सुखी दाम्पत्य जीवन अर्थात आपसी प्रेम, विश्वास और तालमेल


सनातन धर्म के चारों आश्रमों में से गृहस्थ आश्रम को सबसे बड़ा माना जाता है। विवाह संस्कार के साथ ही इस आश्रम की शुरुआत मानी जाती है। गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिये पति और पत्नी को माना जाता है।पति और पत्नी अपने आपसी प्रेम, विश्वास और तालमेल के साथ इस गृहस्थी रूपी गाड़ी को सुचारु रूप से चलाते हुवे एक आदर्श उदाहरण समाज में प्रस्तुत कर श्रेष्ठ जीवन यापन कर सकते हैं, किन्तु वर्तमान में कुछ स्थिति इस तरह की देखने में आती है कि जरा जरा सी बात पर दोनों में विवाद हो जाता है और फिर योग्य समझाइश के आभाव में तथा कुछ विघ्नसंतोषी लोगों के हस्तक्षेप से छोटी सी बात का विवाद एक बड़ा ही बतंगड़ बन जाता है जिसके परिणामस्वरूप कई गृहस्थी बिगड़ रही है, कोर्ट में केस बढ़ते जा रहे हैं और कई लोग परेशान हो रहे हैं। जबकि पति और पत्नी दोनों के द्वारा आपस में एक दूसरे की बात मानकर, एक दूसरे का सम्मान करते हुवे आपसी प्रेम, विश्वास और तालमेल से ऐसे विवादों को समाप्त किया जा सकता है। कुछ इसी प्रकार की एक सत्य घटना आज आपके समक्ष प्रस्तुत की जा रही है। इसमें नाम और स्थान को परिवर्तित किया गया है।  
पति सूरज और पत्नी निधि दस साल पहले हुवे अपने विवाह के बाद सिर्फ छः वर्ष तक ही सुखद वैवाहिक जीवन व्यतीत कर पाए थे। इसी बीच छोटी सी बात पर उनका विवाद हुआ जो दोनों के अहं से इतना बढ़ गया था कि दोनों अलग अलग हो गए। निधि अपने मायके चली गई, उसके बाद स्थिति और विकट हुई जब निधि ने तलाक के लिए कोर्ट में केस लगाया। चार साल तक कोर्ट में केस चला। दोनों ही पक्ष ने एक दूसरे पर कई आरोप प्रत्यारोप लगाए जिससे सुलह के भी सब रास्ते बंद हो गए। चार साल की लम्बी लड़ाई के बाद फैसला हुआ, उस दिन दोनों के परिजन साथ साथ थे और उन सभी के चेहरों पर विजय और सुकून के स्पष्ट निशान झलक रहे थे। सूरज और निधि भी कोर्ट से बाहर साथ साथ ही निकले, उन्हें तलाक का फैसला मिल गया था फैसले की कॉपी दोनों के हाथों में थी। सूरज और निधि का एक एकलौता सात वर्ष का बेटा कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह निधि के पास ही रहेगा, महीने में सिर्फ एक बार सूरज को उससे मिलने की अनुमति कोर्ट से प्राप्त हुई थी।     

निधि के हाथों में दहेज़ के सामानों की सूची थी, जो उसे अभी सूरज के घर से लेना थे और सूरज के हाथों में गहनों की सूची थी, जो उसे निधि से लेना थे। इसी के साथ कोर्ट का यह भी आदेश था कि सूरज पांच लाख रुपयों की राशि भी निधि को अदा करेगा। दोनों के सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे, बस सूरज, निधि और निधि की माताजी रहे थे। तीनों एक ही ऑटो में बैठकर सूरज के घर पंहुचे। दहेज़ में दिए सामानों की पहचान निधि और उसकी माता को करनी थी, इसीलिए निधि चार साल बाद अपने ससुराल जा रही थी आखरी बार बस उसके बाद उसे कभी उधर आना ही नहीं था। सूरज के माता पिता और परिवार वाले गांव में रहते हैं, सूरज यहाँ अकेला ही रहता था। घर में प्रवेश करते ही पुरानी यादें ताजी हो गई, निधि ने कितनी मेहनत से सजाया था इस घर को। सब कुछ उसकी आँखों के सामने ही तो बना था, एक एक ईंट से धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने, घर की एक एक चीज में निधि की जान बसी थी। सपनों का घर था उसका जिसे सूरज ने कितनी शिद्धत से पूरा किया था।      

