राजा भोज की विद्व्ता का प्रसंग

धार नगरी के राजा भोज की विद्व्ता के कई किस्से जगजाहिर हैं, और यह किस्से अक्सर कहने सुनने में आ जाया करते हैं। एक बार राजा भोज के दरबार में उनके समक्ष विभिन्न विषयों के चार विशिष्ट विद्वान् उपस्थित हुए। उन सभी ने अपना अपना परिचय दिया। एक विद्वान् बोले - राजन मैं राजनीति का विद्वान् हूँ और राजनीति पर एक लाख श्लोक का एक ग्रन्थ लिखा है। दूसरे विद्वान् बोले - राजन मैं धर्मशास्त्र का विद्वान् हूँ और धर्मशास्त्र पर एक लाख श्लोक से एक ग्रन्थ की रचना की है। तीसरे विद्वान् बोले - राजन मैं आयुर्वेद का ज्ञाता हूँ और मैंने भी एक लाख श्लोक का आयुर्वेद पर एक ग्रन्थ तैयार किया है। अंत में चौथे विद्वान् बोले राजन मैं कामशास्त्र का विद्वान् हूँ और कामशास्त्र पर एक लाख श्लोक से एक ग्रन्थ की रचना की है, और हम चारों विद्वान् आपके सामने अपने अपने ग्रंथों को सुनाना चाहते हैं। राजा भोज उन चारॉ विद्वानों की बातों से काफी प्रभावित हुवे किन्तु उन्होंने सोचा कि ये सभी विस्तार से तो लिख कर लाये ही हैं, पर गागर में सागर भरने की कला भी इन्हें आती है या नहीं अर्थात ग्रन्थ को सारगर्भित कर सकते है या नहीं इस बात की परीक्षा करनी चाहिए।  
सभी विद्वानों की परीक्षा लेने की सोच राजा बोले मैं आप सभी की विद्व्ता का पूरा सम्मान करता हूँ किन्तु इतने विशाल ग्रंथों को सुनने में काफी समय लग जायेगा, इतना समय निकालना मेरे लिए संभव नहीं है क्योंकि राजकाज के कार्यों में भी समय देना आवश्यक है। यदि आप इन ग्रंथों को सारभूत रूप से संक्षिप्त कर सकें तो सुनने के बारे में सोचा जा सकता है। चारॉ विद्वानों ने राजा की बात सुनकर कहा ठीक है हम संक्षिप्त करने की कोशिश करते हैं। चारों विद्वानों ने अपने अपने ग्रंथों के सार को आधे श्लोकों में कर दिया और राजा के समक्ष आकर बोले कि राजन हमने सभी ग्रंथों को एक लाख श्लोक से पचास हजार श्लोकों में सारगर्भित कर दिया है, अब आप सुन लीजिये। 

इस पर राजा बोले इसे और संक्षिप्त कीजिये। तब उन चारों विद्वानों ने अपने अपने ग्रन्थ पच्चीस पच्चीस हजार श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया और पुनः राजा भोज के समक्ष उन्हें सुनाने के लिए उपस्थित हुवे तो राजा ने और संक्षिप्त करने का निवेदन किया तब सभी विद्वान् ग्रन्थ दस दस हजार श्लोक में सारगर्भित करके ले आये किन्तु राजा ने हर बार की तरह फिर से संक्षिप्त करने को कहा। चारों विद्वानों ने भी अपने अपने एक एक लाख श्लोकों वाले ग्रंथों को संक्षिप्त करते करते एक एक श्लोक में सारगर्भित कर दिया और उसके बाद चारों ग्रंथों को एक ही श्लोक की चार लाइनों के चार चरण में चारों ग्रंथो को सारगर्भित कर दिया अर्थात एक ही श्लोक के एक चरण में एक ग्रन्थ। इस स्थिति में आने पर राजा बोले अब मैं आपके ग्रंथो का सार सुनने के लिए तैयार हूँ। राज दरबार में भी उपस्थित सभी सभासद उन चारों ग्रंथों की सारगर्भित बात को सुनने के लिए उत्सुक हो उठे।  

सबसे पहले राजनीति शास्त्र के विद्वान् ने राजनीति का सार बतलाते हुवे कहा कि - "बृहस्पतेर विश्वासः" अर्थात राजनीति के प्रणयकर्ता बृहस्पति जी ने कहा है कि राजनीति में कभी किसी पर भी विश्वास/भरोसा नहीं किया जा सकता है। अधिक भरोसा करने वाला इंसान धोखा खा जाता है। यद्यपि विश्वास के बिना दुनिया चलती नहीं पर इतना विश्वास भी नहीं करना चाहिये कि सामने वाले के धोखा देने पर हमारी जिंदगी खतरे में पड़ जाये। वर्तमान में हो रही राजनीति की भारी उलटफेर राजनीतिक अविश्वसनीयता से यह बात स्पष्ट हो जाती है।  

राजनीति शास्त्र के विद्वान् के बाद धर्मशास्त्र के विद्वान् द्वारा धर्मशास्त्र का सार सुनाया - "कपिलः प्राणिनांदया"  अर्थात धर्मशास्त्र के प्रवर्तक कपिल ऋषि ने सम्पूर्ण धर्मशास्त्र ही प्राणियों की दया-रक्षा को बतलाया है।  जिस धर्म में दया का विधान नहीं, वह धर्म नहीं हो सकता। ऋषि व्यास जी ने भी अठारह पुराणों का सार दो शब्दों में बतलाते हुवे कहा है कि परोपकार अर्थात दूसरों की रक्षा में धर्म और पर पीड़ा में पाप अधर्म है। तुलसीदास जी भी कहते हैं कि दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छोड़िये, जब तक घट में प्राण।। महावीर स्वामी भी अहिंसा परमोधर्म कहते हैं।  

धर्मशास्त्र के विद्वान् के बाद आयुर्वेद के विद्वान् द्वारा धर्मशास्त्र का सार सुनाया - "जीर्वे भोजन मात्रेयः"  अर्थात आयुर्वेद के आत्रेय ऋषि का कहना है कि सभी रोगों की एक ही दवा है, लंघन करना अर्थात उपवास करना। "लंघन  परमौषधम" अर्थात उपवास को ही परम औषध बतलाया है। आयुर्वेद के विद्वान् के बाद कामशास्त्र के विद्वान् द्वारा कामशास्त्र का सार सुनाया और कहा कि - "पांचलः स्त्रीषु मादर्वम" अर्थात काम शास्त्र के पांचाल ऋषि ने काम शास्त्र का सार स्त्रियों के प्रति मृदुतापूर्ण व्यवहार करने को बतलाया है।  इस प्रकार से चारों विद्वानों ने अपने अपने विषयों की सारभूत बातें राजा भोज को कही और राजा उन्हें सुनकर काफी प्रभावित हुवे।  पश्चात में समय निकाल कर सम्पूर्ण ग्रंथों का भी श्रवण राजा भोज ने किया और चारों विद्वानों का सम्मान कर उन्हें पुरुस्कृत भी किया।   

 



                  

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