारा भारत देश जहाँ प्राचीन राजे रजवाड़ों की वीरता के लिए प्रसिद्द है वहीं पर यहाँ की वीरांगनाओं के किस्से भी कम नहीं हैं, एक से बढ़कर एक अनगिनत वीरांगनाओं की कहानी हमारे इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जिनकी वीरता, बुद्धिमानी, युद्ध कौशल के साथ ही प्रशासनिक सामर्थ्य के चर्चे आज भी समय समय पर याद किये जाते हैं । भारत देश के गुजरात में ऐसी ही एक वीरांगना हुई थी पाटण की रानी साहिबा रुदा बाई, जिन्होंने सुल्तान बेघारा के सीने को फाड़ कर उसका दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बीचोंबीच टांग दिया था और उसके धड़ से सर अलग करके पाटण राज्य के दरवाजे पर टांग कर यह चेतावनी दी थी कि कोई भी आतताई भारतवर्ष पर या भारत की नारियों पर बुरी नजर डालेगा उसका हाल ठीक नहीं होगा।
पंद्रहवी शताब्दी में गुजरात के पाटण राज्य के राजा राणा वीर सिंह वाघेला थे, पाटण राज्य बहुत ही वैभवशाली राज्य था। पाटण राज्य ने कई तुर्क हमलों का सामना किया था, जिन हमलों में वाघेला राजपूत सरदार के पराक्रम के कारण किसी भी हमलावरों को सफलता नहीं मिल सकी थी। वाघेला राजपूत राजा की अत्यंत सुन्दर रानी थी रुदा बाई। सुल्तान बेघारा ने चालीस हजार से अधिक सैनिकों के साथ पाटण राज्य पर हमला किया, यह फ़ौज राणा वीर सिंह की 2700 - 2800 सैनिकों की फ़ौज के साहस और पराक्रम के सामने दो घंटे से अधिक नहीं टिक पाई थी। कर्णावती और पाटण बहुत ही छोटे छोटे दो राज्य थे जिसमें बड़ी फ़ौज की आवश्यकता ही नहीं रहती थी किन्तु राणा वीर सिंह के युद्ध कौशल की रणनीति ने ही सुल्तान की फ़ौज को धूल चटा दी थी।
राणा वीर सिंह से युद्ध में दो बार हारने के बाद भी सुल्तान बेघारा, जिसने कि रानी साहिब रुदा बाई की सुंदरता के चर्चे सुन रखे थे और वह राणा जी को युद्ध में मार कर पाटण राज्य की राजगद्दी पर आसीन होकर रानी रुदा बाई को अपने हरम में रखने की मंशा अपने मन से नहीं निकाल सका था। उसी समय राणा जी के साथ रहने वाला उनका एक निकटवर्ती मित्र धन्नू साहूकार राणा जी के साथ धोखा करते हुवे सुल्तान से जा मिला और राणा जी को मारकर उनकी स्त्री और राजपाट लूटने की सुल्तान की योजना में सहायता के लिए तैयार हो गया। सुल्तान बेघारा ने भी धन्नू साहूकार को प्रलोभन दिया कि युद्ध में जीत गए तो जो भी मांगोगे वह दिया जायेगा, साहूकार की नजर राजा की सम्पत्ति पर थी और सुल्तान की नजर पाटण राज्य की राजगद्दी और रानी रुदा बाई पर थी। धन्नू साहूकार ने सुल्तान को राणा जी की और पाटण राज्य की काफी सारी ऐसी गुप्त जानकारियाँ बताई जिससे राणा वीर सिंह को परास्त कर रानी और पाटण की राजगद्दी को प्राप्त किया जा सकता था।
धन्नू साहूकार से मिली जानकारियों के बल पर दो बार युद्ध में मात खाने के बाद भी सुल्तान ने दुगने सैन्य बल के साथ तीसरी बार फिर से पाटण पर आक्रमण किया। इतने बड़े सैन्य बल को देखकर भी राणा जी ने रणभूमि का त्याग नहीं किया और अद्भुत पराक्रम एवं शौर्य के साथ लड़ाई की। जब राणा जी वीरतापूर्वक लड़ते हुवे सुल्तान की सेना को खदेड़ते हुवे सुल्तान बेघारा की ओर बढ़ रहे थे तब उनके भरोसेमंद साथी धन्नू साहूकार ने उन पर पीछे से वार कर दिया, जिससे राणा वीर सिंह जी रणभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हो गए। राणा जी की मृत्यु के बाद जब साहूकार ने सुल्तान बेघारा को उसके वचन अनुसार राणा जी का धन उसे देने की बात याद दिलाई तो सुल्तान बेघारा ने कहा एक गद्दार पर कोई एतबार नहीं किया जा सकता है क्योंकि गद्दार कभी भी किसी के साथ भी गद्दारी कर सकता है। ऐसा कहकर सुल्तान बेघारा ने धन्नू साहूकार को हाथी के पैरों तले फेंककर कुचल डालने का आदेश दिया और साहूकार की पत्नी एवं उसकी बेटी को अपने सैनिकों के हरम में भेज दिया।
सुल्तान बेघारा अपने साथ दस हजार सैनिकों को लेकर राणा जी के महल पंहुचा और अपने दूत के माध्यम से रानी रुदा बाई के समक्ष निकाह का प्रस्ताव भेजा। रानी रुदा बाई जो केवल सुंदरता की मूरत ही नहीं थी बल्कि शौर्य, पराक्रम और बुद्धि की भी धनी थी। रानी रुदा बाई ने अपने महल के ऊपर छावनी बनाई हुई थी जिसमे करीब 2500 धनुर्धारी वीरांगनाऐं थीं, जो रानी रुदा बाई का इशारा पाते ही सैनिकों के लश्कर पर हमला करने के लिए तैयार थी। रानी रुदा बाई ने परिस्थितियों का आकलन करते हुवे सुल्तान बेघारा को महल के द्वार से अंदर आने को कहा। वासना में अँधा होकर सुल्तान ने वैसा ही किया जैसा कि रानी ने कहा। रानी रुदा बाई ने भी समय नहीं गंवाते हुवे सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर उतार दिया और उधर ऊपर छावनी से तीरों की वर्षा होने लगी जिससे सुल्तान का लश्कर बचकर वापस नहीं जा सका।
सुल्तान बेघारा को मारकर रानी रुदा बाई ने उसके सीने फाड़ कर सुल्तान का दिल निकाल कर कर्णावती शहर (वर्तमान में अहमदाबाद) के बीचोंबीच टांग दिया और सुल्तान के धड़ से सर को अलग करके पाटण राज्य के दरवाजे पर टांग कर यह चेतावनी दी थी कि कोई भी आतताई भारतवर्ष पर या भारत की नारियों पर बुरी नजर डालेगा उसका यही हाल होगा। रानी रुदा बाई ने इस युद्ध के बाद जल समाधि ले ली थी ताकि कोई और आक्रमणकारी उन्हें अपवित्र न कर पाये। भारत देश की इस महान नारी शक्ति वीरांगना पाटण की रानी साहिबा रुदा बाई जी को शत शत नमन। जय हिन्द।
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