सूरज निढाल सा सोफे पर बैठ गया था और निधि से बोला तुम्हे जो भी ले जाना हो ले जाओ मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा। निधि ने सूरज को अब गौर से देखा, इन चार सालों में सूरज कितना बदल गया है बालों में सफेदी झलकने लगी थी, सेहत भी गिरकर आधी रह गई थी चार साल में सूरज के चहरे की रौनक गायब हो गई थी। उन दोनों का यह प्रेम विवाह था घर वाले तो बाद में मज़बूरी में साथ हुवे थे। निधि सोचने लगी प्रेम विवाह था इसीलिए तो किसी की नजर लग गई, बस एक बार पीकर बहक गया था सूरज और उसपर हाथ उठा बैठा था जिसपर नाराज होकर वह अपने मायके चली गई थी। उसके बाद तो सिखाने पढ़ाने का दौर चला था इधर सूरज के भाई भाभी उधर निधि की माताजी, उसी के परिणामस्वरुप नौबत कोर्ट तक गई और तलाक हो गया। दोनों का अहं इस प्रकार रहा कि न तो निधि लौटी और न सूरज उसे लिवाने गया।

कमरे में सामान नहीं देखकर निधि की मां बोली कहाँ है तेरा सामान इधर तो नहीं दिख रहा, बेच दिया होगा इस शराबी ने। निधि को न जाने क्यों आज मां का सूरज को शराबी कहना अच्छा नहीं लगा उसने मां को चुप रहने को कहा। निधि स्टोर रूम की ओर बढ़ी जहाँ उसके दहेज़ का अधिकतर सामान पड़ा था, सामान ओल्ड फैशन का होने से कबाड़ की तरह उसी ने स्टोर रूम में डाल दिया था और मिला भी कितना था उसको दहेज़। स्टोर रूम में पड़े सामान को लिस्ट से मिलान कर बाहर निकाला कमरों से भी लिस्ट का सामान उठाया। इस प्रकार निधि ने सिर्फ अपना ही सामान लिया, सूरज के किसी भी सामान को हाथ भी नहीं लगाया। उसके बाद निधि ने सूरज को गहनों का बॉक्स पकड़ा दिया, गहनों की कीमत भी करीब दस लाख की रही होगी। सूरज ने गहनों का बॉक्स वापस निधि को दे दिया और कहा रख लो मुझे नहीं चाहिए तुम्हे मुसीबत में काम आयेंगे। 

सूरज के इस प्रकार गहने लौटाने पर निधि गुस्से से बोली क्यों कोर्ट में तो तुम्हारे वकील बार बार गहनों के बारे में बोल रहे थे। जवाब में सूरज शांत स्वर में बोला निधि कोर्ट की बात कोर्ट में ही ख़त्म हो गई है वहां मुझे भी तो दुनिया का सबसे बुरा आदमी, शराबी और जानवर कहा गया था। अब निधि गुस्से से बोली नहीं चाहिए मुझे ये गहने और वो नगद पांच लाख भी नहीं चाहिए, इतना बोल कर निधि ने मुँह फेर लिया। निधि की बात सुनकर सूरज बोला इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी ले जाओ, इतना कहकर सूरज ने भी मुँह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। दोनों ही अपनी आँखों में उमड़े हुवे तूफान को छुपाने का प्रयास करने लगे। उधर निधि की माताजी लोडिंग वाहन वाले को बुलाने में व्यस्त थी। निधि को मौका मिला वह सूरज के पीछे उस कमरे में गई तो देखा सूरज अजीब सा मुँह बना कर रो रहा था मानो भीतर के सैलाब को दबाने का भरसक प्रयास कर रहा हो। निधि ने इससे पहले सूरज को रोते हुवे नहीं देखा था तो उसे सुकून सा भी लगा और नहीं भी।  

अब निधि ने भी अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर सूरज से कहा तुम्हे मेरी इतनी फ़िक्र थी तो तलाक क्यों दिया। अब दोनों के मन की भावनाओं का आपसी टकराव होने लगा, सूरज बोला मैंने नहीं दिया तलाक कोर्ट में पहले तलाक की अर्जी तो तुम्ही ने अपने हस्ताक्षर करके लगाई थी। निधि भी अपने आप को रोक नहीं पा रही थी वह बोली माफ़ी मांग सकते थे, घर आ सकते थे। सूरज बोला तुम्हारे घर आने की मुझमे हिम्मत नहीं थी और बात करने और माफ़ी मांगने के लिए जब जब भी फोन लगाया तुम्हारे घर वालों ने मौका ही नहीं दिया फोन ही काट देते थे। दोनों की आवाजें सुनकर निधि की माताजी आ गई और वे यह बोलकर कि जब रिश्ता ही ख़त्म हो गया तो अब क्यों इसके मुँह लग रही हो निधि का हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। माँ बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी।  

निधि के मन में भी काफी उथल पुथल हो रही थी, दिल बैठा जा रहा था, बैचेनी बढ़ती जा रही थी।  जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी और सोचने लगी कि किस तरह से बचत करके उसने और सूरज ने उस सोफे को खरीदा था, पुरे शहर में घूमने के बाद यह सोफा उसे पसंद आया था। फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई तो सोचा किस प्रकार रोजाना वह पूजा करती थी उसके साथ तुलसी ने भी घर छोड़ दिया। घबराहट और बढ़ी तो निधि फिर से उठकर भीतर चली गई।  माँ ने पुकारा तो उसे भी अनसुना कर दिया। सूरज बिस्तर पर उलटे मुँह पड़ा हुवा था। एक बार तो निधि को उस पर दया आ गई किन्तु जब उसने सोचा कि अब तो सब कुछ ख़त्म हो चुका है और उसे भावुक नहीं होना है। सरसरी निगाह से कमरे में देखा पूरा कमरा अस्त व्यस्त था, मकड़ी के जाले झूल रहे थे कितनी नफरत थी निधि को मकड़ी के जालों से। फिर उसकी निगाह कमरे लगी हुई उन फोटो पर गई जिन फोटो में वह सूरज से लिपट कर मुस्कुरा रही थी, फोटो देखकर निधि यादों में खो गई कि कितने सुनहरे दिन थे वो। इतने में माँ फिर से आ गई और निधि का हाथ पकड़ कर बाहर ले गई।  

बाहर लोडिंग वाहन आ गया था और सामान लोड किया जा रहा था।  निधि बुत सी बनी हुई बैठी थी उसे कुछ भी समझ नहीं पड रहा था। सूरज भी वाहन की आवाज सुनकर बाहर आ गया था, वह भी हाल बेहाल था। सूरज और निधि दोनों की ही हालत ख़राब थी, दोनों की आँखे मानो छलक रही थी किन्तु अभी भी उन दोनों का अहं दोनों के बीच दीवार बनकर खड़ा था। इतने में सूरज बोला मुझे मालूम है कि आज के बाद हम दोनों की शायद मुलाकात हो या न हो किन्तु मेरे साथ रहते हुवे मेरे किसी कार्य से तुम्हे कोई तकलीफ हुई हो तो मुझे माफ़ करना। शायद यही वो शब्द थे जो निधि का अहं सुनना चाह रहा हो। चार साल से तड़प रही निधि की सब्र के भी सारे बांध टूट गए और उसने अपने बेग में से कोर्ट के फैसले की प्रति को निकाल कर फाड दिया और माँ कुछ कहे उसके पहले ही वह सूरज से लिपट गई। दोनों एक दूसरे से लिपट कर बुरी तरह से रोऐ जा रहे थे। दूर खड़ी निधि की माँ भी समझ गई कि दिलों के सामने कोर्ट का आदेश एक कागज से ज्यादा कीमत नहीं रखता है, काश इस दोनों को पहले ही मिलने दिया होता दोनों को पहले ही ठीक तरह से समझा बूझा कर कोर्ट जाने से रोका होता। 

इस प्रकार से यदि पति पत्नी दोनों एक दूसरे का सम्मान करें, एक दूसरे की बात को सुने समझें किसी प्रकार की टकराव की स्थिति में समझौता कर थोड़ा झुक जाए आपसी विश्वास और तालमेल बना कर प्रेम से रहें तो उन्हें सुखद दाम्पत्य जीवन व्यतीत करने से कोई भी नहीं रोक सकता है। हम भी इसका अनुसरण करे और साथ ही अनुसरण करवाने का प्रयास भी करें।    

                     

                       
      


 







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